Ego Of Human
Myself on RCC Toll Road of NH No. 11 BKN. |
Friends you know in
this time I am educating to myself about
nature of our earth , I am trying to know
my duty for our earth nature . so I am busy in this work continue in
this rain time of Desert .
You know I am busy in
farming work to last five years and every year I am getting more maturity about farming format , it’s a different angle
if I am taking to this work as a art work . that is different view of myself about
coolness of my mind or about education of art and culture .
Last Sunday I was on
National High way number 11 . I went to my farmland ( my natural canvas ) for
visit to condition of my work . in mid
way I saw some small green plants were came out from earth without support of any human . that was creation
of earth clay . it was possible by rain water or combination of nature . that
plants were surprised to me because that’s
came out from under construction hard six
lain road ( NH No. 11 ) .
Natural green plants in mid of NH No.11 .it's under work ...2017 |
I noticed to crazy and committed nature of earth clay . that is commite with rain water for natural greenery on this earth . we human know our life is depend on agriculture , we know agriculture work need land and rain water then it can growth naturally for human life. But we human are busy in construction work . we are blocking to agriculture land by our unnatural construction work on this earth or we are saying to it progress of our human culture ..i think its going near to ziro progress . because science is saying today about our earth , this earth is not healthy for healthy life of human ?
It is critical but its
fact of today . so I wrote this critical
condition of our earth or my view
in a form of article . it is in Hindi . may be
you will translate it by good translator ..
its my natural painting in next level after rain or nature support of this year ..2017 |
vkneh dk
vfHkeku
धरती पर जल भाग है 71 प्रतिशत और थल भाग है मात्र 29 प्रतिशत ये हम सब धरती
वासी जानते है ! धरती का थल भाग जब बना था तो इस धरती पर शायद ही जीवन भी
रहा होगा पर समय के साथ इस धरती पर जीवन का भी विकास हुआ ! यहाँ जीवन से
पहले भी धरती पर जिसका विकास हुआ था, वो थी वनस्पति ! वनस्पति हमारी धरती
का प्रथम वो तत्व है जिसके बगैर इस धरती पर जीवन का लम्बे समय तक टिक
पाना असंभव है और वनस्पति का टिकना संभव तभी तक है जब तक धरती का 71
प्रतिशत जल भाग सुरक्षित है !
हम ये भी जानते है की शेर के अलावा इस 29 प्रतिशत के भू भाग पर हम सभी जिव जंतु ( मनुष्य भी एक जिव है विज्ञानं की परिभाषा में ) वनस्पति पर आधारित है ! और ये धरती जिसका 29 प्रतिशत भू भाग प्रतिबद्ध है , जिद्दी है , अनुबंधित है प्रकर्ति को हरा भरा करने को रखने को कालांतर से लेकर आज तक और आगे भी कई सदियों तक या अनंत तक कोई सिमा नहीं इसकी !
मुझे ये विचारणा करने का सन्दर्भ मिला राष्ट्रिय राजमार्ग 11 से , यातायात करते हुए ! हालाँकि उस मार्ग पर मेरी यात्रा का कारण वर्षा ऋतू के समय की खेती यानि वनस्पति की उपज के लिए ही होता है , जिसे 2012 से मैं एक कलाकृति के रूप में वनस्पति की उपज करने के कार्य को सम्बोधित कर रहा हूँ! एक मास्टर ऑफ़ आर्ट होने के नाते ( क्योंकि मुझे उस कार्य मे कला का पक्ष नजर आता है जीवन को जीवित रखने वाले तत्व को जीवित रखने का कार्य ) !
इन दिनों राष्ट्रिय राजमार्ग 11 पर हाई वे बन रहा है वो भी सिक्स लाइन वाला ! ख़ुशी है की काफी देरी से बना क्योंकि काफि सारे वृक्ष जी सके इतने वर्ष वनस्पति के रूप में धरती की कोख में ! राजमार्ग का कार्य प्रगति पर सो सड़के चौड़ी की जा रही है सडको पर रोड़ी, कनकर ,पानी आदि डाल कर धरती के वनस्पति उपजने वाली प्रकृति की मिटी पर पक्की परत चढ़ाई जारही है ! ताकि भविष्य में राष्ट्रिय राजमार्ग पर वनस्पति न उपजे ! मैंने देखा चलते कार्य के मध्य सड़को के अधूरे टुकड़ो के आस पास बरसात के पानी के गिरने से हरियाली स्वतः ही फुट पड़ी है ! ये है धरती का स्वाभाव पानी मिलते ही वो पहले पहल अपनी वनस्पति उपजने की प्रकृति को ही पोषित करती है ! धरती का भू भाग वनस्पति का है जो अब मानव के हाथों कॉन्क्रीट का होने लगा है !
मानव भूल रहा है की जीवन के लिए वनस्पति अति आवश्यक तत्व है वो आज वनस्पति पोषण का कार्य भूल गया है और धरती का दोहन करने में व्यस्त है! वो भूल रहा है की पानी के बाद धरती पर वनस्पति ही जीवित है अनंत से आज तक और ये आगे भी जीवन को जीवित रख सकती है ! अगर मानव वनस्पति के उपजने के मार्ग को अवरुद्ध न करे इस भू भाग पर जो की मात्र 29 प्रतिशत ही है !
मैंने देखा इन वर्षों में की उपजाऊ मिटी जिसका स्वाभाव ही वनस्पति को जीवन देना और जीवित रखना है , को सांचों में ढालकर अग्नि में पकाकर /तपाकर ईंटे बना डाली, उन ईंटो से मकान वो भी वनस्पति को उपजाने वाले इसी भू भाग पर , सड़के , इमारते , भवन , महल ,किले , होटल , सरकारी दफ्तर , कॉलेज , पंचायत ,और भी न जाने क्या क्या प्रत्येक गांव ,शहर , राज्य , देश और परदेश में बने है सब इस भू भाग पर !
जहाँ कभी 29 प्रतिशत भू भाग वनस्पति का हुआ करता था ! अब आज उस पुरे 29 प्रतिशत भू भाग के भी 29 प्रतिशत भाग पर ही वनस्पति बची होगी ऐसा मैं अनुमान लगता हूँ ! वैसे भूगोल शास्त्री इस विषय में सही आंकड़े दे सकते है मेरे पास नहीं है ! मैंने तो देखा है की कैसे वनस्पति उपजने वाले इस भू भाग को वनस्पति विहीन किया जा रहा है ! मानवीय संस्कृति के विकास के साथ न जाने क्या आये गा इनके हाथ इस सांस्कृतिक विकास के बाद ?
मै मानता हूँ मानवीय विकास जरुरी है ,पर बौद्धिक न की सिर्फ भौतिक ! धरती के मूल स्वरुप को बदल देना उसकी प्रकृति को रोक देना
नव निर्माण , खनन ये सब क्या खलल नहीं प्रकृति की संरचना के साथ ? इस धरती के जीवन के साथ ?
क्या ये जरुरी नहीं की हम प्रकृति के साथ जीने का और सरल व सहज रास्ता निकाले , अब तो हम बहुत शिक्षित हो गए है हमने बहुत विकास कर लिया है ! हम एक सभ्य संस्कृति में विचरण कर रहे है ! पर विज्ञानं की भाषा में कहूं तो हमने धरती के जल और भू भाग का अति दोहन कर लिया है और अब ये धरती स्वस्थ नहीं मृत्यु की ओर जा रही है ! आज विज्ञानिक अन्य गृह खोजने में व्यस्त हो गए है इस भय से की कल धरती नहीं रहेगी किसी भी जीवन के लिए तो जीवन कहा जाएगा ? इसलिए उन्हें जरूरत लगने लगी है नए गृह की जहां शुद्ध पानी , शुद्ध हवा और शुद्ध वानस्पतिक धरती हो !
मुझे हंसी आ रही है अपने आप के इस मानव और मानव संस्कृति के अंग होने पर ! पर मुझे कला ने ये चेतना तो दी की मै इस प्रकार से देख पा रहा हूँ मेरी धरती को उसकी आत्मा को और उसकी प्रकर्ति के साथ होते खिलवाड़ को। तो अपनी ओर से कर पा रहा हूँ कुछ कार्य इस भू भाग पर पुनः वनस्पति को उपजाने की 825 गुणा 825 फुट के भू क्षेत्र पर ! जानता हूँ ये प्रयाप्त नहीं पर शुरुवात तो है एक मानव की प्रकृति की वनस्पति को उपजने की प्रवृति को जीवित रखने की !
मै शिक्षित हो रहा हूँ प्रकृति के हिसाब से और आप ?
सोचिये किसी की प्रवृति और प्रकृति को बदलना वो भी उसकी जो हमें जीवन दे रही है कितना उचित और न्याय संगत है ! हम क्यों भूल रहे है की हम अंग है इस प्रकृति और धरती के 29 प्रतिशत भू भाग का ! जिसमे वनस्पति हमारी सबसे प्राथमिक आवश्यकता है, ठीक वैसे ही जैसे हवा , जल और थल ! प्रकृति हमारी उदर पूर्ति का एक मात्र साधन है ! इस भू भाग पर जब वही नहीं बचेगा तो कैसे हम जीवित रह पाएंगे और कैसे संस्कृति का विकास हो पायेगा ? आज जो विकास किया है हमने, वो सिर्फ मानवीय सुविधा का विकास है ! जिसके लिए हमने धरती के सारे मूल्यों को दर किनार करके अपने तरीके से विकास किया है हमने प्रकृति को पीछे धकेल दिया है ! उपेक्षित कर दिया है ! उसका दोहन करते करते उसे लुप्त प्रयाय होने को बाध्य कर दिया है ! ये ठीक नहीं ऐसा मुझे महसूस होता है , आप सब को भी होना चाहिए और साथ में उन सब को भी जिन्होंने इस 29 प्रतिशत भू भाग का दोहन किया है मानवीय संस्कृति के विकास के नाम पर ! हमें लौटना होगा प्राकृतिक जीवन की और सरलतम अत्याधुनिक और प्राकृतिक संसाधनों के साथ 29 प्रतिशत भू भाग को पुनः उसके वनस्पतिक रूप में लाने को ! क्योंकि धरती का वनस्पतिक स्वरुप ही धरती की सही परिभाषा है इस ब्रह्माण्ड में और यही एक मात्र आधार है धरती पर समस्त जिव जंतुओं के जीवित रहने का जिसमे हम मानव भी शामिल है ! मैंने ऐसा सोचा है आप भी सोचे आज से अभी से .. देखे किसी खुली जमीं के हिस्से पर किसी छोटे से पौधे को जिसे इस भू भाग ने अपने वनस्पतिक स्वभाव से अंकुरित कर दिया बिना किसी मानवीय सहयोग के, तब शायद आप का मन मस्तिष्क स्वतः शिक्षित हो जाए और आप की चेतना से ये धरती पुनः वनस्पति वाली हरी भरी धरती हो जाए !
योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर , इंडिया
हम ये भी जानते है की शेर के अलावा इस 29 प्रतिशत के भू भाग पर हम सभी जिव जंतु ( मनुष्य भी एक जिव है विज्ञानं की परिभाषा में ) वनस्पति पर आधारित है ! और ये धरती जिसका 29 प्रतिशत भू भाग प्रतिबद्ध है , जिद्दी है , अनुबंधित है प्रकर्ति को हरा भरा करने को रखने को कालांतर से लेकर आज तक और आगे भी कई सदियों तक या अनंत तक कोई सिमा नहीं इसकी !
मुझे ये विचारणा करने का सन्दर्भ मिला राष्ट्रिय राजमार्ग 11 से , यातायात करते हुए ! हालाँकि उस मार्ग पर मेरी यात्रा का कारण वर्षा ऋतू के समय की खेती यानि वनस्पति की उपज के लिए ही होता है , जिसे 2012 से मैं एक कलाकृति के रूप में वनस्पति की उपज करने के कार्य को सम्बोधित कर रहा हूँ! एक मास्टर ऑफ़ आर्ट होने के नाते ( क्योंकि मुझे उस कार्य मे कला का पक्ष नजर आता है जीवन को जीवित रखने वाले तत्व को जीवित रखने का कार्य ) !
इन दिनों राष्ट्रिय राजमार्ग 11 पर हाई वे बन रहा है वो भी सिक्स लाइन वाला ! ख़ुशी है की काफी देरी से बना क्योंकि काफि सारे वृक्ष जी सके इतने वर्ष वनस्पति के रूप में धरती की कोख में ! राजमार्ग का कार्य प्रगति पर सो सड़के चौड़ी की जा रही है सडको पर रोड़ी, कनकर ,पानी आदि डाल कर धरती के वनस्पति उपजने वाली प्रकृति की मिटी पर पक्की परत चढ़ाई जारही है ! ताकि भविष्य में राष्ट्रिय राजमार्ग पर वनस्पति न उपजे ! मैंने देखा चलते कार्य के मध्य सड़को के अधूरे टुकड़ो के आस पास बरसात के पानी के गिरने से हरियाली स्वतः ही फुट पड़ी है ! ये है धरती का स्वाभाव पानी मिलते ही वो पहले पहल अपनी वनस्पति उपजने की प्रकृति को ही पोषित करती है ! धरती का भू भाग वनस्पति का है जो अब मानव के हाथों कॉन्क्रीट का होने लगा है !
मानव भूल रहा है की जीवन के लिए वनस्पति अति आवश्यक तत्व है वो आज वनस्पति पोषण का कार्य भूल गया है और धरती का दोहन करने में व्यस्त है! वो भूल रहा है की पानी के बाद धरती पर वनस्पति ही जीवित है अनंत से आज तक और ये आगे भी जीवन को जीवित रख सकती है ! अगर मानव वनस्पति के उपजने के मार्ग को अवरुद्ध न करे इस भू भाग पर जो की मात्र 29 प्रतिशत ही है !
मैंने देखा इन वर्षों में की उपजाऊ मिटी जिसका स्वाभाव ही वनस्पति को जीवन देना और जीवित रखना है , को सांचों में ढालकर अग्नि में पकाकर /तपाकर ईंटे बना डाली, उन ईंटो से मकान वो भी वनस्पति को उपजाने वाले इसी भू भाग पर , सड़के , इमारते , भवन , महल ,किले , होटल , सरकारी दफ्तर , कॉलेज , पंचायत ,और भी न जाने क्या क्या प्रत्येक गांव ,शहर , राज्य , देश और परदेश में बने है सब इस भू भाग पर !
जहाँ कभी 29 प्रतिशत भू भाग वनस्पति का हुआ करता था ! अब आज उस पुरे 29 प्रतिशत भू भाग के भी 29 प्रतिशत भाग पर ही वनस्पति बची होगी ऐसा मैं अनुमान लगता हूँ ! वैसे भूगोल शास्त्री इस विषय में सही आंकड़े दे सकते है मेरे पास नहीं है ! मैंने तो देखा है की कैसे वनस्पति उपजने वाले इस भू भाग को वनस्पति विहीन किया जा रहा है ! मानवीय संस्कृति के विकास के साथ न जाने क्या आये गा इनके हाथ इस सांस्कृतिक विकास के बाद ?
मै मानता हूँ मानवीय विकास जरुरी है ,पर बौद्धिक न की सिर्फ भौतिक ! धरती के मूल स्वरुप को बदल देना उसकी प्रकृति को रोक देना
नव निर्माण , खनन ये सब क्या खलल नहीं प्रकृति की संरचना के साथ ? इस धरती के जीवन के साथ ?
क्या ये जरुरी नहीं की हम प्रकृति के साथ जीने का और सरल व सहज रास्ता निकाले , अब तो हम बहुत शिक्षित हो गए है हमने बहुत विकास कर लिया है ! हम एक सभ्य संस्कृति में विचरण कर रहे है ! पर विज्ञानं की भाषा में कहूं तो हमने धरती के जल और भू भाग का अति दोहन कर लिया है और अब ये धरती स्वस्थ नहीं मृत्यु की ओर जा रही है ! आज विज्ञानिक अन्य गृह खोजने में व्यस्त हो गए है इस भय से की कल धरती नहीं रहेगी किसी भी जीवन के लिए तो जीवन कहा जाएगा ? इसलिए उन्हें जरूरत लगने लगी है नए गृह की जहां शुद्ध पानी , शुद्ध हवा और शुद्ध वानस्पतिक धरती हो !
