Social Media To Print Media
Friends you know after year
2008 I am continue active on social media for
visual art or that’s right promotion from my art activities , that activities are
painting, writing and talking on art . I have shared lots of on my social
media and near 10,000 to 20, 000 social
media users are knowing to my art sound
. so I am feeling I am doing a right job on social media about visual art .
Its result is coming in front of myself . one example is
here for your notice . last month a senior literature person / writer , awarded of national academy of
literature Sir Bulaki Sharma called to me , he demanded to me a
article on modern art . he putted a question in front side of myself as a subject of
article , he asked to me why common viewers are not understand to modern art ?
So as a painter I taken his question for a
right article or in 300 to 400 words of Hindi I wrote that and shared with him
in very short time . Writer Bulaki Sharma Ji told me I will use it for print
media .
Last week that article
was published by A Daily News Paper of
Bikaner , that’s name is Dainik Bhaskar ,
The article was come
out in print media through social media . My social communication nature
created this task for me and I could completed that in very short time with
right logic or with basic problems of common viewers.
Here I want to share that’s article in original form or a image of print media .for your notice .
Article is in
Hindi so I think you will translate it in your own language
for your easy reading ..thanks..
क्यों नहीं समझ पाते आधुनिक कला को आम दर्शक ?
ये एक सवाल है अपने आप में जो मुझे अक्सर ये सोचने पर मजबूर करता है मेरे सृजन को और परिष्कृत करने को, और मैं निरंतर इस में सलंग्न हूँ एक आधुनिक कला का सृजक होने के नाते !
मेरी दृस्टि में किसी भी वस्तु, आयाम, विचार, चिंतन को अपने निजी अनुभव से प्रस्तुत करना बिना किसी परंपरागत पहलु को छुए वही आधुनिक है , या एक प्रस्तुति करण अपने निजी अंदाज का जिसे न पहले किसी ने कहा, रचा न वर्तमान में और भविष्य में कोई अनुसरण करेगा तो वो परंपरागत प्रस्तुति करण का रूप धारण कर लेगा, सो विषय ये भी नहीं है !
सरलीकरण के लिए यहाँ मैं आधुनिक शब्द को उपियोग में ले रहा हूँ ताकि ये समझ आये आम पाठक को !
आधुनिक कला का आम दर्शक से सीधा कोई सम्बन्ध सतही रूप पर नजर नहीं आता है पर अन्तर सम्बंध वैसा ही है जैसा की परंपरागत और यथार्थ कला का है !
हिंदी की शब्द शक्ति के उदहारण से मैं इसे स्पष्ट कर सकता हूँ क्यों की शब्द भी रूप है अंतर ध्वनि का और समस्त कलाएं सृजित होती है अंतर ध्वनि के दिशा निर्देश से ! ये बात लेखक और कलाकार दोनों ही बखूबी जानते है या रचना संसार का यही मूल आधार है !
शब्द शक्ति तीन प्रकार की होती है अभिधा , लक्षणा और व्यंजना !
अभिधा में - वे सरल से वाक्य आते है जिनको जैसा पढ़ा जाता है उनका अर्थ भी शब्द के अनुरूप ही होता है ! जैसे कि राम घर जा रहा है !
लक्षणा में - वे वाक्य आते है जिनका शाब्दिक अर्थ शब्द से भिन्न होता है ! जैसे की राम गधा है , यहाँ राम के चरित्र पर सांकेतिक व्यंग है जो उसके लक्षण को प्रस्तुत करने की कोशिश है शब्द से !
इसी तरह व्यंजना में - वे वाक्य आते है जिनके अनेका अनेक अर्थ निकलते है ! उदहारण के लिए घडी में चार बजे है ! अब इस वाक्य का सब के लिए अनेका अनेक अर्थ स्वतः ही बनता है !
ठीक यही पद्धति आधुनिक कला के सन्दर्भ में भी सटीक बैठती है !
अभिधा को कला में यथार्थ कला शैली से जोड़कर समझ सकते है ! यथार्थ चित्र या कला अपने स्वरुप से सब कुछ स्पष्ट कर देती है अतः दर्शक को सिर्फ अपनी आँखों से कला अभिव्यक्ति का अवलोकन मात्र ही करना पड़ता है ! दृश्य प्रकृति का हो या दैनिक जीवन का दर्शक को सब कुछ मूर्त रूप में तैयार मिलता है ! रसा स्वादन हेतु !
जबकि लक्षणा में वो कला अभिव्यक्ति ली जा सकती है जो संकेतो, प्रतीकों में कलाकार के विचार और दर्शन को प्रस्तुत करती है ! ये कला अभिव्यक्ति आम दर्शक के समझ में सहजता से नहीं आती ! कारण स्पष्ट है की आम दर्शक यथार्थ में जीता है ! उसे सरल और सुलभ दृश्य अवलोकन की आदत है ! जबकि कलाकार या रचेता के लिए लक्षणा में कला प्रस्तुति सरल और सहज होती है !
उसी प्रकार व्यंजना में उन अति आधुनिक कला अभिव्यक्ति को ले सकते है जो सिर्फ कलाकार या रचेता के मन की उन संवेदनात्मक क्रियाओं का सृजनात्मक प्रस्तुति करण है ! आधुनिक कला में उसे प्रयोगात्मक , एक्शन , फंतासी ,एब्स्ट्रक्शन , इंस्टालेशन आदि नाम से सम्बोधित किया है ! जो कलाकार या रचेता को तो मानसिक उथल पुथल से मुक्त कर देता है! साथ ही दर्शक मुक्त भाव से अवलोकन करने और उसके बारे में चिंतन मनन करने को खुला स्पेस पाता है ! जिसे चिंतन शील दर्शक तो समझ या पकड़ पाते है पर आम दर्शक उसे अति आधुनिक कहते हुए साइड से निकल जाते है ! क्यों की उनके पास न तो इतना समय है की वो आम जीवन की आपा धापी से मुक्त होकर कुछ पल रचनात्मक क्रियाओं के लिए निकाल पाए और अगर निकाल भी लेवे तो भी कला के उन उच्च तर्क और मीमांशा की दृस्टि वाले प्रस्तुति करण को ठीक से ग्रहण कर पाए इतना समय और चिंतन की दृष्टि वे बना ही नहीं पाते !
और जब आम दर्शक और कलाकार के मध्य समय का अभाव होगा तो कला का सम्प्रेषण सेतु भी बिखरेगा ! मुझे आधुनिक कला के सन्दर्भ में यही पीड़ा सताती है की समय के साथ कलाकार और उसकी कला ने यात्रा की पर इस यात्रा में उसका आम दर्शक पीछे छूट गया या छूट रहा है !
आम दर्शक को भी समय के साथ बदलना जरुरी है क्योंकि कलाएं दर्शक को शिक्षित , परिष्कृत , चिंतनशील , विचारशील ,आलोचक और समालोचक के रूप में तैयार करती है ताकि वे समाज में संस्कृति के सही मूल्यों को स्थापित कर सके आगे आने वाली पीढ़ी के लिए। ...
योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर, इंडिया
So this article come in print media through
my social media . writer Sir Bulaki Sharma collected it and Editor /Writer
Sir Madhu Acharya published it in his editorial .
So here I said it .. social media to Print
media …
Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA