Sunday, August 16

Art Vibration..4


"Just Enjoy art with me..”

It is my only message to my all artist friend and art lover and all art visitor .
Some one ask to me why I am saying this message to all again and again..?
I want to say about it art mean is just for refreshment of mind , heart and body so why I am not tell to all this message “JUST ENJOY ART WITH ME..”
I have master in Fine Art and I have read lots of art text and art history by book and by art work visuals. and I find a one message from all art history and art visuals “Art Just for Enjoy ”but its very must if we know , what we are enjoy from our self.
I think on the word of ENJOY and I find some logic ,here I want to share it .enjoy is a matter of inner sound of Human body, its start from a mind vision and by inner requirement of human body. I find the real mean of enjoy. It is self satisfaction from every where but when, then our Inner requirement is demanding of us.
The life live always practical and we can’t leave this life its fact. In that case we face lots of trouble and pain of mind , body and in heart .its result is we face depression, sadness, mentally tired And practical life will not stop it for us. it will create it for us again and again.
So a one question is start where we go for feel free and feel light form inner side of mind and body its answer is one and only “ART ”
I think about art, art is a very big dust been it can accept your all inner zik- zek (puzzle)condition , sadness and unwanted pain of practical life.
‘ART ” the mean of wild space for full peace with full freedom. Art have the process of give and take. Art always giving the peace and freedom of heart and taking the pain of heart and pain of practical life.
“ART “ it is a journey of peace and its start from the artist, A Artist feel some Zik-Zak and some good feeling in inner side of mind and body then he create some , after visit that we are saying it is Art but actually that is activity of inner sound by some medium of earth for get freedom of inner sound by expression of artist . Artist feel Free After Express his inner motion activity by his self and after that Art is doing Start the journey in society with same process of give and take. In our human society every one are can’t express his inner sound by other medium of this earth because they are weak to mind and they don’t know how to express inner sound. They are full pack from practical life they have no time for express his /her inner sound so where they go for feel freedom and enjoy. The Art invite him and her with his /her inner pain and trouble of practical life. basically in our society we can see the art definition in visuals ,text and music. And a great art master BHART MUNI define it in a Theater and Dram in INDIA. That Theater have a new look by technology and to day we are saying it Cinema. It’s have all three art presentation in a one frame. It’s part of visual art. Some artist express his inner sound by line & color on space we are saying to that is painting(I am painter) and some one create form stone & metal with three dimension we are saying that is sculpture .its all art creation is part of visual art. Some people express his inner sound by text we are saying to him and her they are writer but A Indian philosopher Dr. Haridwari prasad Shastri have told the text is a also drawing of inner sound so we are express our inner sound with symbol by text(Drawing) and society communicate it by his /herself. Music its very freedom full medium of artist. It’s base on self sound of body with inner sound. it’s not want any medium of earth. Only music can touch your inner sound without any medium direct heart to heart.
Artist have leaved the creation of expression in society and his art invite to all the society just catch and observe the sound of art by his/her sensors in that cash they are forget his and her practical life and inner pain that’s all. It’s the real target of Art in our society. A common man when visit and listen any form of art that time his mind just think only his visit and listening topic in that moment art have done start the work of take the pain of visitor and listener, after visited the cinema , painting exhibition he feel very light because he forget his past condition before the art visit ,he had forget all and enjoy the art visuals , cinema and some music track….in his practical life time. its very tuff but art can do it in all condition. It’s art power because its very pure sound of human inner sound.
So tell me why I am not say this line to my all art lovers , visitors and to common art visitors ..JUST ENJOY ART WITH ME….! ha..

Yogendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INDIA

Monday, May 25

Art vibration..3

i have been wrote this article in 1999 to 2002 and *Denik Yugpaksh* news paper had published it .. i am very thankful for the *Denik Yugpaksh* News paper..









Monday, April 27

Art vibration..2


‘‘कला के क्षेत्र में बीकानेरी युवा शक्ति
सर्व प्रथम मैं आपका ध्यान इस पत्र के माध्यम से कला की तरफ ले जाना चाहुँगा! क्योंकि बीकानेर की कला में युवा शक्ति के योगदान को तभी समझा जा सकता है, ऐसा मेरा मत है !

कला एक विस्तृत विषय है जिसे शब्दों में बांधना नामुमकिन सा है या इसे युं कहा जाये कि कला को शब्दों की आव’यकता नही ,तो ये गलत नहीं होगी ! कला स्वयं मुक्त है और मुक्मि का मार्ग भी। कला अन्र्तमन की अभिव्यक्ति है और मन का प्रतिम्बि भी ! कला निरंतर है और निरंतर के बाद भी ! कला के बारे में कई कला चिंतको ने अपने वैचारिक मंथन से कला के तर्क समाज के सामने रखे हैं, यहाँ में फ्रायड (मनोचिकित्सक व कला विचारक) के कला तर्क को रख रहा हुँ, फ्रायड लिखते हैं मन के तीन स्तर होते हैं जिनके आधार पर कला का रूप ओर उसकी अभिव्यक्ति का निर्माण होता है! फ्रायड ने मन के तीन स्तर खोजे हैं पहला - अचेतन, दुसरा - अर्धचेतन, तीसरा - चेतन, इसकी व्याख्या करते हुए फ्रायड कहते हैं कला अचेतन मन की क्रिया है ओर अचेतन मन वो है जिसमें मानसिक कुनठाएं, दबी हुई इच्छाएं व भावनाओं का जहाँ जन्म होता है , फ्रायड के मतानुसार ये अचेतन मन की कुनठाएं, इच्छाएं और भावनाएं एक मानसिक आवेग बनाती है ये मानसिक आवेग अर्धचेतन मन के माध्यम से चेतन मन तक पहुँचाई जाती है फिर चेतन मन उस भावनात्मक सामग्री को अभिव्यक्ता की इन्द्रीयों के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करवाता है, जिसे समाज या हम लोग कला अभिव्यक्ति कहते हैं। इसी तर्क के साथ में एक ओर कला चिंतक का कला तर्क रखना चाहुँगा! दार्शनिक श्री हरिद्वारी प्रसाद शास्त्री कला के बारे में अपना एक अलग तर्क रखते हैं वे बड़े सहज रूप से कहते हैं कि कला बुद्वी का व्यापार है, अतः जितना आप बौद्विक स्तर पर किसी कला पर निरंतर चिंतन करेंगे तो उस कला का ज्ञान आप में स्वतः विकसित होता जायेगा ओर हरिद्वारी जी के इस कला तर्क से मैं पूर्ण रूप से सहमत हुँ ! साथ ही उन्होने चित्रकला के लिये एक तर्क ये भी कहा कि चित्रकला सर्वश्रेष्ठ है । क्योंकि शब्द भी चित्रीत रूप है आत्म ध्वनी का ! अतः इससे ये स्पष्ट हो जाता है कि कला का क्या अर्थ है और इसे किस रूप में ग्रहण किया जाये। साथ में ये प्र’न भी बनता हैं कि कला का निर्माण कौन करता है घ् तो उतर यही होना चाहिए कि जो व्यक्ति निरंतर अन्तर मन कि गुडता पर केन्द्रीत होकर जब कोई रूप गढाता या मढाता है तो उसे कला कृति कहते हैं और उस रूप को गडने वाला कलाकार कहलाता है। यहाँ फिर एक प्र’न बनता है कि ये कला का रूप क्या है घ् कला का रूप वो है, जिसे कलाकार मनोभावों के आवेग से किसी माध्यम के साथ कोई रचना करता है वो रचना संसार ही कला का रूप है। भारतीय संस्कृति में कला के चैसठ रूप स्वीकारे हैं और इसका प्रतिपादन भगवान श्री कृष्ण के माध्यम से किया है, मिथिक है कि भगवान श्री कृष्ण को चैसठ कलाओं का ज्ञान था। उन सब चैसठ कलाओं में सबसे महत्वपूर्ण कला जिसे माना है वो है चित्रकला। विष्णु धर्मोतर पुराण में तो चित्रकला के लिए एक ’लोक भी कहा गया है,
‘‘ रूप भेदा प्रमाणनी,भाव लावण्यम् योजनम्!

साद्र’य वर्णीकाभंगम, इति चित्र षडंगकम् !!’’
शास्त्र रचनाकार श्री भरत मुनि ने भी सारी श्रृष्टि को दृष्य जगत कहा है। भरत के अनुसार दृष्य जगत चित्र ही है , जिसे अस्विकार नहीं किया जा सकता। चित्रकला की विशेषता ये है कि ये चाक्षु कला है इसे आंखों से पढा या देखा जाता है इसे दृ’यात्मक भाषा भी कहते हैं जो दर्’ाक व चित्रकार के मध्य एक मौन संवाद रचता है और दोनों के अन्तर मन के भावों को संप्रेषित करता है। यह एक सरल व सहज माध्यम है संवाद स्थापित करने को, कला और समाज का । इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ‘‘अजन्ता’’ की कला । अतन्ता के समय सबसे सहज कला सामग्री चुनी गई वो थी पहाड़ीयाँ , पहाड़ों को काटकर गंुफाएं बनाई गई और गुफाओं में बनाये गये चित्र। जिनका प्रयोजन था बोद्व धर्म को जन-जन तक पहुँचाना बिना धर्म ग्रंथों के । कहने का तात्पर्य ये है कि दृ’य कला को सभी कालों में प्रमुख स्थान दिया गया तथा समय के साथ साथ दृ’य कला के रूप व उद्वेष्य भी बदलते गये जैसे मुगल काल में इसे मुगल कला कहा गया,तो कम्पनी काल में इसे कम्पनी की कला और आजादी के बाद हिन्दूस्तान में कला का ओर vikaas हुआ फिर कला को sheligat रूप से कला समीक्षकों व कलाकारों ने एक नई पहचान दी । हिन्दुस्तान की कला को कुछ इस तरह से देखा या पढा गया- बंगाल की कला,राजस्थान की कला,दक्षिण भारत की कला,हिमाचल की कला इत्यादी। 1947 के बाद हिन्दूस्तान के कलाकारों ने लगातार कला साधना की अपने अपने स्तर पर अपने अपने प्रान्तों में जैसे गगेन्द्र नाथ,अवनिन्द्रनाथ,रविन्द्र नाथ टैगोर,जामिनि राय आदि ने बंगाल की कला को नई उर्जा ओर विचारों से गति दी इसी तरह से हिन्दूस्तान के अन्य प्रान्तों में भी वहाँ के कलाकार हिन्दूस्तान की प्रान्तिय कला को विकसित करते गये। कला में इसी तरह का ध्वनि नाद् राजस्थान की कला में भी देखने को मिलता है। आजादी के बाद राजस्थान की कला में पदम श्री रामगोपाल विजय वर्गीय, देवकी नन्दन ’ार्मा, एच. के. मुलर, पी.एन.चैयल,एम. के. ’ार्मा,(सुमेहन्द्र) डाॅ. विद्यासागर उपाध्याय, आर.बी.गौतम, पे्रमचन्द गौस्वामी, जैसे चित्रकारों ने राजस्थान की कला को जिवित रखा अपनी अथक कला साधना से इसके लिए कलाकार साधुवाद के पात्र भी हैं। अब पुनः मैं आपका ध्यान इस पत्र के मुख्य विषय पर केन्द्रित करना चाहुँगा। जो है ‘‘कला के क्षेत्र में बीकानेरी युवा ’ाक्ति’’ विषय के आधार पर जब मैने मुल्यांकन किया तो पाया कि बीकानेर की कला को दो धाराओं के रूप में अध्ययन किया जा सकता है। पहला श्रृवण कला व दूसरा चाक्षु कला , बीकानेर ’ाहर की भौगोलिक परिस्थिति में कला का विकास होना या करना धोरों में नाव चलाने जैसा है। कहने का तात्पर्य यह है कि जहाँ जिवन की मूलभूत आव’यकता को पुर्ण करने में भी बड़ी दिक्कते आती है तो उस परिस्थिति में कला का चिन्तन या श्रृजन करना वास्तव में एक साहस भरा काम है,ओर जिन कलाकारों ने इस ’ाहर में कला की अलख जगाये रखी है अपनी कठोर तपस्या से, मैं उन कला साधकों को सत-सत नमन करता हुँ। बीकानेर कला के क्षेत्र में हमे’ाा समय समय पर अपनी पुर्ण उपस्थिति वि’व मानचित्र पर दर्ज कराता रहा है कभी स्वरों से, तो कभी नाट्य से, तो कभी रेखाओं से.। यहाँ कार्यक्रम संयोजक के अनुसार मुझे सिर्फ कला की ही परिचर्चा करनी है। संगीत पर मुझे नहीं लिखना है ऐसा उनका निर्दे’ा है। पर मैं ये नियम तोड़कर फिर ’ाुरूवात करूँगा क्यों कि संगीत भी कला का अंग है। संगीत रिद्म से है और रिद्म आधार है जिवन का,कला का,संगीत नाट्य में भी है तो चित्र में भी। चुँंकि ये विषय साथी कलाकार को सोंपा गया है तो ज्यादा तो नहीं पर पदम श्री अलाह जिलाई बाई की कला साधना का जिक्र मैं जरूर करना चाहुँगा,वो इसलिये क्योंकि जब तुर्कि के एक कला समीक्षक ‘‘एैकिन’’ बीकानेर के युवा कलाकार से ये पुछते हैं कि आपकी पसंद का संगीत कौन सा है तो वहाँ पहला जिक्र ‘‘के’ारीया बालम आवोनी पधारो माहरे दे’ा’’ अलाह जिलाई बाई के मांड गायकी का होता है, ओर जब इन ’ाब्दों का अर्थ उन्हें व्याख्यायित किया जाता है तो ये ’ाब्द ‘‘बेंट’’ कला पुस्तिका में यथावत प्रका’िात होता है, बीकानेर के युवा कलाकार के साक्षात कार के साथ (कलाकार का नाम योगेन्द्र कुमार पुरोहित,बीकानेर)।कहने का तात्पर्य यह है कि युवा ’ाक्ति या युवा कलाकारों को अपने अतित को भी आत्म सात करके आगे जाना चाहिए,अतित कि विष्टिता को साथ जोड़ते हुए व कमीयों को दूर करते हुए! इससे होगा ये कि अतित व वर्तमान की कड़ी निरंतर बनी रहेगी और हमारी प्रमाणिकता भी स्पष्ट होगी वि’व कला जगत में । अब सिधे बात करता हुँ युवा ’ाक्ति की युवा जो पहचाने जाते हैं उर्जा से ,सोच से,जो’ा से ओर आयु से! बीकानेर के युवा अपने जो’ा से ही अपना रास्ता बनाते रहे हैं अपनी उर्जा से उस रास्ते पर चलते रहे हैं जिस रास्ते को उन्होंने अपनी सोच के लिए रचा है,अपने लक्ष्य के लिए रचा है। अब वह चाहे व्यापार हो या नौकरी या फिर कला साधना वो उस युवा का स्वयं का रास्ता है और स्वपन भी.....।
इस बात का और स्पष्टिकरण तब हो जायेगा जब यहाँ जिक्र किया जायेगा उन सभी युवा कलाकारों का जिन्होने अपनी मौलिक उर्जा से बीकानेर की कला को एक दि’ाा दी है। मैं पूर्व में ही क्षमा प्रार्थी हुँ उन सभी युवा कलाकारों से, जिन तक मेरी सोच पहुँच नहीं सकी ओर जिनका मैं यहाँ उलेख नहीं कर पाया। इस आलेख में मैं सिर्फ पाँच से दस युवा कलाकारों का ही जिक्र कर रहा हुँ, पर इसका ये मतलब कतई नहीं कि अन्य युवा कलाकार बीकानेर की युवा ’ाक्ति नहीं है। सभी युवा कलाकारों के अथक प्रयास से ही बीकानेर की कला का भविष्य बनना है, एक दो या पाँच दस से नहीं.....।यहाँ मैं पहले बीकानेर के रंग मंच के युवा कलाकारों की ओर आपका ध्यान खिचना चाहुँगा जिनमें कुछ नाम मुख्य रूप से गिनाए जा सकते हैं जैसे सुधे’ा व्यास, दिलिप सिंह भाटी, मंदाकिनी जो’ाी, विपिन पुरोहित,नवल व्यास आदि। ये साथी युवा रंग कर्मी वास्तव मेंं रंग मंच को समर्पित हैं । मैं यहाँ इनका व्यक्तिगत परिचय या इनकी उपलब्धियों का बखान नहीं करूँगा क्योंकि उपलब्धियाँ अतित का लेखा जोखा हैं ,प्रगति का पथ नहीं। यहाँ मैं सिर्फ इनकी गुणवता और रंग मंच के प्रति इनके मन में जो सम्मान है उसे संक्षिप्त में कहने का प्रयास कर रहा हुँ। पिछले एक द’ाक से मैं बीकानेर के रंग मंच से एक दर्’ाक या युं कहा जाये कि एक छात्र की तरह जुड़ा रहा हुँ तो गलत नहीं होगा। दस साल की इस मेरी एक मौन दर्’ाक की भँाती रंग मंच की यात्रा में मैने यही अनुभव किया की बीकानेर के युवा रंग कर्मीयों को किसी वि’ााल रंग मंच की आव’यकता नहीं हैं क्योंकि उनकी वैचारिक व सहज अभिव्यक्तियाँ बौद्विक स्तर पर बहुत वि’ााल है। इसका साक्षी है हमारे ’ाहर का इकलौता टाउन हाॅल । किसी ने कहा भी है कि जहाँ साधन का अभाव होता है साधना वहीं फलती फुलती है। युवा रंग कर्मी श्री सुधे’ा व्यास जिन कारणों से भी रंगमंच में आये पर रंगमंच पर आने के बाद फिर कभी पिछे मुड़कर नहीं देखा। परिस्थितियाँ अनुकूल रही हो या प्रतिकूल सुधे’ा निरन्तर अपने आत्म जो’ा व रंगमंच के लिए समर्पित भाव लेकर कला की अथक यात्रा करते रहे बीकानेर के रंगमंच के लिए । सुधे’ा ने अपनी अभिनय प्रस्तुतियों से पुरे भारत वर्ष में प्रमाणीत किया की बीकानेर का रंगमंच कहीं पिछे नहीं । सुधे’ा के अनुसार 1985 के बाद ‘‘अरे मायावी सरोवर’’नाटक से सुधे’ा ने स्वयं से बीकानेर रंगमंच को एक निर्दे’ाक भी दिया। अभिनय के बाद निर्दे’ाक बनना सुधे’ा के लिए वास्तव में व्यक्तिगत उपल्बधी रही बौद्विक स्तर पर और बीकानेर रंगमंच को मिला जो’ा से भरा युवा रंगमंच निर्दे’ाक। सुधे’ा के निर्दे’ान के बारे में देखा जाये तो, नाटक चाहे एक किरदार का हो या दस किरदार का बतौर निर्दे’ाक सुधे’ा ने कम से कम साधनों में बहुत सुन्दर तरिके से नाट्य निर्दे’ान किया है जिसे मैने एक कला दर्’ाक के नाते कई बार देखा है और आगे भी निरन्तर ऐसी नाट्य प्रस्तुतियाँ देखने का जिज्ञासु रहुँगा। सुधे’ा के इस युवा जो’ा को मेरा सलाम..! निजी जिवन में सुधे’ा सरकारी नौकरी करके अपनी आजिविका चला रहे हैं। कई बार सुधे’ा ने रंगमंच पर भी ये बात कही है कि रंगमंच रोटी नहीं देता पर ये विडम्बना रंगमंच की नहीं व्यवस्थाओं कि हैं मगर है सत्य...! बीकानेर रंगमंच के दूसरे युवा स्तम्भ हैं श्री दिलिप सिंह भाटी जो पहले एक अभिनेता हैं और बाद में एक निर्दे’ाक। अब चाहे जवाहर कला केन्द्र हो या एन.एस.डी.दिल्ली। दिलिप सिंह भाटी ने बीकानेर रंगमंच की बेहतरीन प्रस्तुतियाँ देकर धाक जमाई है। कला कुम्भ नाम से राष्ट्रीय स्तर का नाट्य व नृत्य समारोह बीकानेर के टाउन हाॅल में आयोजित करके पुरे भारत वर्ष को ये संदेस दिया की भले ही यह बीकानेर ’ाहर अभावों का ’ाहर है मगर यहाँ संभावनाएँ बहुत है। कला कुम्भ जिन परिस्थितियों में हुआ उसका आँखों देखा हाल में आप के समक्ष रख रहा हुँ ताकि आप दिलिप सिंह भाटी के रंगमंच समर्पण को ओर करीब से जान सकें। पहली चुनौती मौसम से थी क्योंकि सर्दीयो के दिन थे। दुसरी चुनौती पुरे दिन अतिथि कलाकारों द्वारा नाट्य व नृत्य प्रस्तुतियाँ, तीसरी चुनौती सिमित संसाधन में सभी अतिथि कलाकारों के रहने खाने की व्यवस्था और चैथी चुनौती पुरे कला कुम्भ को संभालना दिलिप सिंह भाटी के मथे था और इस युवा रंग कर्मी ने कला कुम्भ को बडे ही सहज तरिके से आयोजित किया और सम्पन भी। कहने का तात्पर्य यह है कि दिलिप सिंह भाटी मजबुत दिवार हैं बीकानेर के युवा रंगमंच की जिन्हें अभी अपनी युवा ’ाक्ति से कई रंग देने हैं बीकानेर रंगमंच को.....!
