Academic
Discuss On Rajasthani Literature
Friends Art and
Literature is a form of sculpture of our inner sound . Actually we have very
expressive nature so about express we need a form , a language for express to
our inner sound .
About this inner
expression we have unlimited languages and forms in our world . some social NGO
and academies are working for care to that expressions tools we are calling to
that language .
I am living in Bikaner
, you know Bikaner in Rajasthan or in Rajasthan we are using Rajasthani
Language for our Express to inner sound/ communication . by format of Government of INDIA this is not
a registered language . but some NGO and language /literature Academies are
accepting to it in a form of language. Actually they are caring to express way of Rajasthani
People , we are calling to that our
Mother Tong Rajasthani . in India many
languages have their own text form but Rajasthani is just a vowel language so
in writing this language have not own text form , its come in writing by text
of Hindi . but its sound is very different to hindi or other language of INDIA
or our world , I can say its only one unique language just like Hindi ,Urdu, English, Chinise or others.
On Desk Sir Santanu gangopadhyay or on stage Dr. Nand Bhardwaj , Dr. Arjun Dev Charan ...2017 BKN . |
Rajasthani Culture is
very old so Rajasthani language is also started with Rajasthani Culture , this
kind of think the Sahitya Academy New Delhi is Accepting or that’s team is
working for care to this very rich and Historical language of INDIA . I respectful
for our Sahitya Academy because they are really committed for care to Indian language
by literature activity or events.
Last week I was invited
for Rajasthani Literature event . The Sahitya Academy ( academy of Literature
New Delhi INDIA ) was organized a two days seminar at Neharu Sharda Pith ( P.
G. Collage ) Bikaner . this event was created by Mukti Sansthan or Rajasthani
Literature person Sir Arjun Dev Charan ( Adviser of Sahitya Academy for
Rajasthani language ) .
Literature person Sir
Rajendra Joshi and literature Publisher Mr. Prashant Bissa was managed to that
two day’s seminar in Bikaner . they were invited to all Rajasthani Literature
writers and started discuss on Rajasthani
writing in form of Critical Writing or about Rajasthani Novel . ( Nobel
) .
As a listener I was
part of that event, there I was registered to that historical event in My bahi
( bahi Mean Note book of daily business about Businessman ) by sketching work .
( art is My Business so I used to bahi )
In Hindi Language I did
wrote to note on that live language care event and updated on my facebook online networks or other networks ..
Here I want to share
that both Hindi Notes for your notice
and reading . ( about English reader , I think they will translate it by good
translator s )
Note -1
मित्रों
आज और कल के लिए मुझे निमंत्रण है साहित्य अकादमी नई दिल्ली की जानिब से
राजस्थानी साहित्य विधा पर चर्चा के लिए ! मेरी भूमिका वहाँ बतौर एक
श्रोता ही है पर वाचक के लिए श्रोता वो भी मेरे जैसा होना अति आवश्यक है !
क्यों कि मैं श्रोता की भूमिका के साथ कई अन्य भूमिका का भी निर्वाहन
करता हूँ बतौर एक कलाकार , ( फोटोग्राफी , रिपोर्टिंग जिसे मैं मेरी
डायरी, समय का सही सदुपयोग कैसे किया उसके बारे में आप के साथ साझा करता
हूँ आप के साथ साथ प्रोग्राम को आयोजित करने वाले या उस से सम्बंधित
व्यक्तित्वों से साझा करता हूँ ) यानी श्रोता होना मेरा, मात्र बीज होना
है , बीज के संकलन के उपरांत बीजारोपण,अंकुरण ,पोषण कला साहित्य के जरिये
कला साहित्य के लिए।
ये व्यंग नहीं हकीकत है मेरे कलात्मक जीवन की या यही यात्रा का रास्ता आप जो ठीक समझे !
आज फिर मुझे साहित्य अकादमी नई दिल्ली, मुक्ति संसथान और नेहरू शारदा पीठ पि जी कॉलेज ने आमंत्रित किया साहित्य समाहरोह के लिए जो आज और कल दो रोज तक जारी रहेगा ! आज राजस्थानी व्यंग पर चर्चा हुई ! राजस्थानी व्यंग कम लिखा जा रहा है पर राजस्थानी में व्यंग की भरमार है ये बात पुख्ता है ! * अखाणा * दोहे जैसी विधा जिसमे सिर्फ और सिर्फ व्यंग वो भी सांकेतिक पर असरदार ये मैं जनता हूँ ! क्यों कि मैंने मेरी नानी जी से हमेशा किसी न किसी बात पर अखाणा सुना है ! मैं उन्हें अक्सर कहता भी रहता था की आप इन्हे मुझे लिखवाये और उनका एक ही जवाब होता वो भी राजस्थानी में की कोई बात होवे जणे बात माथे बात याद आवे और अखाणा बोलिज जावे ! ये है असली राजस्थानी व्यंग और उसकी रहस्य्मयी कहानी जो राजस्थानी लोक संस्कृति में ही विध्यमान है जो बात बात पर सामने आती है सांकेतिक साहित्यिक व्यंग के साथ !
खेर आज समारोह में स्थान रहा नेहरू शारदा पीठ का सभागार जिसे वातानुकूलित बनाया गया इस भीषण गर्मी में सो साधुवाद नेहरू शारदा पीठ के प्रिंसिपल श्री प्रशांत बिस्सा जी और उनकी पूरी टीम को !
मुक्ति संसथान के श्री राजेंद्र जोशी जी ने समारोह का सञ्चालन और संयोजन किया जो अतीत के समस्त कार्यक्रमों से भिन्न था ! स्थान का चयन भी शिक्षण संसथान ये अपने आप में महत्व पूर्ण बात रही इस समारोह की ! परिवर्तन कला / साहित्य स्वयं ही लाता है जीवन में साधना उसकी चाहे किसी भी रूप में करो ! मन , और शरीर कि शुद्धि के बाद साहित्य विचार और आत्मा की भी शुद्धि स्वतः ही स्वाभाविक रूप से करता है ! इसमें कोई दो राय नहीं ! ये व्यंग नहीं सत्य है आप व्यंग समझ सकते है मैं रोकूंगा नहीं !
आज उद्घाटन सत्र के बाद चाय का मध्यांतर फिर प्रथम सत्र , के बाद भोजन के लिए मध्यांतर के बाद द्वितीय सत्र और फिर चाय के मध्यांतर के बाद अंतिम सत्र रखा गया ! जिसमे सिर्फ और सिर्फ व्यंग राजस्थानी व्यंग विधा पर कई पर्चे पढ़े गए और राजस्थानी भाषा विदो ने राजस्थानी व्यंग विधा के कम लिखे जाने की चिंता को सबके समक्ष साहित्य अकादमी के मंच से स्वीकारा !
जानकरी के लिए बताना चाहूँगा टेक्स्ट फोटोग्राफी नाम से ३६५ दिन तक मैंने भी राजस्थानी को प्रतिबद्ध होकर लिखा था फेसबुक पर वे टेक्स्ट फोटो आज भी सुरक्षित है जिसमे मैंने कई जिवंत व्यंग राजस्थानी में लिखे थे ! फेसबुक पर तो सब ने सराहा पर राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति अकादमी ने उसे अस्वीकार कर दिया ! अब चिंता क्यों कर रहे है जब स्वीकार ही नहीं कर रहे राजस्थानी की लेखनी को राजस्थानी साहित्य अकादमी ही ? प्रश्न है , कोई शंका नहीं !
वैसे आज साहित्यकार श्री शंकर सिंह राजपुरोहित ने अपनी राजस्थानी व्यंग विधा की पुस्तक का लोकार्पण साहित्य अकादमी के मंच से किया जिसके साक्षी रहे साहित्यकार श्री अर्जुनदेव चारण साहित्य अकादमी के राजस्थानी भाषा के सलाहकार की भूमिका में !
आज के सत्र में उपस्थित रहे साहित्यकार , श्री अर्जुन देव चारण , श्री मदन केवलिया जी , श्री श्याम जांगिड़ जी , श्री चेतन स्वामी जी, श्री ओम नागर ( जिन्हे मुझे भी पुष्प गुच्छ प्रेषित करने का अवसर संचालक साहित्यकार हरीश बी शर्मा ने दिया ) , श्री श्याम सुन्दर भारती , श्री शंकर सिंह राजपुरोहित , श्री राजेंद्र जोशी जी , श्री मधु आचार्य आशावादी ,श्री बुलाकी शर्मा जी ! इन सब प्रबुद्ध साहित्यकारों ने राजस्थानी व्यंग विधा के विषय पर अपने अपने सत्र में विस्तार से अपनी बात को रखा ! जिसे साहित्य अकादमी के कन्वीनर साहित्यकार श्री सान्तनु गणगोपाध्याय जी ने नोटिस किया साहित्य अकादमी के लिए !
मैंने भी व्यंग साहित्य की चर्चा में चुटकी ली ! आज से देश जी एस टी की धारा में आगया है ! मैंने अपनी बही जिसमे मैं स्केच बनता रहा हूँ को लेकर गया अपने साथ और वहाँ सभागार मे बैठकर पुरे समारोह को स्केच फॉर्म में रजिस्टर किया ! सब ने जिज्ञासा वस् पूछा की ये बही किस लिए मैंने जवाब दिया आज से जी एस टी लागु है देश में , सो बही खता जरुरी , अब सुनने का भी टेक्स लगेगा। .हा हा हा ( कोरा व्यंग पर कलात्मक ) !
मित्र डॉ. नमामि शंकर आचार्य , डॉ. गौरीशंकर प्रजापत डॉ. सत्यनारायण सोनी जी से भी मुलाकात हुई तो हथाई राजस्थानी मेगज़ीने के संपादक श्री भारत ओला जी ने अपनी मैगज़ीन हथाई के लिए मुझ से कुछ चित्र भी मांगे अपने अगले संस्करण के लिए ! मेरा स्केच करना उन्हें अच्छा लगा उनके कला प्रेम के लिए मैंने उन्हें चित्र की छवि तथा आज के समारोह के बने स्केच देने की स्वीकृति दी है ! उन्हें इ मेल करूँगा स्केच और मेरे चित्रों का एक समूह! पोएटिक है पता नहीं प्रकाशन में लेंगे भी की नहीं ! मेरे चित्र आत्म यात्रा है कोई फ़ंतासी नहीं बिना फ़ंतासी आज कल कुछ बिकता नहीं और बिकेगा तो जी एस टी का भी तो सोचना पड़ेगा प्रकाशक जी को ( एक छोटा व्यंग पर सटीक और सच के साथ )
कुल मिलाकर आज का दिन का समय मैंने साहित्य अकादमी और राजस्थानी साहित्य को समर्पित किया है जिसके कुछ जीवन पल के दृश्य आप के लिए ! मेरे कैमरा और स्केच पेन और बही की जानिब से अवलोकन हेतु !
समारोह कल पुनः १० : ३० पर ठीक आज की तरह ११ : १५ बजे आरम्भ होगा या उससे पहले इस्वर ही जाने पर मुझे जाना है ऐसा मेरा मन है और मन की बात कहना मानव धर्म है सो कह दिया ( फिर से छोटे व्यंग में )
ये व्यंग नहीं हकीकत है मेरे कलात्मक जीवन की या यही यात्रा का रास्ता आप जो ठीक समझे !
आज फिर मुझे साहित्य अकादमी नई दिल्ली, मुक्ति संसथान और नेहरू शारदा पीठ पि जी कॉलेज ने आमंत्रित किया साहित्य समाहरोह के लिए जो आज और कल दो रोज तक जारी रहेगा ! आज राजस्थानी व्यंग पर चर्चा हुई ! राजस्थानी व्यंग कम लिखा जा रहा है पर राजस्थानी में व्यंग की भरमार है ये बात पुख्ता है ! * अखाणा * दोहे जैसी विधा जिसमे सिर्फ और सिर्फ व्यंग वो भी सांकेतिक पर असरदार ये मैं जनता हूँ ! क्यों कि मैंने मेरी नानी जी से हमेशा किसी न किसी बात पर अखाणा सुना है ! मैं उन्हें अक्सर कहता भी रहता था की आप इन्हे मुझे लिखवाये और उनका एक ही जवाब होता वो भी राजस्थानी में की कोई बात होवे जणे बात माथे बात याद आवे और अखाणा बोलिज जावे ! ये है असली राजस्थानी व्यंग और उसकी रहस्य्मयी कहानी जो राजस्थानी लोक संस्कृति में ही विध्यमान है जो बात बात पर सामने आती है सांकेतिक साहित्यिक व्यंग के साथ !
खेर आज समारोह में स्थान रहा नेहरू शारदा पीठ का सभागार जिसे वातानुकूलित बनाया गया इस भीषण गर्मी में सो साधुवाद नेहरू शारदा पीठ के प्रिंसिपल श्री प्रशांत बिस्सा जी और उनकी पूरी टीम को !
मुक्ति संसथान के श्री राजेंद्र जोशी जी ने समारोह का सञ्चालन और संयोजन किया जो अतीत के समस्त कार्यक्रमों से भिन्न था ! स्थान का चयन भी शिक्षण संसथान ये अपने आप में महत्व पूर्ण बात रही इस समारोह की ! परिवर्तन कला / साहित्य स्वयं ही लाता है जीवन में साधना उसकी चाहे किसी भी रूप में करो ! मन , और शरीर कि शुद्धि के बाद साहित्य विचार और आत्मा की भी शुद्धि स्वतः ही स्वाभाविक रूप से करता है ! इसमें कोई दो राय नहीं ! ये व्यंग नहीं सत्य है आप व्यंग समझ सकते है मैं रोकूंगा नहीं !
आज उद्घाटन सत्र के बाद चाय का मध्यांतर फिर प्रथम सत्र , के बाद भोजन के लिए मध्यांतर के बाद द्वितीय सत्र और फिर चाय के मध्यांतर के बाद अंतिम सत्र रखा गया ! जिसमे सिर्फ और सिर्फ व्यंग राजस्थानी व्यंग विधा पर कई पर्चे पढ़े गए और राजस्थानी भाषा विदो ने राजस्थानी व्यंग विधा के कम लिखे जाने की चिंता को सबके समक्ष साहित्य अकादमी के मंच से स्वीकारा !
जानकरी के लिए बताना चाहूँगा टेक्स्ट फोटोग्राफी नाम से ३६५ दिन तक मैंने भी राजस्थानी को प्रतिबद्ध होकर लिखा था फेसबुक पर वे टेक्स्ट फोटो आज भी सुरक्षित है जिसमे मैंने कई जिवंत व्यंग राजस्थानी में लिखे थे ! फेसबुक पर तो सब ने सराहा पर राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति अकादमी ने उसे अस्वीकार कर दिया ! अब चिंता क्यों कर रहे है जब स्वीकार ही नहीं कर रहे राजस्थानी की लेखनी को राजस्थानी साहित्य अकादमी ही ? प्रश्न है , कोई शंका नहीं !
वैसे आज साहित्यकार श्री शंकर सिंह राजपुरोहित ने अपनी राजस्थानी व्यंग विधा की पुस्तक का लोकार्पण साहित्य अकादमी के मंच से किया जिसके साक्षी रहे साहित्यकार श्री अर्जुनदेव चारण साहित्य अकादमी के राजस्थानी भाषा के सलाहकार की भूमिका में !
आज के सत्र में उपस्थित रहे साहित्यकार , श्री अर्जुन देव चारण , श्री मदन केवलिया जी , श्री श्याम जांगिड़ जी , श्री चेतन स्वामी जी, श्री ओम नागर ( जिन्हे मुझे भी पुष्प गुच्छ प्रेषित करने का अवसर संचालक साहित्यकार हरीश बी शर्मा ने दिया ) , श्री श्याम सुन्दर भारती , श्री शंकर सिंह राजपुरोहित , श्री राजेंद्र जोशी जी , श्री मधु आचार्य आशावादी ,श्री बुलाकी शर्मा जी ! इन सब प्रबुद्ध साहित्यकारों ने राजस्थानी व्यंग विधा के विषय पर अपने अपने सत्र में विस्तार से अपनी बात को रखा ! जिसे साहित्य अकादमी के कन्वीनर साहित्यकार श्री सान्तनु गणगोपाध्याय जी ने नोटिस किया साहित्य अकादमी के लिए !
मैंने भी व्यंग साहित्य की चर्चा में चुटकी ली ! आज से देश जी एस टी की धारा में आगया है ! मैंने अपनी बही जिसमे मैं स्केच बनता रहा हूँ को लेकर गया अपने साथ और वहाँ सभागार मे बैठकर पुरे समारोह को स्केच फॉर्म में रजिस्टर किया ! सब ने जिज्ञासा वस् पूछा की ये बही किस लिए मैंने जवाब दिया आज से जी एस टी लागु है देश में , सो बही खता जरुरी , अब सुनने का भी टेक्स लगेगा। .हा हा हा ( कोरा व्यंग पर कलात्मक ) !
मित्र डॉ. नमामि शंकर आचार्य , डॉ. गौरीशंकर प्रजापत डॉ. सत्यनारायण सोनी जी से भी मुलाकात हुई तो हथाई राजस्थानी मेगज़ीने के संपादक श्री भारत ओला जी ने अपनी मैगज़ीन हथाई के लिए मुझ से कुछ चित्र भी मांगे अपने अगले संस्करण के लिए ! मेरा स्केच करना उन्हें अच्छा लगा उनके कला प्रेम के लिए मैंने उन्हें चित्र की छवि तथा आज के समारोह के बने स्केच देने की स्वीकृति दी है ! उन्हें इ मेल करूँगा स्केच और मेरे चित्रों का एक समूह! पोएटिक है पता नहीं प्रकाशन में लेंगे भी की नहीं ! मेरे चित्र आत्म यात्रा है कोई फ़ंतासी नहीं बिना फ़ंतासी आज कल कुछ बिकता नहीं और बिकेगा तो जी एस टी का भी तो सोचना पड़ेगा प्रकाशक जी को ( एक छोटा व्यंग पर सटीक और सच के साथ )
कुल मिलाकर आज का दिन का समय मैंने साहित्य अकादमी और राजस्थानी साहित्य को समर्पित किया है जिसके कुछ जीवन पल के दृश्य आप के लिए ! मेरे कैमरा और स्केच पेन और बही की जानिब से अवलोकन हेतु !
समारोह कल पुनः १० : ३० पर ठीक आज की तरह ११ : १५ बजे आरम्भ होगा या उससे पहले इस्वर ही जाने पर मुझे जाना है ऐसा मेरा मन है और मन की बात कहना मानव धर्म है सो कह दिया ( फिर से छोटे व्यंग में )
Note -2
मित्रों
कल की तरह मैं आज भी समय पर उपस्थित हुआ नेहरू शारदा पीठ पि जी कॉलेज,
बीकानेर पर जहाँ दो रोज से साहित्य अकादमी नई दिल्ली राजस्थानी साहित्य
पर चर्चा को जारी रखे हुए है ! कल व्यंग विधा पर चर्चा हुई तो आज प्रथम
सत्र में राजस्थानी भाषा के सलाहकार साहित्य अकादमी के डॉ. अर्जुन देव चारण
जी ने पहले ही यह बात स्पष्ट करदी मंच से की मैं रंग साहित्य का लेखक हूँ
और आज चर्चा का विषय है उपन्यास तो आज पुरे दिन जो भी साहित्यकार इस चर्चा
में अपना परचा पढ़े वो ये जानकारी जरूर साझा करे की कहानी और उपन्यास के
अंतर क्या है और ऐसी कौनसी पेच है जो उपन्यास और कहानी को अलग अलग परिभाषा
में परिभाषित करती है ! ये उनकी जिज्ञासा भी थी और साहित्य अकादमी के
राजस्थानी भाषा साहित्य के सलाहकार के रूप में उनके लिए एक टास्क भी था !
जानकारी अर्जित करने का आज के सन्दर्भ में राजस्थानी उपन्यास विषय का ,
चर्चा और परचा से ! उन्होंने ये जिज्ञासा डॉ. नन्द भारद्वाज जी और साहित्य
अकादमी के कन्वीनर श्री सांतनु गंगोपाध्याय जी की उपस्थिति में मंच से
कही !
प्रथम और द्वितीय सत्र में कुल तीन पर्चे पढे गये ! जिन्हे पढ़ा डॉ. नीरज दइया जी ने, साहित्यकार नवीनित पाण्डेय जी ने और डॉ. सत्यनारायण सोनी जी ने !
तीनो पर्चों में तीनो साहित्यकारों ने अपने अपने तरीके से उपन्यास की व्याख्या , संख्या और एतिहासिक खाका पर्चो के मार्फ़त सबके सामने रखा मंच से ! पर डॉ. अर्जुन देव चारण जी की जिज्ञासा और चर्चा का उदेश्य कही अधर में ही लटकता प्रतीत हुआ मुझे ! कोतुहल वस् मैंने भी सभी सत्र बड़े इत्मीनान से सुने इस जिज्ञासा के साथ की शायद उपन्यास कैसे लिखा जाता है इस पर कोई विशेष तकनीक या फार्मूला या आंटा कोई पत्रवाचक सबके समक्ष रखेगा ! पर ऐसा नहीं हुआ ! सो उपन्यास विषय पर हुई चर्चा कोई विशेष असरदार नहीं रही सिवाय ऐतिहासिक प्रमाण के संकलन की सूचना और उपन्यासकारों के उपन्यास के कुछ अंश ही सुन ने को मिले मंच से ! एक के बाद एक पत्र वाचक आये और गए , उस पल मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो मैं कोई कटी पतंग को पकड़ने की कोशिश में हूँ और जैसे ही पतंग की डोर को पकड़ने को हाथ आगे करता हूँ तो वो पतंग हवा के रुख के साथ विपरीत दिशा में घूम जाती है कुल मिलाकर उपन्यास लिखने की विधा की बात और जिज्ञासा वही की वही स्थिर नजर आती है ! उस कटी पतंग की भांति ... !
तो दूसरे अर्थ ( व्यंग ) में बीकानेर में बी के स्कुल की कचोरी बहुत प्रसिद्ध है ! दरसल बी के स्कुल की बिल्डिंग के एक हिस्से में एक कचोरी बनाने वाले कारीगर अपने मूल्यों पर ही कचोरी के स्वाद को स्थिर रखते हुए दो पीढ़ी तक एक स्वाद को एक रहस्य की तरह गुप्त रखते हुए सब स्वाद के रसिकों की जीभ तक पहुंचाते रहे है, और ये उपक्रम आज भी जारी है ! स्थान परिवर्तन के उपरांत भी स्वाद की परख वाले आज भी उन्ही की कचोरी खाते है ! उन कचोरी निर्माता ने अपने पुराने प्रसिद्ध स्थान को किसी ोरो को देदिया पर कचोरी के स्वाद का वो रहस्य आज तक किसी और को नहीं दिया ! बीकानेर के कई अच्छे कचोरी बनाने वाले आज भी तब मायूस हो जाते है जब उनके आगे कोई कहे की कचोरी तो बी के स्कुल वाली ! ऐसा ही कुछ मुझे आज के राजस्थानी उपन्यास विषय की चर्चा में महसूस हुआ एक के बाद एक परचा मंच से पढ़ा गया पर किसी भी लेखक ने ये नहीं बताया की उपन्यास कैसे रचा जाता है ! उन्होंने उपन्यास के तत्वों की बात की पर वे तत्व कौन से है ये नहीं बताया या बता नहीं सके इस्वर ही जाने ! कारण अब चाहे कुछ भी रहा हो पर था जरूर !
उपन्यास लेखन मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई ऐसी विधा या विधि जिस से चमत्कार किया जा सकता है ! जैसे की अतीत में कुछ उस्ताद लोग पारस पत्थर से सोने का सृजन करते थे ! वो विद्या भी गुप्त थी और कुछ लोगो ने उसे अपने पास ही सिमित रखा संकुचन या भय के कारण !
कुल मिलाकर आज का राजस्थानी उपन्यास विषय पर हुई चर्चा मुझे संतुष्ट नहीं कर पायी और मैं संतुष्ट नहीं तो डॉ. अर्जुनदेव चारण कैसे संतुष्ट हो सकते है ! क्यों की वे जानते है की उनके लिखे , अभिनीत किये या निर्देशित किये कला अभिव्यक्ति या आयोजन में कमी कहा रही है ! उन्हें प्रस्तुति देने के साथ ही ज्ञात हो जाता है ! क्यों की वे प्रतिबद्ध है अपने सृजन और आयोजन के लिए !
राजस्थानी उपन्यास के सन्दर्भ में आज साहित्यकार डॉ. नन्द भारद्वाज जी, डॉ. अर्जुन देव चारण जी , श्री सांतनु गंगोपाध्याय जी, डॉ. नीरज दइया जी , डॉ. सत्यनारायण सोनी जी ,साहित्यकार नवनीत पाण्डेय जी , श्री देव किशन जी, श्री भरत ओला जी , श्री मालचंद तिवाडी जी , श्री मधु आचार्य जी ने अपने अपने विचार , अनुभूति , अभिव्यक्ति की संभावना और अधिक लिखने के सन्दर्भ/तर्क मंच से कहे जो मेरे लिए न काफी ही थे साहित्य अकादमी के समारोह को देखते हुए !
पर फिर भी दो रोज में करीब २० साहित्यकारों को जो की राजस्थानी भाषा के लिए प्रतिबद्ध होकर लिखने का कार्य कर रहे है उन्हें सुन ने समझने का अवसर मिला ! सो साधुवाद साहित्य अकादमी को ,
समारोह को गरिमा प्रदान की नेहरू शारदा पीठ पि जी कोलाज बीकानेर के प्रिंसिपल श्री प्रशांत बिस्सा जी ने और उनकी पूरी टीम ने ! उन्होंने जाहिर किया की जहाँ चाह वहाँ राह ! इस तेज गर्मी में वातानुकूलित सभागार ! शीतल जल की वयस्था /चाय भोजन आदि भी मौसम के अनुरूप ताकि किसी को परेशानी न हो ! सो ऍन एस पि ने सिद्ध किया की उनकी टीम प्रतिबद्ध है राजस्थानी साहित्य को पोषित करने में ! उनके इस पोषण कार्य के लिए साधुवाद पूरी टीम को !
आज भी मैंने राजस्थानी उपन्यास विधा पर हुई निरर्थक सी चर्चा के मध्य स्केच बनाये मेरी बही में ! जिसे कई साहित्यकारों ने नोटिस किया तो डॉ. दिनेश सेवग ( ऍन एस पि ) ने मेरे स्केच बनाते हुए के कई फोटो और एक दो विडिओ भी बनाया ) उनके भीतर भी एक कलाकार बस्ता है ये मैंने मौन रूप से उनमे पाया ! पर उपन्यास कैसे लिखे ये आज पुरे दिन समझ नहीं आया ! ( अब क्या करे भाया लेखक तो खूब तत्वा रे गुणा सागे गप सागे उपन्यास लिखाण रा कई फार्मूला भी सुझाया पर बे माहरे पले कोणी आया !
साहित्य अकादमी , नई दिल्ली , मुक्ति संसथान और नेहरू शारदा पीठ को साधुवाद क्यों कि उन्होंने मुझे दो दिन राजस्थानी साहित्य के बारे मे फिर से चिंतन करने को अवसर उपलब्ध करवाया !
यहाँ कुछ फोटो राजस्थानी उपन्यास की विधि की गुथी को समझने और समझाने के सत्रों के साथ मेरे स्केचेस के भी आप के अवलोकन हेतु !
प्रथम और द्वितीय सत्र में कुल तीन पर्चे पढे गये ! जिन्हे पढ़ा डॉ. नीरज दइया जी ने, साहित्यकार नवीनित पाण्डेय जी ने और डॉ. सत्यनारायण सोनी जी ने !
तीनो पर्चों में तीनो साहित्यकारों ने अपने अपने तरीके से उपन्यास की व्याख्या , संख्या और एतिहासिक खाका पर्चो के मार्फ़त सबके सामने रखा मंच से ! पर डॉ. अर्जुन देव चारण जी की जिज्ञासा और चर्चा का उदेश्य कही अधर में ही लटकता प्रतीत हुआ मुझे ! कोतुहल वस् मैंने भी सभी सत्र बड़े इत्मीनान से सुने इस जिज्ञासा के साथ की शायद उपन्यास कैसे लिखा जाता है इस पर कोई विशेष तकनीक या फार्मूला या आंटा कोई पत्रवाचक सबके समक्ष रखेगा ! पर ऐसा नहीं हुआ ! सो उपन्यास विषय पर हुई चर्चा कोई विशेष असरदार नहीं रही सिवाय ऐतिहासिक प्रमाण के संकलन की सूचना और उपन्यासकारों के उपन्यास के कुछ अंश ही सुन ने को मिले मंच से ! एक के बाद एक पत्र वाचक आये और गए , उस पल मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो मैं कोई कटी पतंग को पकड़ने की कोशिश में हूँ और जैसे ही पतंग की डोर को पकड़ने को हाथ आगे करता हूँ तो वो पतंग हवा के रुख के साथ विपरीत दिशा में घूम जाती है कुल मिलाकर उपन्यास लिखने की विधा की बात और जिज्ञासा वही की वही स्थिर नजर आती है ! उस कटी पतंग की भांति ... !
तो दूसरे अर्थ ( व्यंग ) में बीकानेर में बी के स्कुल की कचोरी बहुत प्रसिद्ध है ! दरसल बी के स्कुल की बिल्डिंग के एक हिस्से में एक कचोरी बनाने वाले कारीगर अपने मूल्यों पर ही कचोरी के स्वाद को स्थिर रखते हुए दो पीढ़ी तक एक स्वाद को एक रहस्य की तरह गुप्त रखते हुए सब स्वाद के रसिकों की जीभ तक पहुंचाते रहे है, और ये उपक्रम आज भी जारी है ! स्थान परिवर्तन के उपरांत भी स्वाद की परख वाले आज भी उन्ही की कचोरी खाते है ! उन कचोरी निर्माता ने अपने पुराने प्रसिद्ध स्थान को किसी ोरो को देदिया पर कचोरी के स्वाद का वो रहस्य आज तक किसी और को नहीं दिया ! बीकानेर के कई अच्छे कचोरी बनाने वाले आज भी तब मायूस हो जाते है जब उनके आगे कोई कहे की कचोरी तो बी के स्कुल वाली ! ऐसा ही कुछ मुझे आज के राजस्थानी उपन्यास विषय की चर्चा में महसूस हुआ एक के बाद एक परचा मंच से पढ़ा गया पर किसी भी लेखक ने ये नहीं बताया की उपन्यास कैसे रचा जाता है ! उन्होंने उपन्यास के तत्वों की बात की पर वे तत्व कौन से है ये नहीं बताया या बता नहीं सके इस्वर ही जाने ! कारण अब चाहे कुछ भी रहा हो पर था जरूर !
उपन्यास लेखन मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई ऐसी विधा या विधि जिस से चमत्कार किया जा सकता है ! जैसे की अतीत में कुछ उस्ताद लोग पारस पत्थर से सोने का सृजन करते थे ! वो विद्या भी गुप्त थी और कुछ लोगो ने उसे अपने पास ही सिमित रखा संकुचन या भय के कारण !
कुल मिलाकर आज का राजस्थानी उपन्यास विषय पर हुई चर्चा मुझे संतुष्ट नहीं कर पायी और मैं संतुष्ट नहीं तो डॉ. अर्जुनदेव चारण कैसे संतुष्ट हो सकते है ! क्यों की वे जानते है की उनके लिखे , अभिनीत किये या निर्देशित किये कला अभिव्यक्ति या आयोजन में कमी कहा रही है ! उन्हें प्रस्तुति देने के साथ ही ज्ञात हो जाता है ! क्यों की वे प्रतिबद्ध है अपने सृजन और आयोजन के लिए !
राजस्थानी उपन्यास के सन्दर्भ में आज साहित्यकार डॉ. नन्द भारद्वाज जी, डॉ. अर्जुन देव चारण जी , श्री सांतनु गंगोपाध्याय जी, डॉ. नीरज दइया जी , डॉ. सत्यनारायण सोनी जी ,साहित्यकार नवनीत पाण्डेय जी , श्री देव किशन जी, श्री भरत ओला जी , श्री मालचंद तिवाडी जी , श्री मधु आचार्य जी ने अपने अपने विचार , अनुभूति , अभिव्यक्ति की संभावना और अधिक लिखने के सन्दर्भ/तर्क मंच से कहे जो मेरे लिए न काफी ही थे साहित्य अकादमी के समारोह को देखते हुए !
पर फिर भी दो रोज में करीब २० साहित्यकारों को जो की राजस्थानी भाषा के लिए प्रतिबद्ध होकर लिखने का कार्य कर रहे है उन्हें सुन ने समझने का अवसर मिला ! सो साधुवाद साहित्य अकादमी को ,
समारोह को गरिमा प्रदान की नेहरू शारदा पीठ पि जी कोलाज बीकानेर के प्रिंसिपल श्री प्रशांत बिस्सा जी ने और उनकी पूरी टीम ने ! उन्होंने जाहिर किया की जहाँ चाह वहाँ राह ! इस तेज गर्मी में वातानुकूलित सभागार ! शीतल जल की वयस्था /चाय भोजन आदि भी मौसम के अनुरूप ताकि किसी को परेशानी न हो ! सो ऍन एस पि ने सिद्ध किया की उनकी टीम प्रतिबद्ध है राजस्थानी साहित्य को पोषित करने में ! उनके इस पोषण कार्य के लिए साधुवाद पूरी टीम को !
आज भी मैंने राजस्थानी उपन्यास विधा पर हुई निरर्थक सी चर्चा के मध्य स्केच बनाये मेरी बही में ! जिसे कई साहित्यकारों ने नोटिस किया तो डॉ. दिनेश सेवग ( ऍन एस पि ) ने मेरे स्केच बनाते हुए के कई फोटो और एक दो विडिओ भी बनाया ) उनके भीतर भी एक कलाकार बस्ता है ये मैंने मौन रूप से उनमे पाया ! पर उपन्यास कैसे लिखे ये आज पुरे दिन समझ नहीं आया ! ( अब क्या करे भाया लेखक तो खूब तत्वा रे गुणा सागे गप सागे उपन्यास लिखाण रा कई फार्मूला भी सुझाया पर बे माहरे पले कोणी आया !
साहित्य अकादमी , नई दिल्ली , मुक्ति संसथान और नेहरू शारदा पीठ को साधुवाद क्यों कि उन्होंने मुझे दो दिन राजस्थानी साहित्य के बारे मे फिर से चिंतन करने को अवसर उपलब्ध करवाया !
यहाँ कुछ फोटो राजस्थानी उपन्यास की विधि की गुथी को समझने और समझाने के सत्रों के साथ मेरे स्केचेस के भी आप के अवलोकन हेतु !
https://www.facebook.com/yogendra.purohit.7/posts/10211265230921223 |
So this post is a
thanks to Sahitya Akademy or that’s convener
Sir Santanu Gangopadhyay , because he was observer of that live
rajasthani literature event by side of Sahitya Academy New Delhi .
In that two days I noticed
some positive and some negative views but they all rajasthani literature persons
and writers were discussed on rajasthani language or that’s care .
so here I said academic
discuss on Rajasthani Literature …
Yogendra Kumar Purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA
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