“Sculpture of Greenery”
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My New Work " Sculpture of Greenery"2025 |
I were started it on first day of rain session of year 2025 , the day of GURU PURNIMA , That day I were started this new art concept and work the sculpture of Greenery and I dedicated to that art work to my SHIPGURU late great Dr. Sumhendra Sharma Ji Jaipur Rajasthan INDIA .
In my art college The Rajasthan school of Art college Jaipur , I was student of painting but inside of myself I were learning to sculpture art silently with my friends of sculpture department or that’s sculpture department HOD was Late Great Shilpguru Dr. Sumhendra Sharma ji .
This month of July on date 19th July 2025 was death anniversary of late great shilpguru Dr. Sumhendra Sharma ji . so on his death anniversary I dedicated to my new art work / concept Sculpture of Greenery to him .
My work sculpture of Greenery was completed first step in nature after 10 days , I was mixed seeds in farming land ,the rain water and sun light was converted to that seeds in natural green leafs After 10 days , two green leafs were come out from farming land and started to produce to oxygen for our fresh environment .
I know this sculpture of Greenery concept cum art work will provide to food to ant , butterfly , bee and birds and after complete to final stage of art work sculpture of Greenery . it will convert in its first form that will seeds or that’s dray leafs will convert in food of cow or ox . so this sculpture of Greenery is a fully eco friendly art work in nature for our natural environment .
So this new art concept and art work of myself the sculpture of Greenery I were dedicated to my Shilpguru late great Dr. Sumhendra Sharma ji .
Here I am sharing a image of first step of my art work sculpture of Greenery for your visit and image of my Shilpguru Dr. Sumhendra Sharma ji .
I am also sharing a Hindi Note at here for your reading , in that note I expressed some memorabilia movements and time of sculpture department of my Rajasthan School of art collage Jaipur .
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ShilpGuru late great Dr. Sumhendra Sharma Ji and Myself in Exhibition of Alumini of Rajasthan School of Art College Jaipur, exhibition venu Jawahar kala Kendra Jaipur-Rajasthan |
मित्रों सावन मास के प्रथम दिन गुरु पूर्णिमा को मैंने नए कला कर्म वर्ष २०२५ के लिए "स्कल्पचर ऑफ़ ग्रीनरी " को आरम्भ किया इस वर्ष की बरसात ऋतू के आगम पर ! मैंने ये मेरा नया कला कर्म "स्कल्पचर ऑफ़ ग्रीनरी " समर्पित किया है मेरी राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट कॉलेज जयपुर के मूर्ति कला विभाग के विभागा अध्यक्ष और भूतपूर्व उप प्राचार्य राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट कॉलेज जयपुर साथ ही राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट की एलुमिनी के संस्थापक और प्रथम संगरक्षक स्वर्गीय डॉक्टर सुमहेन्द्र शर्मा जी को !
राजस्थान स्कूल और आर्ट मैं प्रवेश लेने से पहले मैंने बीकानेर की श्री मोहता मूलचंद सीनियर उच्च माध्यमिक विद्यालय में फाइन आर्ट में प्रवेश लेते समय मूर्ति कला के लिए फॉर्म भरा था पर वहाँ मूर्ति कला का विषय उपलब्ध नहीं था सो फाइन आर्ट में चित्रकला लेना एक मात्र विकल्प था ! और कक्षा 12 वी में चित्रकला में प्रथम मेरिट में आने के बाद जयपुर में भी राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट में चित्रकला विषय ही लेना सही साबित हुआ ! मैंने मास्टर भी राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट से प्रथम रैंक से उत्तीर्ण की वो भी एम एफ ऐ पेंटिंग के प्रथम बैच के विद्यार्थी के रूप में !
Shilpguru Late great Dr. Sumhendra sharma Ji |
पर आप को विदित हो जितना समय मैं राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट कॉलेज में चित्रकला की कक्षा में देता था उतना ही समय मैं राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट में मूर्तिकला विभाग में भी देता था ! मैंने मेरे मित्र मूर्तिकला के विद्यार्थियों को भी बनाया और उन मित्रों ने मुझसे मित्रता भी निभाई जो आज तक निभ रही है कला गुरु स्वर्गीय डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा जी के आशीर्वाद से ! क्योंकि उन्होंने मुझे कभी नहीं टोका की तु चित्रकला का विद्यार्थी यहाँ मूर्ति कला विभाग में क्या करता है ! बल्कि एक बार उन्होंने दिल्ली के ऐतिहासिक मोनोमेंट्स के चित्रण का कार्य भी मूर्तिकला विभाग में अपनी सीट पर बैठकर किया जिसे देखने को मुझे पूर्ण रूप से छूट दी ! साथ में वे कई बार मुझ से पूछते भी की क्यों सही बन रहा है ना ! आप ने वो चित्र सीधे रोटरिंग इंक पेन से ड्रा करते हुए वाटर कलर से बनाकर मुझे चित्रकला की अपनी दक्षता का डेमोस्ट्रेशन भी दिया जिसे मैंने एक विद्यार्थी की भांति ग्रहण भी किया ( आज मेरे मूल चित्र में मैं सीधे इंक पेन से रेखाएं खिंच कर उनमे रंग भरता हूँ ) ! आप ही ने मुझे ललित कला अकादमी की छात्र कला प्रदर्शनी में प्रतिभागिता लेने के लिए प्रेरित करते हुए मेरे एक ग्रामीण दृश्य के चित्र ( गाँव रिडमलसर बीकानेर ) लैंडस्केप को सबमिट करने को कहा और आप के आदेश का पलना करने का परिणाम ये रहा की मेरा चित्र चयनित हुआ राजस्थान ललित कला अकादेमी की छात्र कला प्रदर्शनी में प्रथम बार !
मूर्ति कला विभाग में जो मेरे मित्र थे वे रहे मास्टर लक्ष्मण सिंह नरुका , मास्टर श्रवण सुथार , मास्टर विक्रम सिंह राठोड , मास्टर भवर सुथार , मास्टर मुकुल मिश्रा , मास्टर योगेश भात्रा और मूर्तिकला विभाग के सहायक कर्मचारी श्री ओमप्रकाश मीणा जी ! ओम प्रकाश मीणा जी मूर्तिकला के कलाकारों के लिए टूल भी निर्मित करते थे और विद्यार्थियों को सस्ते दामों में उपलब्ध करवाने का पुण्य कार्य भी करते थे ! सो उनपर के आलेख भी मैंने लिखा शीर्षक देते हुए की " मूर्तिकला के कलाकारों के सहायक है ओमप्रकाश मीणा " डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा जी ने उस आलेख को पढ़कर जो की बीकानेर के युगपक्ष अख़बार में छपा था , मुझे बुलाया फिर गौर से देखा और बोले कमाल का कलाकार है लेखक है आर्ट कॉलेज के पिओन पर ही लेख लिख दिया क्या हम तुजे नजर नहीं आये कलाकार ? फिर हस्ते हुए मेरी पीठ थप थपाई शाबाशी दी और उस दिन उन्होंने मुझे अंदर तक समझ लिया था शायद एक गुरु के रूप में ! ( वंदन आप को कला गुरु जी --मेरी आँखें नम है ये लिखते हुए क्षमा। )
फिर एक दिन राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट का वन डे टूर रामगढ़ बांध जयपुर गया , डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा जी के संगरक्षण मे आप भी साथ थे , दाल बाटी चूरमा का खाना बन रहा था तब तक सुमहेन्द्र सर ने सब से गेट टूगेदर करते हुए सभी से कुछ न कुछ सुनाने को कहा , इस क्रम में मेरा भी नंबर आया मैं जीजक के कारण कुछ भी नहीं बोलै , तो सर ने कहां कुछ सुनाएगा नहीं तो तेरे नंबर काट लूंगा ! पर कुछ देर बाद मैं सहज हुआ और फिर मैंने उर्दू जुबान में कुछ आयतें पढ़ी ( मेमिकिरी आर्ट कह सकते है जिसे मैंने टीवी से देखि थी वो मेरे जहाँ में तुरंत आयी पता नहीं कहा से ) जो कुछ ज्यादा ही हास्य स्पद सी हुई और सर जोर जोर से हसने लगे आप की आँखों में आंसूं आ गये हस्ते हस्ते ! फिर बोले कोई रोको इसे कोई रोको बस कर अब बस कर रे ! उस दिन मैंने सर को खुल कर हसाया और हस्ते हुए भी देखा और फिर उस दिन से हम गुरु शिष्य के साथ साथ मित्र भी बन गए आत्मिक मित्र और जब तक मैं जयपुर में रहा और आप सशरीर साथ रहे पूरा संगरक्षण देते रहे मुझे , अब वो चाहे जवाहर कला केंद्र का स्टूडियो में मेरा प्रतिदिन काम करना हो या राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट कॉलेज की अलुमिनी की कला गतिविधि या फिर राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट के मूर्ति कला विभाग में कार्य करना हो मूर्ति कला का !
वर्ष २००४-०५ में मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट की पढाई के दौरान भी मूर्तिकला का कलाकार मेरे भीतर जीवित रहा और उसे मुखरित किया सर्व प्रथम राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट के प्रथम वर्ष मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट की कक्षा में ! मैंने एक फाइबर कास्टिंग वर्क किया चित्रकला के विद्यार्थी होने के बाद भी मुझे इसके लिए अवसर मिला प्रोफ़ेसर राजेंद्र शर्मा जी के संगरक्षण में और मार्ग दर्शन मिला स्वर्गीय डॉक्टर सुमहेन्द्र शर्मा जी से , क्यों की वो मेरा पहला लग भग ५ फिट का मूर्तिकला का कार्य था , डाक घर की मोहर को बड़े माप में फाइबर में कास्टिंग ! सर ने सहज रूप से कास्टिंग प्रक्रिया समझाई और मुझे लगा ये तो बहुत आसान है और ओमप्रकाश मीणा जी ने हेल्पर के रूप में सहयोग किया ! मूर्तिकार मित्र योगेश भात्रा ने डाक मोहर को क्ले में बड़े माप में कैसे क्रिएट किया जाए इस पर चर्चा करते हुए मदद की ! और मैंने राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट में मूर्तिकला विभाग में बैठकर मूर्ति का भी निर्माण करलिया ! जिसे चित्रकला के एक इंस्टालेशन में काम में लिया शीर्षक " १४ फ़रवरी " और कला मेले में बैंक एस बी बी जे ने पुरस्कृत भी किया ! और उस दिन मुझे मूर्तिकला के लिए भी राजस्थान ललित कला अकादेमी के आयोजन में पुरस्कार मिला ! वो भी उपस्थिति में डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा जी की !
१९ जुलाई २०२५ को स्वर्गीय डॉक्टर सुमहेन्द्र शर्मा जी की पुण्यतिथि थी सो उस दिन मेरे द्वारा किये गए वर्ष २०२५ के मूर्तिकला के नए कार्य "स्कल्पचर ऑफ़ ग्रीनरी " की प्रथम स्टेज पूर्ण हो गयी थी सो मैंने मेरे इस नए मूर्तिकला के कार्य को समर्पित किया स्वर्गीय डॉक्टर सुमहेन्द्र शर्मा जी को !
मेरे इस नए मूर्तिशिप्ल जो की प्राकृतिक और पर्यावरण का अंग है जिसमे मैंने मात्र फाउंडेशन बनाया है बाकी कार्य प्रकृति स्वयं करेगी और इस कार्य में मेरी नयी मूर्ति शिप्ल "स्कल्पचर ऑफ़ ग्रीनरी " हरियाली , ऑक्सीजन व किट पतंगों के साथ पक्षियों के लिए हरे पत्तों का भोजन उपलब्ध करवाएगी , बरसात के पानी से जमीन में बोये हुए बीज से वापस तीन महीनो में असंख्य बीज भी बनाएगी प्रकृति में प्रकृति के सहयोग से ! सो मैंने मेरे इस नए मूर्तिशिल्प को नाम दिया है "स्कल्पचर ऑफ़ ग्रीनरी " जिसे समर्पित किया है कला गुरु जी स्वर्गीय डॉक्टर सुमहेन्द्र शर्मा जी को ! यहाँ एक फोटो प्रथम चरण के पूर्ण होते हुए मूर्ति शिल्प "स्कल्पचर ऑफ़ ग्रीनरी " का आप के अवलोकन हेतु !
Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA
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