इसी क्रम में बीकानेर युवा रंगमंच का तीसरा स्तम्भ है युवा अभिनेत्री मंदाकिनी जो’ाी जिन्होंने अपने आप को अभिनेत्री के रूप में बीकानेर के रंगमंच से जोड़े रखा हैं। बाल्या अवस्था से मन में नाट्य अभिनय की लालसा लेकर चली एक बालिका युवा अवस्था तक आते आते आखिर 1992 में बन ही गयी अभिनेत्री रंगमंच की। हिन्दूस्तान के रंगमंच के क्षेत्र में बीकानेर की युवा अभिनेत्री मंदाकिनी जो’ाी ने अपना एक अलग स्थान अपने अभिनय के बल पर ही बनाया है और ये बीकानेर रंगमंच के लिए बड़ी गर्व की बात है। अभिनय को अपना धर्म मानकर जिने वाली बीकानेर रंगमंच की ये युवा अभिनेत्री वास्तव में साधुवाद की पात्र है। मैने देखा है नाटक का विषय चाहे जो रहा हो मंदाकिनी जो’ाी ने उस नाटक के महिला अभिनय पात्र को आत्मसात करके हमे’ाा पुर्ण अभिव्यक्ति दी है। यही कारण है कि आज सारा हिन्दुस्तान मंदाकिनी जो’ाी के अभिनय का लोहा मान रहा है। निजि जिवन में मंदाकिनी जो’ाी आका’ावाणी बीकानेर में नौकरी करके अपनी आजिविका चला रही हैं। ये भी गौरतलब बात है कि मंदाकिनी जो’ाी अपने निजी जिवन में भी उतनी ही सफल हैं जितनी की अभीनय के क्षेत्र में.......! रंगमंच का एक ओर युवा स्तम्भ श्री विपिन पुरोहित बचपन से ही घर में कला का माहौल होने के कारण विपिन की रूची अनायास ही कला की ओर अग्रसर हुई। सन1990 से अनुराग कला केन्द्र के द्वारा विपिन ने रंगमंच को आत्मसात किया। विपिन ने अपनी पहली अभिनय प्रस्तुति नाटक ‘‘महाभोज’’ से कि और इसके बाद तो एक के बाद एक नाट्य प्रस्तुतियाँ देते रहे कहीं ठहराव नहीं लिया। इस बिच विपिन ने कई राष्ट्रीय स्तर के नाट्य कार्य’ाालाओं में भी भागिदारी बीकानेर की ओर से ली। दिवंगत वरिष्ठ साहित्यकार श्री यादवेन्द्र चन्द्र ’ार्मा की उपन्यास‘‘हजार घोड़ों का सवार’’ पर आधारित लघु फिल्म में भी विपिन ने मुख्य नायक का किरदार बखुबी निभाया जिसे राष्ट्रीय स्तर पर दुरदर्’ान के माध्यम से 13 भागों में प्रस्तुत किया गया । अतः कहने का अर्थ ये है कि इस युवा कलाकार ने राष्दªीय स्तर के फिल्म निर्माता का भी वि’वास अपने अभिनय के बल पर जिता और हजार घोड़ों का सवार लघु फिल्म के मुख्य किरदार के रूप में सामने आये। अब इससे बड़ा प्रमाण युवा ’ाक्ति का ओर क्या हो सकता है, जो विपिन ने हम सब के समक्ष रखा है। इसी कड़ी में एक और स्तम्भ है रंगमंच का, नाम है नवल व्यास,सन 2000 में रंगमंच से जुड़े ये लक्ष्य लेकर की नाट्य में कुछ अलग करना है लिक से हट कर। नवल की इस लालसा ने उन्हें रंगमंच से जोड़े रखा और आज 2009 तक आते -आते नवल बीकानेर रंगमंच के एक बेहतरीन हास्य अभिनेता के रूप में पहचाने जाते हैं। अपने निजी जिवन में नवल रेडिमेड वस्त्रों की प्रतिष्ठान चलाते हैं। आप समझ सकते हैं कि ऐसी परिस्थिति में भी नवल अभिनय के लिए समय निकाल लेते हैं और सारी मानसिक वेदनाओं को भुलाकर हास्य का अभिनय बड़े सहज रूप से कर लेते हैं अब इसे आप युवा ’ाक्ति कहेंगे या कुछ ओर.....! हमें फक्र होना चाहिये नवल जैसे समर्पित युवा अभिनेता पर।अब में बात कर रहा हुँ बीकानेर की चित्रकला के क्षेत्र में युवा ’ाक्ति की। बीकानेर चित्रकला के क्षेत्र में भी उतना ही सम्पन है जितना की रंगमंच में । मुख्य रूप से मैं भी चित्रकार ही हुँ पर यहाँ, सिर्फ एक कला समीक्षक। बीकानेर की चित्रकला के क्षेत्र में युवा ’ाक्ति के रूप से कुछ नाम आपके समक्ष रख रहा हुँ जिनमें श्री मोहन लाल डुडी(मोना सरदार), श्री जावेद उस्ता,श्री पवन ’ार्मा,श्री अनुराग स्वामी, श्री श्रीकांत रंगा हैं। चित्रकार मोहन लाल डुडी जिन्हें पुरा बीकानेर मोना सरदार के नाम से जानता है कुछ लोग प्यार से उन्हें मोना कहकर भी सम्बोधित करते हैं। मोहन के अनुसार बचपन में उनके पिता कई बार दुकानों के साइन बोर्ड पेंट किया करते थे उनको देख कर व कई बार पिता के द्वारा अघ्ययन हेतु लायी गयी रसीयन कला पुस्तिका से चित्रकला की प्रेरणा -ली। मोहन चित्रकला में आज मास्टर डिग्री के साथ हैं। साधारण परिवार से नाता रखने वाला ये युवा चित्रकार सिमित साधनों से ही चित्रकला की अलख जगाये हुए है और पिछले एक दसक से बीकानेर की चित्रकला में अपना पुर्ण योगदान दे रहे हैं। इस चित्रकार की मुख्य वि’ोषता ये है कि ये बडे की सरल स्वभाव के हैं और हमे’ाा बीकानेर की सामाजिक समस्याओं को कला के माध्यम से समाज के सामने नवाचार के रूप में अभिव्यक्त करते रहे हैं। अब समस्या चाहे कुतों के काटने की हो या साँडों के मारने की....।चित्रकला के क्षेत्र में दूसरी युवा ’ाक्ति है जनाब जावेद उस्ता, चित्रकारी खुन में है अगर ऐसा इनके लिए कहा जाये तो गलत नहीं होगा क्योंकि इनके वालिद साहब है जनाब हनिफ उस्ता साहब। जावेद ने अपनी चित्रकारी की यात्रा सन 1989 से प्रारम्भ की जनाब जमिल उस्ता साहब की ’ाागिर्दगी में । जावेद, उस्ता कला के उभरते हुए युवा कलाकार हंै, हिन्दुस्तान के । कहने को उस्ता कला को क्राट का दर्जा दिया गया है । लेकिन सभी कलाकार पहले एक क्राट मैन है क्योंकि वे सभी अपने हाथ से चित्रकारी करते हैं इस दृष्टिकोण से जावेद बीकानेर की चित्रकला की एक मजबुत कड़ी है। जुनागढ़ की उस्ता कला को पुनः उसी रूप में जिवित करने का श्रेय जावेद उस्ता को ही जाता है। जिसे देखने पर्यटक विदे’ाों से आते हैं। इतना ही नहीं जावेद उस्ता कला में रचनात्मक प्रयोग भी निरंतर करते रहे है जैसे कपड़े पर उस्ता कला व नर्म चमड़े पर उस्ता कला। मृत होती कला को पुनः जिवित करना व उस में नई संम्भावनाएँ खोजना वास्तव में एक साहस भरा काम है जिसे जावेद इस बीकानेर की धरती से पूरे वि’व जगत के लिए कारनामें - अंजाम़ दे रहे हैं। इस कला साधना के लिए जावेद साधुवाद के पात्र हैं।