मुझे हंसी आ रही है अपने आप के इस मानव और मानव संस्कृति के अंग होने पर ! पर मुझे कला ने ये चेतना तो दी की मै इस प्रकार से देख पा रहा हूँ मेरी धरती को उसकी आत्मा को और उसकी प्रकर्ति के साथ होते खिलवाड़ को। तो अपनी ओर से कर पा रहा हूँ कुछ कार्य इस भू भाग पर पुनः वनस्पति को उपजाने की 825 गुणा 825 फुट के भू क्षेत्र पर ! जानता हूँ ये प्रयाप्त नहीं पर शुरुवात तो है एक मानव की प्रकृति की वनस्पति को उपजने की प्रवृति को जीवित रखने की !
मै शिक्षित हो रहा हूँ प्रकृति के हिसाब से और आप ?
सोचिये किसी की प्रवृति और प्रकृति को बदलना वो भी उसकी जो हमें जीवन दे रही है कितना उचित और न्याय संगत है ! हम क्यों भूल रहे है की हम अंग है इस प्रकृति और धरती के 29 प्रतिशत भू भाग का ! जिसमे वनस्पति हमारी सबसे प्राथमिक आवश्यकता है, ठीक वैसे ही जैसे हवा , जल और थल ! प्रकृति हमारी उदर पूर्ति का एक मात्र साधन है ! इस भू भाग पर जब वही नहीं बचेगा तो कैसे हम जीवित रह पाएंगे और कैसे संस्कृति का विकास हो पायेगा ? आज जो विकास किया है हमने, वो सिर्फ मानवीय सुविधा का विकास है ! जिसके लिए हमने धरती के सारे मूल्यों को दर किनार करके अपने तरीके से विकास किया है हमने प्रकृति को पीछे धकेल दिया है ! उपेक्षित कर दिया है ! उसका दोहन करते करते उसे लुप्त प्रयाय होने को बाध्य कर दिया है ! ये ठीक नहीं ऐसा मुझे महसूस होता है , आप सब को भी होना चाहिए और साथ में उन सब को भी जिन्होंने इस 29 प्रतिशत भू भाग का दोहन किया है मानवीय संस्कृति के विकास के नाम पर ! हमें लौटना होगा प्राकृतिक जीवन की और सरलतम अत्याधुनिक और प्राकृतिक संसाधनों के साथ 29 प्रतिशत भू भाग को पुनः उसके वनस्पतिक रूप में लाने को ! क्योंकि धरती का वनस्पतिक स्वरुप ही धरती की सही परिभाषा है इस ब्रह्माण्ड में और यही एक मात्र आधार है धरती पर समस्त जिव जंतुओं के जीवित रहने का जिसमे हम मानव भी शामिल है ! मैंने ऐसा सोचा है आप भी सोचे आज से अभी से .. देखे किसी खुली जमीं के हिस्से पर किसी छोटे से पौधे को जिसे इस भू भाग ने अपने वनस्पतिक स्वभाव से अंकुरित कर दिया बिना किसी मानवीय सहयोग के, तब शायद आप का मन मस्तिष्क स्वतः शिक्षित हो जाए और आप की चेतना से ये धरती पुनः वनस्पति वाली हरी भरी धरती हो जाए !
योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर , इंडिया
its my natural painting in next level after rain or nature support of this year ..2017 |
art work of natural painting is in natural progress year 2017 |
Note :- A Short story
about this article title – I wrote to my view in lines by words or emotions
plus my knowledge . but I could not gave title to this article . in very first I
share it with Great Artist of Indian Cine
Art ( Visual Artist ) Dr. Amitabh Bachchan
and I did demanded to him a right title for my article from His rich art vision . yesterday he was shared a new blog post that post was information of his old work . but that work title was gave
me right title for my article . so I did collected that for this article of
myself .
He was shared a very
short story of his film Abhimaan ( Ego ) .so this Ego sound was clicked to my
mind for title . we human are living in ego of our culture progress or success,
but in really it is totally opposite of our success . So I gave title to my article The Ego of Human in hindi we read
it Aadmi ka Abhimaan . about this title support I am very thankful for My E
Guru ji Dr. Amitabh Bachchan , he has read
my article then gave me a right title for this article .
Its Green Home of My E Guru Ji . Jalsa the house of Dr. Amitabh Banchchan , Mumbai .. |
Here that article copy
for your reading in form of a post of art vibration . I sure you all will share it and published it in
your nation media , magazine, news paper or on electronic media . it is very
must we start to work for care to nature . because its our fist duty about our
earth . over all earth is our real home , its one and only in this universe .
Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA