Friday, October 11

Art Vibration -686

5 day’s I dedicated to sketching in my art journey...

Friends many art critics are saying journey is very must for a creative artist . I am agree with them because they are saying this  for development of art and culture in our society ! A journey is giving a lot to a creative artist . or artist are gain very much  from  different vision  , culture , color, communication , relation to different peoples , social life  or culture too. So journey is very must for a creative artist . 



As a artist ( art master of Painting ) I done  five days journey of two different historical temple of God MATA JI in Rajasthan  ( in hindu mythology we are calling to lady god - MAA / SHAKTI / DEVI  etc. ) 


On date 2-10-2024, I went to Osiya Dham it is in city Jodhpur Rajasthan there I lived three days for prayer in front side of Maa Oshiya ji , kind your information Osiya temple is founded in 9th to 16 th century in Rajasthan, osiya temple is decorated   in sculptures of god  and design pattern in  red stone ! 


There after prayer in front side of Maa Osiya,   I were got busy to myself in sketching work or in three days I have draw 500 something sketch’s in my sketchbook from different –different places of Osia dham  . I also visited to Jain temple of Osiya Dham or to KATAN BAWDI ( water storage , traditional architectural well  ) .


 I also write to my complete three days journey in hindi as a story of journey, in hindi  language we are calling to it “ YATRA VRITANT “.


So some sketches and story of  journey of osiya dham in hindi at here for your reading. 


मित्रों इन दो रोज में मैंने ओसियां धाम की श्री सच्चियाय माता जी के दर्शन लाभ की यात्रा की सड़क मार्ग से ! तो आप के साथ यात्रा वृतांत साझा कर रहा हूँ ! यात्रा दिनांक 2 /10 /2024  को आरम्भ की 11 नंबर हाईवे से फलोदी वाया ओसियां पहुंचा संध्या के समय ! पहले पहल श्री सच्चियाय माता जी के दर्शन किये  जो बहुत ही सहज और सुलभ रूप से हुए जैसे की मैंने अनुमान लगाया था ! मंदिर की परिक्रमा का भी लाभ सुरक्षा गार्ड साहब की कृपा दृस्टि से मिल गया सो उन्हें हृदय से साधुवाद भी दिया आभार रूपी शब्दों में !  दर्शन लाभ के बाद मैंने चाय  पी  ओसियां धाम के मुख्य  चोहराये  पर जिसे चबुतरा चौक के सम्बोधित किया जाता है !  फिर उसी चौक से मैंने आरम्भ की  रेखा चित्र की अभिव्यक्ति मेरी स्केच बुक में !  शुद्ध जैन भोजनालय में भोजन लेने से पहले रेखाचित्र और फिर भोजन के बाद कुछ और रेखा चित्र उकेरे !
विश्राम के लिए स्थान मिला इस अंतराष्ट्रीय चित्रकार को ओसियां धाम की अंतराष्ट्रीय सच्चियाय माता धर्मशाला में !  एक सामान्य सिंगल बेड वाला नॉन ऐसी रूम एक बिस्तर के साथ ! तो कुछ पल  विश्राम करते हुए मैंने मोबाइल को चार्जर के साथ इलेक्ट्रिक प्लेट के साथ प्लग किया और मोबाइल को उसी दीवार से बहार उभरी हुई प्लेट पर रख दिया ! और थोड़ी देर के लिए खुली हवा में बैठने को  निचे प्रांगण में आकर उसी अंतराष्ट्रीय धर्मशाला के  और वहाँ  हो रही मानवीय क्रीड़ा जिसमे पानी भरना , बच्चों द्वारा खेलना और यात्रियों द्वारा खुली हवा में गपशप  करना के दृश्यों को उकेरा अपनी स्केच बुक में ! स्केच मैं बल्ब की शेड में बना रहा था जो लगा हुआ था ऑफिस के आगे उस अंतराष्ट्रीय श्री सच्चियाय माता धर्मशाला के ! वहां का स्टाफ भी मुझे स्केचिंग करते हुए देख कर अचंभित था तो एक दो स्टाफ कर्मी ने अपना स्केच ऑन  डिमांड भी  मुझसे बनवाया और उन स्केचेस के फोटो अपने मोबाइल से लिए ! शायद वो उनके लिए कला का पहला साक्षात् था इस तरह की लाइव स्केचिंग का !
वही मुझे बीकानेर के सु प्रसिद्ध दूध विक्रेता स्वर्गीय श्री रामा मोदी जी के पुत्र श्री हरिओम माखेचा जी ने देखा और सीधे अपने चित परिचित अंदाज में मुझसे पूछा  पुरोहित आप अठे  बिराजो हो क्या कद सुन थे अठे हो ! उन्होंने मेरे हाथ में पेंसिल और नोटबुक / स्केच बुक देखकर ये अनुमान लगाया  की मैं अंतराष्ट्रीय धर्मशाला  में कमरे बुक करने का कार्य कर रहा हूँ ! ऐसा इस लिए भी रहा होगा की वे मुझसे दूर थे और रौशनी भी कम थी और दूसरा उनके व्यवसाय में नोटबुक और पेंसिल का मतलब सीधे बुक करना ही है ! सो उनकी कोई गलती नहीं थी और उनकी विशेषता ये थी की उन्होंने उस कम  रोशनी में भी मुझ बीकानेर वाले को  जाती सम्बोधन के साथ जोर से पुकार कर उस अंतराष्ट्रीय श्री  सच्चियाय माता  धर्मशाला के स्टाफ मेंबर के जहन  में मेरी साख स्वतः ही बना दी ! और श्री हरिओम जी ने  बीकानेर के युवा के लिए एक माइत की भूमिका निभादि सो उन्हें बारम्बार प्रणाम !
 उस प्रांगण में कुछ देर स्केचिंग करने और ठंडी हवा खाकर मैं सोने के लिए वापस रूम में आया तो पाया की मेरा फ़ोन जमींदोज हो रखा है ! यानी किसी गिलहरी /छिपकली ने मोबाइल को गिया दिया क्लेक्ट्रिक प्लेट से ! फ़ोन  स्क्रीन में अनेको क्रेक्स आ गये थे और फ़ोन पर टेक्स्ट टाइप होने बंद पूरी  स्क्रीन का कोई 10 प्रतिशत  भाग ही कार्य करने में सक्षम था ! पर फ़ोन करने और फ़ोन सुन ने में फ़ोन कार्य कर रहा था सो घर पर माँ को ये जानकारी दी की मेरा फ़ोन आउट ऑफ़ वर्क हो रहा है अगले दो दिन बात न हो पाए तो आप लोग चिंता मत करना !
धर्मशाला के रूम पत्थर के बने है सो देर रात में जाकर कहीं रूम में पंखे की हवा ठंडी हुई और मन को  शांत किया की अब तो नया फ़ोन लेना ही हैं ( जो खुश खबरि भी है मेरे  साहित्यकार परिवार के लोगों के लिए  )  तो मन को शांत किया ! उसी दौरान निचे चौक में एक रंगा परिवार के समूह ने भजन संध्या आयोजित  की जिसमे मित्र बलदेव रंगा ने परिवार को उत्साहित करते हुए सभी को अवसर देते हुए भजन गवाए और मैंने उनके भजन संध्या कार्यक्रम के स्केच भी बनाये !
किसी ने मच्छरों के अटैक पर काउंटर  अटक करते हुए टृयूबलाइट ही बंद करदी और मेरे स्केच की दूकान भी ! पर स्केचिंग करते हुए मैंने भजन में तलीन हो ते हुए  श्री हरिओम मखीचा जी का एक स्केच भी बनाया और उन्हें दिखा ते  हुए  कहा की ये आप है और अब आप इस स्केच पर अपने हस्ताक्षर कर दिजिये  , उन्होंने मेरे आग्रह की रक्षा करते हुए दो हस्ताक्षर किये अपने ही स्केच पर जो मेरे लिए  उस पल की सच्ची उपलब्धि थी आशीर्वाद स्वरुप में श्री हरिओम माखेच जी के हस्ताक्षर के साथ !  जिसे मैंने उनके द्वारा मुद्रित दूध दही के कूपन और उनकी खुद की प्लास्टिक टोकन मनी  पर ही देखा था पर अब वो मेरे पास भी था उनके स्वयं के द्वारा दिया हुआ मेरी स्केच बुक पर ! फिर करीब रात्रि  1  बजे  मुझे नींद आयी !

अगली सुबह यानी दिनांक 3 /10 /2024  को सुबह  नित्य कर्म सम्पूर्ण करके मैंने पहली चाय अंतराष्ट्रीय धर्मशाला के सामने स्थित होटल से चाय ली और ठंडी हवा में उसका स्वाद लिया  , सफारी जीप के आने जाने के उपक्रम के साथ  जो की रेगिस्तान की सफारी करवाती है जात्रियों को !
चाय के बाद मैंने मेरी स्केच  बुक ली और मंदिर की और रुख किया  रास्ते में मुझे ऐतिहासिक 16 वीं  शताब्दी के निर्मित मंदिरों के दो तीन भग्नावशेष दिखे तो मैंने  उन्हें उकेरा आज कल वो पुरातत्व विभाग  के संगरक्षण में है और उस स्थान पर पार्किंग प्लेस बना लिया गया है स्थानीय लोगो के द्वारा जो कितना उचित है ये सोचने का विषय है ?
वहाँ  से आगे चला तो मैं  फिर पहुंचा  चबूतरा चौक  जहाँ बस स्टेण्ड है पुराना और उस बस स्टेण्ड पर दो दुकाने है पुराणी एक चाय की और एक पकोड़े की ! पकोड़े बनाते किशनासार गांव के उपाध्याय जी  और चाय बनाते है ओसियां धाम के ही राठौर जी ! बीकानेर श्री सच्चियाय माता पद यात्री संग के आप दोनों अति घनिष्ट और अति आदर भाव भी रखते है सो पिता जी की वजह से वे मुझे भी पहचानते है ! पर इस बार मैंने अपना परिचय अलग तरह से दिया  उस बस स्टैंड पर बैठ कर वहाँ  स्केच बनाकर जो उनके लिए सरप्राइस था ! मेरी कला अभिव्यक्ति के प्रति लाड दिखाते  हुए उपाध्याय जी पकोड़े वालो ने मुझे चाय पिलाई अपने चित परिचित हास्य अंदाज में की ये चाय पियो सा आप कई ओरो सु ओबति चीज हो सा !वे वरिष्ठ थे सो उन्हें प्रणाम करते हुए उनकी उपहार स्वरुप चाय की मनवार  को स्वीकारा और अपने आर्ट कॉलेज  के चित्रकला विभाग के अध्यक्ष वरिष्ठ चित्रकार भारत  डॉ, विद्या सागर उपाध्याय जी को याद किया की , योगेंद्र की परख सिर्फ उपाध्याय  परिवार / समाज के गुणी जनो  को ही है शायद ? या गुरु जी का आशीर्वाद की जहा भी जाएगा उपाध्याय परिवार को अपने साथ पायेगा एक संगरक्षक की भांति ! ॐ गुरूवेनमः  !
अब चाय के उपहार स्वरुप रिटर्न गिफ्ट भी बनता है सो मैंने उनसे 50  रूपए के पकोड़े मांगे उन्होंने घर से ताज़ी मुंग की दाल मंगवाकर मेरे लिए स्वादिष्ट पकोड़े  बनाये और उन्हें पैक करवाकर मैं  धर्मशाला की और मुड़ा  तो रस्ते में मुझे दो और मंदिर के भग्नावषेश दिखे जिसे मैं एक और टी स्टॉक की छत के निचे बैठकर उकेरने  लगा ! चित्र बन रहा था और टी स्टाल का मालिक मेरे लिए कुलड़ टी बना रहा था  ! मैंने मंदिर के साथ उसकी टी स्टाल और उसे भी अपने स्केच का विषय बनालिया  और  उसने  कुलड़ टी की कीमत मे मेरे लिए 5 रूपए की छूट दी साथ ही स्केच की फोटो भी अपने मोबाइल में कैद की !
मैंने पकोड़े और चाय का लुत्फ़ उसकी टी स्टाल में ही लिया और उसने मेरी स्केच बुक में बने सभी स्केच का !
फिर मैंने खुद को कातन बावड़ी की और मोड़ा वहाँ  से मैंने बावड़ी के भीतर से पुरे ओसियां माता जी के मंदिर को लैंडस्केप फॉर्म के ड्रा किया फॉर बावड़ी से बहार आकर  उस बावड़ी के मुख्य द्वार का चित्र उकेरा ! बावड़ी को संग्रक्षित किया गया है ये अच्छी बात लगी मुझे , बहुत वर्षों  पहले बावड़ी का मुख्य द्वार खंडित और असुरक्षित था !
कातन बावड़ी  से आते समय मुझे रास्ते में एक बुजुर्ग मिले जो पुस्तकें बेच रहे थे ! मैंने उनसे पूछा की क्या है इन पुस्तकों में जिसे आप बेच रहे हो ?  वे बोले ज्ञान है
लेलो ! तो मैंने उनसे ज्ञान के विषय पर काफी देर चर्चा की तो ज्ञात हुआ की आप कबीर पंथी और सर्वधर्म विचारधारा के ज्ञान के प्रचारक है ! तो उनसे हसी ठठोला करते हुए मैंने उन्हें एक पुराना  किस्सा सुनाया , दिल्ली की बस में एक हरियाणवी बुजुर्ग एक पना 2 रूपए में बेच रहा था फोटो कॉपी , और जोर जोर से बोल रहा था 2 रूपए में ज्ञान जीवन का ज्ञान सफल होने का ज्ञान ! मैंने उस बुजुर्ग से कहा दादा ये ज्ञान इतना करगर है  क्या ? तो बोले हां !  तो मैंने वापस कहा तो फिर खुद पर क्यों नहीं आजमाते ? क्यों ये 2  - 2 रूपए के लिए गले फाड़ रहे हो ? वो बुजुर्ग निरुत्तर था ! वैसे मैंने उन बुजुर्ग को पहले ही ये कह दिया था की आप मेरी इस बात को अन्यथा न लें ! मैंने उन्हें चाय के लिए भी निमंत्रण दिया पर वे स्वीकार नहीं पाए साथी कर्मचारी की वजह से या उनका ज्ञान उन्हें रोक रहा था ! फिर उन्होंने मुझे एक पुस्तक पकड़ाई की ये लो इसे पढ़ना ये फ्री है ! मैंने पुस्तक ली पढ़ी तो पाया की पूर्णरूप से कबीर पंथी संत की लेखनी थी साथ में संत के स्वयं के धर्म चिंतन का उल्लेख भी ! अगले दिन वही बुजुर्ग फिर टकराये संयोग से पुस्तक मेरे पास थी तो मैंने वापस उन बुजुर्ग को थमाई और बोला मैंने इसे पढ़ लिया है अब आप इस पुस्तक को किसी और को देना फ्री में मेरी और से ! गौर तलब बात ये भी है की मैंने उन बुजुर्ग के स्केच भी बनाये थे और उन्होंने अपने स्केच बनते हुए देखे थे मेरे द्वारा मेरी स्केच बुक में !
हमारी चर्चा धर्म पर भी हुई मैंने कहा धर्म दो प्रकार के है एक कर्म का धर्म और एक आस्था का धर्म  ! उन्होंने भी धर्म के लिए कई उदाहरण दिए ! मैंने कहा धर्म प्रकृति हित  में किया जाने वाला उपक्रम है ! और भक्ति भाव से है भक्ति में अभिव्यक्ति की कोई जगह नहीं , अभिव्यक्ति अभिनय को जन्मदेति है आडम्बर  और अभिमान की और ले जाती है भाव पूर्ण भक्ति मौन में भी पूर्णता पाती है ! आदि आदि एक लघु शाश्त्रार्थ हुआ हमारे बिच और वे मुझे पुस्तक बेचना भूल गए ! या वे अपने धर्म के विषय में सोचने लगे थे शायद !

करीब  4  बजे मैंने खुद को  जैन मंदिर की और मोड़ा  वहाँ  पहुंचा तो प्रवेश पाने से पहले ही एक सेवादार ने टोक दिया की आप सफ़ेद चादर अपनी काली टीशर्ट पर डालें फिर भीतर प्रवेश  करे ! मैंने उन सझन से कहा की इसकी कोई आवश्यकता नहीं मैं  बहार से ही प्रणाम कर लेता हूँ ! तो उन्होंने मेरी विनम्रता को देखते हुए कहा की आप आँगन तक जाकर बहार से ही दर्शन कर सकते है तो उनके आग्रह की रक्षा करते हुए मैंने भीतर आँगन तक जाकर मुख्य मंदिर के सामने से प्रतिमा को प्रणाम किया ! वहा  के सफाई कर्मचारी ने कहा की आप केमेरा में हो और आप ने काले कपडे पहने है ये नियमावली के बहार है ! मैंने कहा मुझे विदित नहीं था वरना इस से  पहले जब भी  इस मंदिर में आया हूँ मेरे सफ़ेद पोषक ही रही है कुरता पझामा ! वो सफाई कर्मी भी मंदिर की सेंड स्टोन से झड़ी सेंड डस्ट की बुआरी  करता हुआ मुस्कुराते हुए अपने कार्य में तलीन हो गया !
 जैन मंदिर से वापसी की मैंने श्री सच्चियाय माता ओसियां मंदिर की ओर और वहाँ  मंदिर की पेडियों  के मध्य चप्पल खोलने वाले स्थान  तक जाकर एक कुर्सी पर बैठकर  उन चप्पल जमा करने वाले  कार्यालय साथ ही वहाँ  के सुरक्षा कर्मियों के और जात्रियों के कुछ स्केच बनाये  और फिर मंदिर  से  निचे  चौक में पंहुचा ! वहां  एक दुकानदार से  कुर्सी मांगी और फिर उस चौक की चहल कदमी को दुकानदारों को यात्रियों  के स्केच बनाये ! एक दो व्यक्ति ने अपने सेल्फ स्केच बनवाये   तो एक  चाय की दूकान वाला अपने स्केच को देख कर अति हर्षित  हुआ  ! उसने आस पास वाले सभी पहचान वालों को इकठा कर लिए की देखो ऐ भा  सा  आपां ने मंडे  है !

उस स्थान से स्केच करने के बाद संध्या कालीन भोजन जैन भोजनालय में लिया और फिर इत्मीनान से श्री सच्चियाय माता जी के दर्शन करने को निज मंदिर तक गया ! ऊपर गार्ड साहब को अपनी स्केच बुक संभलाकर  सुकून के साथ माता जी के दर्शन किये उसी समय पुजारी टीम के एक सदस्य ने जोर से साथी पुजारी से कहा भाउ  काले इये  भाउ ही महरो चितर मंडियों हो बारे ! दर्शन के बाद प्रसाद भी मिला और गुपत फेरी का लाभ भी ! बोलो सच्चियाय मात की जय ! ओसियों  ऋ  धनियोनि ने खोमा !

दर्शन लाभ के उपरांत मैं चबूतरा चौक बस स्टेण्ड आया और राठोड जी से कहा अब एक चाय पिलाओ आप , उन्होंने चाय पिलाई और मैंने स्केच का उपक्रम पुन्ह आरम्भ किया ! और कई स्केच बनाये ! देर रात तक स्केच बनाये और फिर बीकानेर धर्मशाला की और रुख किया वहां सच्चियाय माता पैदल संग और रंगा परिवार की और से राती जोगा ( रात्रिजागरण ) रखा गया था हर वर्ष की भांति बस इस बार स्थान अलग था पर भाव वही भक्ति वही ! तो राति  जोगे की रीत  को निभाते हुए मैंने भी मेहँदी से एक चंदा सीधे हाथ में एक बालक से मेहँदी मांग कर लगायी ! उस समय मुझे मेरे बचपन की एक  घटना याद आयी ! मैं  रातीजोगे वाली रात को ओसियां की धर्मशाला में सो रहा था और सुबह उठा तो मैंने देखा की मेरे हाथ में ये मेहँदी लगी है जो मैंने नहीं लगायी तो  किसने लगाई ! किसी बालिका ने ही लगायी थी पर कौन थी  ये आज तक गौण है ! माँ सच्चियाय ही जाने वो कौन थी !
कुछ समय यानी करीब 3 बजे तक जागरण में उपस्थिति देते हुए जब नींद ने आवाज देनी शुरू की तो मैं रूम पर आगया पर आते आते रास्ते में भी कुछ स्केच परिचितों के उकेरे ! फिर रूम में आकर सो गया  !  ( इस बिच फ़ोन ने इतना सहयोग तो किया की मैं अपनी डेली आर्ट वर्क पोस्ट इमेज को तो पोस्ट कर पाया पर टेक्स्ट नहीं टाइप कर पाया ! ) .

अगली सुबह दिनांक 4 /10 /24 को नित्य कर्म सम्पन करके कुछ पल बांसुरी बजाई सुबह सुबह तो अनेकों बचे रूम के आगे आकर सुन ने लगे बांसुरी की धुन मेरी आँखें बंद थी और ध्यान धुन में मगन था ! जब बांसुरी बजाना रोका तो पता चला की कितने मन संगीत और सुर से एकाकार होने को व्याकुल है पर ये सुर साज उनके लिए निरंतर जारी रखे कौन ? ये प्रश्न ही है संस्कृति के पोशाकों से पालकों से !
बांसुरी के स्वर से अलग होकर मैं फिर निकला मेरे रूम से बहार और चाय की तलाश की नजदीक वाली होटल में उसे बोला  की तुम 5 रूपए बति  ले लेना पर चाय पूरी देना और  देना स्टील की गिलास में ! सुबह की ठंडी हवा में गरम चाय पिते  हुए आगे का प्लान सोचा तो मुझे वापस रूम के भीतर आने पर धर्मशाला के प्रांगण में ही सुबह सुबह की अनेको मानवीय क्रीड़ाएं देखने और उकेरने को मिली और मैंने उन्हें उकेरा स्केच बुक में ! काफी बच्चे अपनी जिज्ञासा  लेकर आये मेरे पास तो किसी ने स्केच बुक देखने की मांग की किसी ने अपना स्केच बनाने को कहा तो किसी ने अपने स्केच को मोबाइल में शूट भी किया वो मेरा लाइव इंटरेक्ट था आर्ट के लिए और आर्ट एजुकेशन के लिए लाइक  ऐ ओपन आर्ट इंस्टिट्यूट इन अंतराष्ट्रीय श्री सच्चियाय माता धर्मशाला फ्रॉम ऐ अंतराष्ट्रीय आर्टिस्ट ऑफ़ बीकानेर। नाम योगेंद्र कुमार पुरोहित।
कुछ देर में मेरे माता जी और पिताजी भी ओसियां पहुँच गए और फिर हमने समूह में आयोजित होने वाले महा प्रसादी ( कड़ाई ) में अपने परिवार की उपस्थिति दर्ज करवाई , पिताजी संगी पदयात्रियों से संग सदस्यों से मिले पारिवारिक भेंट अर्पित की कलश में फिर प्रसादी ग्रहण की  ( हलवा,चावल दाल ) ! प्रसादी से पूर्व दर्शन के लिए गए माता पिता जी के इन्तजार में मैंने कार ड्राइवर साब को पकोड़े और चाय का नाश्ता भी करवाया उसी चबूतरा चौक के बस स्टैंड पर नाश्ता होने के बाद और इन्तजार में मैंने कुछ और स्केच उकेरे उस पल  एक बहुत भारी भरकम शरीर वाला युवा मेरे सामने आकर बोला  मेरा भी बनाओ भा एक चित्र तो उसका स्केच बनाया ! उसके साथी ने मेरे स्केच करते हुए का वीडियो भी बनाया ! फिर दो बच्चे उत्सुकता से मेरे पास आये स्केच बनते देख कर वे उत्साहित हो रहे थे एक ने कहा मैं  भी स्केच बनाता हूँ पर आप जैसे नहीं बना पाता ! तो मैंने कहा अभ्यास करते रहो मेरे से भी अच्छे बनलोगे एक दिन तुम भी स्केच ! फिर एक ने कहा हमारा भी बनाओ आप,  तो उन दोनों का भी स्केच बनाया और उस स्केच को देखकर वे बच्चे जो अंतर मन से हसे वो अपने आप में मेरे लिए विशेष उपलब्धि रही इस धर्म यात्रा की वहाँ उन पलों में मेरा कला धर्म पूर्णता पा गया ! बच्चों ने स्केच किया हुआ पेज माँगा तो मैंने उन्हें कहा मोबाइल है तुम्हारे पास तो फोटो शूट कर लो ! बच्चों ने फोटो शूट किया और अपने पिता और माता को दिखाया तब तक मेरे माता पिता भी आगये और हम चल् दिए बीकानेर धर्मशाला की और महा प्रसादी ( कड़ाई प्रसाद ) के उपक्रम में शामिल होने को अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने को !
 प्रसादी ग्रहण करने के बाद वापसी की बीकानेर को और अब यहाँ से  लेपटॉप के माध्यम से ये यात्रा वृत्तांत मेरी धर्म यात्रा मेरी कर्म यात्रा का आप के लिए कुछ स्केचेस के फोटो इमेजेज  के साथ !

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After Journey of Osiya dham Jodhpur.  I done one more journey of Deshnok Karni Maa temple , this Deshnok Karni Maata Dham is in Bikaner or in distance only 30 KM. so I went to Deshnok Dham , there I done prayer in Front Side of Maa Karni Mata , kind  your information Maakarni temple is one and only temple in our world , there man and mouse are live both , the story is ,  by blessing of Maa karni ji there a human ( only charan cast person )  get die then he/she  get birth as a mouse or when a mouse get die then that mouse get birth as a human in family of charan cast . it is real blessing of God or a special blessing of MAA KARNI ON CHARAN OR KABA ( KABA mean mouse ) .






 

There after prayer I started sketch or in a day I were draw 300 something sketches in my sketchbook or after completed to that one day  tour I came back at home or I wrote a one more short story on my Journey as a Yatraa Vritant  ..here that’s sketches images and that hindi story for  your reading ..

मित्रों ओसियां धाम की धर्म यात्रा के उपरांत मैंने मेरी आयरन चेतक  से बीकानेर के देशनोक करणी  माता धाम की भी धर्म यात्रा की  इस रविवार को ! नवरात्रा में श्री करणी  माता जी के दर्शन लाभ को जाता रहा हूँ हर वर्ष सो इस बार भी  करणी  माता के दरबार में हाजरी लगाई !
यात्रा जोधपुर हाईवे स्थित हाजी  टी स्टाल से आरम्भ हुई एक कप टी के साथ  फिर आया ऑन  द रोड जोधपुर हाई वे पर मेरी आयरन चेतक से और करीब  40 से 60  की स्पीड में आयरन चेतक को दौड़ाते हुए मैं पहुंचा देशनोक सुबह  के 11 बजे के करीब ! मेरे साथ थी मेरी स्केच बुक  पर मोबाइल नहीं था !
देशनोक धाम में प्रवेश लेते ही पहले पहल एक प्रसाद की दुकान के साथ मिनी पार्किंग सेवा भी उपलब्ध होने के कारण  मैंने मेरी आयरन चेतक को उस प्रसाद की दुकान पर ही स्टेण्ड पर खड़ा कर दिया और हर बार की तरह एक नारियल का गट ( सूखा छिला हुआ नारियाल केवल गिरी गट ) लिया 50 रूपए में इस पच्चास रूपए के प्रसाद के चार्ज में पार्किंग भी शामिल ही थी शायद ! वरना  50 रूपए में किस देश में सूखे नारियल का गट मिलता है भला ?
आयरन चेतक श्री करणी माता मंदिर से कोई 500 मीटर दूर ही पार्किंग की थी ताकि वापसी के समय भीड़ से बच ते हुए आराम से आयरन चेतक को निकाला  जा सके !
वहाँ  से पद चाप करते हुए मैं पहुंचा निज मंदिर के पास रास्ते मे मेले सा दृशय था ! अनेकों दुकाने और दुकानों पर मानवीय भीड़ पूर्ण उत्साह और जोश के साथ ! मंदिर के ठीक पास मैंने एक तस्वीर की दुकान पर मेरी स्केच बुक रखी और अपनी मुंजड़ि ( चमड़े के राजस्थानी शैली के जूते  जूतियाँ भी कहते है ) उतारी और दर्शन हेतु आगे बढ़ा !
श्री करणी माता मंदिर देशनोक में नवरात्रा के नो दिन मेला भरा रहता है ! दूर दूर से जात्री आते है दर्शन लाभ लेने को, सो बहुत भीड़ भी होती है ! उस भीड़ में मैं भी शामिल हुआ माता करणी  जी के दर्शन को ! पहले एक छोटे गेट की और गया जो  वीआईपी गेट बना रखा था मंदिर  व्यवस्थापक समिति ने ! तो वहाँ से प्रवेश न पाने की जानकरी मिली ( इस अंतराष्ट्रीय चित्रकार को वीआईपी को ) ! उस पल मेरे लिए  पंक्ति में शामिल होना ही अंतिम और सही रास्ता रहा मेरे पास ! तो उस लाइन के अंतिम छोर  को ढूंढने लगा वो मिला  मुझे मंदिर से करीब 100 मीटर दूर ! वहाँ देखा की पुरुष महिलायें बच्चे बुजुर्ग सभी एक ही पंक्ति में चल रहे थे मंदिर व्यवस्था की गति के अनुरूप ! मैंने भी अपने आप को लोहे के पाइप से बनी बंकर /कतार की सीमा / लूणा घाटी में  फसालिया ये सोचकर की माँ करणी की यही इच्छा दर्शन के लिए ! उस पंक्ति में मैंने 6 महीने के बच्चों को गोद में रोते हुए गर्मी से बिलखते हुए देखा ! तो सीनियर सिटिज़न को भी जो चलने में असक्षम या असमर्थ थे उन्हें भी महिलाओं को पुरुषों को  एक ही पंक्ति में  देखना भी अचरज ही था ! पर प्रसाशन और  मंदिर व्यवस्थापकों की सूझ बुझ से सभी को दर्शन आराम से हो रहे थे समय की वहाँ  कोई महत्ता ही नहीं थी मंदिर प्रांगण में ! क्यों की सभी दर्शन के लिए ही तो पहुंचे थे माँ करणी के !
निज मंदिर के ठीक आगे शीतल जल और शरबत भी सेवादारों द्वारा दर्शनार्थियों के लिए उपलब्ध करवाया जा रहा था  मंदिर व्यवस्थापक समिति की देख रेख में ! तो भोंपू  पर बार बार देशनोक पहुंचे सभी दर्शनार्थियों के लिए प्रसाद के साथ भोजन की व्यवस्था का भी उद्घोष होता रहा !  जिसमे एक नहीं एक साथ कई जगह लंगर ( भोजन ) व्यवस्था वो भी नवरात्रा  के पुरे नो दिन ! ये बात   मुझे अच्छी लगी  व्यवस्थापकों ने आने  प्रत्येक दर्शनार्थी के  लिए माँ करणी के भण्डार  से भंडारे खोल दिए और उसे मंदिर की परंपरा में तब्दील कर दिया ! बोलो मात करणी की जय ! 
मैंने मंदिर के सामने वाले लंगर को दर्शन की पंक्ति में खड़े खड़े देखा जरूर था ! पर भीतर जाने का कोई   मानस  नहीं  बनाया और ना ही भीतर गया ! जैसे तैसे मुख्य मंदिर के अंदर  प्रवेश मिला तो बाई और ढ़ोल बजाने वाले पेटीबाजा बजाने वाले को एक भेंट किसी सेवादार के माध्यम से पहुंचाई ! तो ढ़ोल वाले ने आश्चर्य भाव से  मुस्कराहट दी  ! उसके लिए वो एक सरप्राइज सा था ,की किसी ने भीड़ भरी दर्शन की लाइन में से भी उसको ध्यान में लिया और भेंट अर्पित की ! मुझे देख दो चार  भाई बंधू और जागे भेंट देने को सो  उन्हें भी साधुवाद दिया मन से मैंने !  ये  सोचते हुए की किसी ने तो इस ढोली का भी चिंतन किया इस मंदिर प्रांगण में आकर !
फिर मुझे निज मंदिर में माँ करणी जी की प्रतिमा के आगे वाले दर्शन के रास्ते पर  आने  का अवसर मिला माँ करणी जी के दर्शन हुए!  प्रसाद रूपी भाव पूर्ण वो   गट पुजारी जी द्वारा ठेठ माँ करणी माता  की प्रतिमा के चरणों में भेंट  किया गया ! दर्शन लाभ के उपरांत मंदिर परिसर से बहार आकर मैंने मेरी पगरखी पहनी मेरी स्केच बुक दूकानदार से वापस ली उसे आभार कहा !
तब तक एक परिवार माँ करणी जी का प्रसाद लेकर मंदिर परिसर से बहार आया और उन्होंने मुझे प्रसादी दी जो था हलवा दुने में ! मैंने उसमे से  जरासा लिया और वापस उन्हें थमा दिया और आगे चलदिया उचित स्थान खोजने को मेरे आगे के उपक्रम के लिए जो था स्केच बनाना ! लाइव स्केचिंग के लिए मैंने निज मंदिर के आगे  को चुना जो की मंदिर की छांया वाला  भाग था और वहाँ  मुझे एक कुर्सी भी मिली! जिस पर बैठकर मैंने 12 :30  बजे से करीब 3 बजे तक स्केच बनाये स्केच बुक में डेट इंगित करते हुए जो थी 6 /10 /2024 . ! मैंने वहाँ  मंदिर के आगे होने वाली मानवीय चहल पहल को उकेरा ! तो एक बच्ची जो मांगने वाली बालिका थी ! उसने मुझे स्केच बनाते हुए देखा और  उसने  ये जाना की मुझे जो दीखता है मैं  उसे उकेर रहा हूँ !  तो उस  बालिका ने जिसके  हाथ में हलवे की थैली थी वो  अपना चित्र बनवाने की मनसा से और संकोच सीधे मुझसे न कह पाने के वो मेरे सामने  कभी मेरे दाए कभी बाए आकर खड़ी होती रही ! मैंने उसके मन को समझते हुए एक स्केच उसका भी गुपचुप बनादिया जिसे देख कर वो अकेली मुस्कुराई उसके उत्साह को सुन ने समझने और साझा करने वाला उसके पास कोई नहीं था सिवाय माँ करणी जी के !
करीब 3  बजे मैंने एक चाय की स्टाल पर जाकर चाय वाले से नास्ते के लिए बिना प्याज की कचोरी मांगी उसने बिना जानकारी लिए कह दिया की  अभी तैयार नहीं  है ! तो पीछे से कचोरी बनाने वाले कारीगर ने कहा साब पावो तैयार है ले जाओ बिना प्याज री  कचोरी रो ! टी स्टाल मालिक ने कहा मुझे ध्यान   नहीं था ! मैंने   चाय के साथ दो गरमागरम कचोरी का अल्पाहार लिया जो मिला माँ  करणी  जी के आशीर्वाद से , ईश्वर हमारे  लिए रास्ता बनाते  हैं  बस समय का इन्तजार हमें करना  होता है वो कहते है न की समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिलता ! वो मैंने जिवंत चरितार्थ   होते  देखा माँ करणी के देशनोक धाम में !
अल्पाहार को ग्रहण करने और उसका भुगतान करने के बाद मैं वापस लगा मेरे कला धर्म में इस बार मैंने स्थान चुना मंदिर परिसर के आगे के प्रांगण में बने चप्पल स्टेण्ड  के पास वाली सीमेंट की बनी कुर्सी से ! वहाँ से मैंने करीब 7 बजे तक स्केच बनाये जिसमे स्वीट कैंडी बेचने वाला गुब्बारे बेचने वाला पानी पिलाने वाला किताबें बेचने वाला  साथ में देशी और विदेशी दर्शनार्थियों के भी स्केच बनाये अनेकों बच्चों ने लाइव स्केच बनते देखे तो एक बालिका अपनी डिजिटल स्लेट लेकर आयी और मेरे बराबर बैठकर  अपने डिजिटल स्लेट पर बादल का स्केच बनाया वो दृश्य अध्भुत रचाथा  मेरे लिए माँ  करणी जी ने !  फिर राजस्थान यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर  जो  की मित्र थे वरिष्ठ चित्रकार श्री समंदर सिंह खंगारोत ( पूर्व सचिव राजस्थान ललित कला अकादमी ) !उनसे काफी चर्चा हुई तो उन्होंने मेरे लाइव स्केचिंग को देखा फिर  अपने  परिवार  के दो बच्चों के लाइव स्केच बनाने को कहा और मैंने उनके दोनों बच्चों के स्केच भी बनाये ! इस बिच चप्पल स्टेण्ड के कर्मचारी ने मेरी पूरी स्केच बुक के स्केच देखे और कला का रसा स्वादन किया ! उसने इन रिटर्न मुझे चाय भी पिलाई आदर भाव से ! कला कैसे रिश्ते बना  देति है अनजान को अपना बना देती है एक पल में  अभिव्यक्ति की शक्ति से ! इस लिए कला अनिवार्य है हमारी सामाजिक संस्कृति में एक दूजे को जोड़ने के लिए एक दूजे को समझने के लिए  !
स्वीट कैंडी बेचने वाला वो शक्श भी  कई बार मेरे पास आकर खड़ा होजाता स्केच बनते देख कर !  मैंने  उस से कहा भाई मेरे चकर में तूं  तेरा धंधा क्यों ख़राब कर रहा है ! तो पीछे से चप्पल स्टेण्ड वाला  कर्मचारी  बोला की आपके पास बच्चे आते है ना इस लिए ये यहाँ आजाता है तो मैंने कहा फिर ठीक है !
चप्पल स्टेण्ड पर एक व्यक्ति कबीर यात्रा में  शामिल होने वाला भी आया मुझे स्केच बनाते देख  उसने सीधे पूर्ण आत्म विस्वास से मुझसे पूछा क्या आप कबीर यात्रा में आये हो  ? मैंने उत्तर दिया नहीं पर  अब आया हूँ तो  कबीर यात्रा में भी शामिल हो जाऊंगा कुछ देर  के लिए !
तभी एक किशोरी अवस्था की बालिका उत्सुकता वस मेरे पास आयी और बोली क्या आप के चित्र की फोटो ले सकती हूँ मैंने कहा बिलकुल लो  फोटो लेने के बाद उसने तुरंत कहा क्या आप मेरा स्केच  बनाओगे  ? मैंने कहा नहीं ! क्यों की अगर तुम्हारा स्केच बनाने लगा तो अभी लोग इकठा हो जाएंगे अजीब सा माहौल बन जाएगा और  दूसरी बात मैं यहाँ तुम्हारे  मन के अनुरूप नहीं बल्कि  मेरे मन के अनुरूप चित्र बनाने को आया हूँ  ! ऐसा कहते हुए मैंने उस किशोरी को कुछ समझाया शायद उसके समझ में   भी आया होगा और  ये सारा दृश्य घटा पूर्व प्रोफ़ेसर राजस्थान यूनिवर्सिटी  की उपस्थिति में ! कला समय समाज  में संस्कृति कुछ अन्य पहलुओं को भी ध्यान में रखना होता है  ये भी कलाकार और संस्कृति  कर्मियों का धर्म  है ! जिसका मैंने उस पल पालन करना उचित समझा और वो था भी !
वही उसी स्थान पर एक बुजुर्ग दादी  और उसकी पोती मेरे पास आकर बैठे उस दादी ने मुझसे एक बुजुर्ग की भांति परिचय लिया मेरे स्केच देखे और फिर मुझे एक नयी जानकारी दी की नागौर के पास भी एक करणी माता जी का मंदिर है वहाँ पर भी काबा है ( काबा यानी चूहे , यानी चारण जाती का प्रतिक ) .तो उन दादी ने एक नई जिज्ञासा बना दी दिमाग में उस नागौर स्थित करणी माता मंदिर की ! कब जाना होगा वहाँ माँ करणी ही जाने  !

करीब 7 :30  बजे मैने  माँ करणी जी को प्रणाम करते हुए वहाँ से प्रस्थान किया देशनोक स्थित दादा वाड़ी की और जहाँ कबीर यात्रा का भव्य स्टेज सझा हुआ था ! पहले पहल मुलाकात हुई मित्र गोपाल सिंह चौहान ( संचालक /संयोजक  कबीर यात्रा )  से मैंने उसे रे कबीरा की अलाप से ही सम्बोधित किया गाते हुए  ! फिर पंडाल का अवलोकन किया एक उचित स्थान वीआईपी चेयर वाली अंतिम पंक्ति वाली चेयर पर बैठा ! ताकि पूरा पंडाल और स्टेज आयी व्यू में रहे स्केच बनाने के लिए !  जब स्केच बना रहा था  अनेक बच्चे मेरे पास आये और लाइव स्केचिंग को होते हुए देखा कबीर यात्रा में ! उसी बिच मास्टर मनफूल सिंह चौधरी भी मेरे पास आये व्यवस्थापक देशनोक कबीर यात्रा , उन्होंने कहा आप बहुत  अच्छा कार्य  कर रहे हो इतने सारे बच्चे आर्ट से  इंटरैक्ट हो रहे है आप की वजह से !   तो अगर आप को कोई परेशां करे तो आप बोल देना  की मनफूल ने मुझे यहाँ बैठने को कहा है ! ( मैंने मुस्कराहट देते हुए अपनी गर्दन हिलादी )  व्यवस्था कैसे होती है ? आर्ट में आर्ट के लिए इसका प्रमाण भी मैंने वहाँ लाइव देखा ! कुछ देर बाद तो कबीर यात्रा  आयोजन  समिति के सदस्य मास्टर रवि शर्मा , मास्टर विकास शर्मा , मास्टर गिरिराज पुरोहित और मास्टर उपाध्याय आदि के साथ अन्य सदस्य भी मिले  तो  मास्टर  गिरिराज पुरोहित ने मेरे लिए गरम चाय की व्यवस्था भी की वीआईपी रैंक में जो कला के रिश्ते की बात को और पुख्ता कर गयी  दादा वाड़ी के उस कबीर यात्रा के पंडाल में !
वहीं मेरे पास वाली कुर्सी में एक छोटा बालक बैठा था जिसकी माता जी मुख्य कार्यकर्ता और उसके पिताजी उद्धघोषक बने हुए थे कबीर यात्रा 2024 देशनोक के !वो बालक बार बार   अपने माता पिता के पास जाने का जिद कर रहा था पर जैसे ही उसने लाइव स्केच होते देखे मेरी स्केच बुक में वो सब भूल गया और खो गया मेरी पेन्सिल की लाइन में ! अभिवयक्ति की प्रत्यक्ष रचना मानवीय अनुभूति को केंद्रित भाव की और लेजाती है एक नए संसार की अनुभूति करवाती है और यही कारण रहा होगा  इतिहास में बनी विशाल प्रतिमाओं और कलाकृतियों के निर्माण का जिसने राजा महाराजाओं को भी अनुभूति के केंद्रीय भाव की और मोड़ा और ऐतिहासिक कलाकृतियाँ  उनके काल खंड  उनके संगरक्षण में बनी  !
दिनांक 6 /10 /2024  को सुबह 11 बजे से रात्री 11 बजे तक मैंने करीब 300 स्केच ( लाइव स्केच )बनाये और फिर मेरी आयरन चेतक पर सवार होकर देशनोक माँ करणी जी के धाम से  मध्य रात्रि जोधपुर बीकानेर हाईवे से बीकानेर पहुंचा ! उस सुखद  धर्म और कला यात्रा का यात्रा वृतांत आप के लिए यहाँ कुछ लाइव स्केचेस के साथ साझा कर रहा हूँ !


  ( Kind  your information in this five days art journey I noticed many kids were connected to me they noticed to my creative practice sketching , or I explorer my sketching and sketchbook for them in their presence in osiya or Deshnok dham , i were connected to vision of kids in live art from my presence at there. It was great art achievement for me or may be for kids too. Because they were experience live art demo from myself . )

I sure After read to this both stories  you will accept , why the journey is must for a creative Artist in his / her art journey .

Overall in that five days I were gain lots or I were experienced very much from my art journey or I sure it will come in use of my real art journey in future . its live example is this post , I am sharing with  you my YATRA VRITANT for your knowledge of art and culture plus contemporary social life & conditions. I registered that in art form that was my sketching art .

So here I write about it   , 5 day’s I dedicated to sketching in my art journey ..

 

Yogendra  kumar purohit

Master of Fine Art

 Bikaner, INDIA   


 

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