इसी क्रम में तीसरी युवा ’ाक्ति है श्री पवन ’ार्मा मुख्य रूप से चुपचाप अपनी कला साधना करने वाला ये बीकानेर का युवा कलाकार चित्रकला में मास्टर डिग्री के साथ नियमित कला कर्म में व्यस्त है। खुले विचारों का होना कलाकार के लिए अति आव’यक होता है और पवन में ये खुबी जन्म जात है। पिछले 10 साल से एक स्वतन्त्र कलाकार के रूप में पवन निरंतर बिना रूके बिना थके बराबर अपनी कला साधना कर रहे हैं। बीकानेर के इस युवा कलाकार ने दिल्ली metro station के लिए राजस्थान स्कुल आॅफ आर्ट में बतौर एक मुख्य कलाकार के रूप में 20 कला छात्रों के साथ मिलकर म्युरल पेंटिगस का निर्माण किया जिन्हें आज दिल्ली मैट्रो के स्टे’ान पर देखा जा सकता है। उन म्युरल पेंटिगस को देखकर कोई ये सोच नहीं सकता कि इस छोटे कद के इस युवा कलाकार ने इतने भव्य म्युरल रच डाले अपनी श्रृजन ’ाक्ति से 20 अन्य युवा कलाकारों के साथ। पवन चित्रकला को जिवन shikcha का स्कुल मानते हैं ओर उनका प्रत्येक दिन पाठशाला है। चित्र बिका हो या ना बिका हो पर पवन इस विषय पर कभी जिक्र नहीं करते और चित्रकला के अलावा ओर कोई अन्य कार्य भी नहीं इस बात के साथ ही यह स्पष्ट हो जाता है कि पवन नाम की युवा ’ाक्ति चित्रकला के लिए ही बनी है जिसे दुसरे शब्दों में गौड गिट कह साते हैं। चित्रकला की चैथी युवा ’ाक्ति है श्री अनुराग स्वामी घर में परम्परागत चित्रकला का माहौल बचपन से ही अनुराग को मिला अपने पिता महावीर स्वामी के द्वारा। अनुराग कला की समझ पकड़ने के बाद परम्परागत चित्रकला के साथ - साथ कुछ ओर नये माध्यमों से भी आपनी कला को अभिव्यक्त करना चाहते रहे हैं, खुद से नई सम्भावनाएँ खोजना अनुराग की कला साधना का मुख्य आधार रहा है। इसका प्रमाण ये है कि कुछ दिन पहले ‘‘जी-स्टूडीयो टीवी ’’ पर एक लघु फिल्म प्रसारित हुई जिसका निर्माण इस युवा शक्ति के द्वारा सम्भव हुआ। सरल स्वभाव के अनुराग अपने विचारों में बिलकुल परिपक्व ओर कला में पुर्ण रचनात्मक अभिव्यक्ति देने वाले युवा कलाकार हैं। बीकानेर को इस युवा शक्ति से काफी उम्मिदें है। इसी क्रम की पाँचवीं युवा शक्ति है श्री श्रीकांत रंगा, श्रीकांत एक साधारण परिवार से है। चित्रकला श्रीकांत ने अपनी रूची के आधार पर ली है। ललित कला में बी.वी.ए. में गोल्ड मैडल हासिल कर श्रीकांत ने यह प्रमाणित कर दिया की श्रीकांत ललित कला के श्रृजन के लिए ही बना है। अन्र्तमुखी ये कलाकार सदेव कला चिन्तन में व्यस्त रहता है और उसका परिणाम है श्रीकांत की रचनात्मक कृतियाँ। ये कलाकार सामाजिक समस्याओं व अन्र्तमन के भावों को बराबर चित्रफलक पर उकेरकर हम सब के समक्ष प्रस्तुत करता रहा है। अब चाहे जवाहर कला केन्द्र हो या ग्वालियर का चित्रकला शिविर श्रीकांत ने अपनी श्रृजनात्मक शक्ति का परिचय चित्रों के माध्यम से दिया है। अभी श्रीकांत को कई ओर शिखर चढ़ने हैं कला श्रृजन के.......।अंत में मैं यही कहुँगा कि बीकानेर की युवा शक्ति कहीं भी कमजोर नहीं है बस जरूरत है युवा शक्ति के मन को समझने की और उसे उर्जा देने की...........! मैं अभारी हुँ राव बीकाजी संस्था का, जिन्होंने इस पत्र वाचन के लिए मुझे कहा। मेरे अल्प ज्ञान से जो कुछ लिख पाया हुँ युवा शक्ति के लिए उसमें सम्भवत त्रुटियाँ है, पर मैं उम्मिद करता हुँ आप मुझे क्षमा करेंगे।
आभार
युवा चित्रकार - योगेन्द्र कुमार पुरोहित

- कमला सदन,बंगला नगर,

पुगल रोड़,बीकानेर.राज.