Thursday, October 2

Art Vibration - 334








A VERY CRITICAL NOTE OF MY REAL CRITICAL CONDITION OF REAL LIFE OF TODAY 

 हे राम …. ये सम्बोधन ठीक वैसा ही है जैसा की ईसामसीह ने अपने अंतिम क्षणो मे ईस्वर को सम्बोधित करते हुए कहा था !   दे डोन्ट नॉ व्हॉट दे आर डूइंग (  वे नहीं जानते की वे क्या कर रहे है )   ये वाक्य ईसामसीह ने अपने विरोधियों के लिए कहे अहिंसा की पलना करते हुए और विरोधियों की हिंसा सहते हुए अपने प्राण त्यागते हुए  …! अहिंसा के पुजारी महात्मा ग़ांधी , राष्ट्रपिता , वकील मोहनदास करमचंद ग़ांधी जी के ये अंतिम शब्द थे  …   हे  राम   …! अपने अहिंसात्मक जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव में हिंसा सहते हुए नाथूराम गोडसे की बन्दुक  की गोली से !

इन दिनों मैं भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा हूँ ! वैसे मेरे बच्चपन से ही। मेरी  भुआ  आशा आचार्य और चाचा झावरलाल पुरोहित इन दोनों  ने ही परिवार में अपने निजी हित  के लिए विवाद और कलेश रचा है !  सच को झूठ से ढाका है ! अपनी जिमेवारी को मेरे माता जी और पिताजी के कंधो पर ही रखा है ! सेवा भाव उन्होंने अपने माता  पिता यानि की  मेरे दादा जी और दादी जी के लिए मात्र स्वार्थ पूर्ति  तक ही रखा है ! दादी जी के अंतिम दिनों  मुझे  याद है उन्हें कैंसर था छाती का ! अंतिम दिनों  में मेरी माता जी और पिताजी  सिर्फ   उनके पास थे १९९२ में मेरी दादी जी ने शरीर त्यागा था ! दादा जी और मेरे पिताजी ने ही मृत्यु संस्कार और बाकि सब पारिवारिक रस्मो का जिमेवारी के तौर  पर निर्वहन और व्ययभार संभाला !
 १९९२ से लेकर २०१२ तक मेरे दादा जी हमारे साथ रहे या उनका मन  हम में  रमता था इस्वर जनता है ! दादाजी हमारी वजह से इतने साल और जी सके दादी जी के जाने के बाद क्यों की हमने कभी भी उनपर किसी भी तरह का दबाव नहीं बनाया ! लेकिन वे परेशान थे तो अपने छोटे भाई भगवानदास पुरोहित से , पुत्री आशा आचार्य से और पुत्र झवर लाल पुरोहित  से जो जयपुर में निवासी है बीकानेर यदाकदा आना और पिता से सम्पति की मांग करना और जगड्ना मैंने यही देखा है  मेरे चाचा और भुआ के स्वभाव में बच्चपन  से लेकर आज तक , छल ,  कपट, जूठ ,अनीति ,बस यही उनकी जीवन  पूंजी है इस  जीवन में !
 २०१२  में मेरे दादा जी का देहांत हुआ बिमारी की वजह से डॉ  . एस  . जी  . सोनी जी ने   मेरे दादा जी की शुगर की   बिमारी को पूर्ण रूप समाप्त कर  दिया था दादा जी के देहांत से कोई ५ महीने पहले जिसके लिए  मैं डॉ  . एस  . जी  . सोनी जी का आभारी और ऋणी भी रहूँगा जीवन भर ! पर डॉ साहब को भी एक जगह कहना पड़ा की मेरे इलाज के बाद भी आप पिताजी की  तबियत में सुधार  क्यों नहीं हो पारहा , मेरी दवा का असर क्यों नहीं हो पारहा है तो एक दिन एम  एन अस्पताल में उन्होंने प्रत्यक्ष प्रमाण देखा मेरे दादा जी  भर्ती थे मेरी भुआ और और चाचा ने अस्पताल में भी दादा जी को परेशान किया ! दवा दारु करने की बजाय दादा जी पर कोर्ट केश करने की धमकिया मेरे दादा जी को दी गयी !
तब डॉ एस  जी सोनी जी ने मेरे माता जी व  पिता जी से  कहा अब आप सिर्फ सेवा करे और प्रार्थना करे इस स्थिति में दवा इनपर काम नहीं कर सकती ! हालात  ये हुए की दादा जी को अंतिम २ महीने में मानसिक संतुलन खोने और यादास्त जाने तक की बिमारी को भी सहना   पड़ा ! वे हमें भी नहीं पहचान पारहे थे तब मनोचिकित्सक के के वर्मा जी ने उन्हें पुनः मानसिक स्वस्थता अपने इलाज से दी !  मैं उनका भी ऋणी हूँ और जीवन भर रहूँगा !
अंततोगत्वा मेरे दादा जी  देह त्याग दी !  मैं मेरे पिताजी माता जी और मेरा छोटा भाई ही उनके पास थे हमारे अलावा न उनका भाई आया, न छोटा बेटा और न बेटी !
मेरे पिताजी ने दादा जी की मृत्यु संदेशा भुआ और चाचा को भेजा और चाचा के लिए दादा जी के पार्थिव देह को परिवार वालों के मना  करने के बाद भी हमने एक रात घर में रखा ! क्यों की मेरे चाचा झवर लाल पुरोहित ने मुझे कहा था की मेरे पिता की मृत्यु उपरांत वो पोस्टमार्टम करवाएगा ! सो मैंने जिद कर के दादा जी की देह को  घर में रखा ! सुबह चाचा और भुआ आये पर वे घर के भीतर प्रवेश तक नहीं कर पाये ! हमने भी उन्हें नहीं रोका और परिवार वालों ने भी उन्हें निवेदन किया की तुम्हारे पिताजी का देहांत हो गया है ! जाकर अंतिम दरशन कर लो पर वे घर में आ ना सके ! ये मेरे दादा जी की आत्म शक्ति का प्रभाव था जो मैंने महसूस किया और आज भी करता हूँ !

आज दो साल  बाद दादा जी के  देहांत के बाद मेरी बुआ और चाचा पुनः अनीति और अकारण पेरशानी रचने में जुट गए है ! मेरे पिता और मेरे साथ मेरे भाई के खिलाफ ! भुआ ने २ नंबर थाने में मेरे खिलाफ और मेरे पिताजी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज  कराने की कोशिश की है जिसमे दादा की जमीन  हड़पने का आरोप साथ में गली गलोच और हाथापाई करने जैसी बात लिखी है ऐसा थाना अधिकारी दर्जाराम जी ने मुझे बताया है ! भुआ ने रिपोर्ट का आधार पुरानी वसीयत जो की नोटेरी बेस है साथ में सलंग्न की है जो दादा जी २००५ में ही ख़ारिज कर चुके थे  ! और उसमे सपस्ट लिख दिया है की मैं मेरी बेटी को कुछ नहीं देना चाहता साथ में २००५ की वशियत के हिसाब से मेरे दादा जी ने न तो मेरे लिए कोई वसीयत लिखी है और न ही मेरे पिता जी के हक़ में ! फिर भी भुआ ने मेरे पिताजी और मेरे खिलाफ पुलिस कारवाही करने हेतु थाने में कागज लगाया है ! मुझे भी और मेरे पिताजी को भी थाने  में बुलाया गया पर नयी वसीयत  की कॉपी देते ही थाने दार जी को भी बात समझ आई की वास्तविक बात है क्या !
भुआ की नाजायज जिद को भी पिताजी ने मानते हुए अपने हिसे की जमीन भुआ को देने का फैसला मौजिज लोगो की उपस्थिति में लेलिया पर फिर भी भुआ  अब जमीं लेने को तैयार नहीं क्यों की उन्हें कहा है की पहले थाने से कागज हटाओ माफ़ी नामा पेश करो साथ में भविष्य में  ऐसी  ओछी हरकत की पुनरावृति नहीं  करने की शपत हस्ताक्षर के साथ हमें दो !
सही अर्थों में कहूँ तो कागजों में रिश्ते को खत्म करने का कदम है  जैसे की   दादा जी ने अपनी नयी वसीयत में २००५ में करदिया था अपने छोटे बेटे और बेटी से !
क्यों की वे जानते थे की ये क्या  कर रहे है और ये क्या  करेंगे मेरे बाद , क्यों की वे वास्तव में थे मेरे चाचा और भुआ के बाप !
इस दो माह के उपक्रम और प्रकरण में जिसका आधार ही जूठ , कपट और मिथ्या है उसके खिलाफ हमने अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है ! मेरी भुआ और चाचा के खिलाफ  हमारे पास उनके सारे झूठ और कपट के वास्तव में झूठ होने के प्रमाणिंक प्रमाण है जिसे जब कभी सरकारी नियमावली  के  तहत पेश करने की जरूररत पड़ी तो हम पेश करेंगे और तब उन्हें इस्वर भी नहीं बचा सकेगा उनके साथ होने वाली   अनहोनी से !
पर मन अभी भी कह रहा है की वे नहीं जानते की वे क्या कर रहे है ? …
और मुझे एक ही शब्द याद आरहा है आज के दिन जिसे राष्ट्रपिता महात्मा ग़ांधी जी ने दिया था। … हे  राम  …… !

 

Yogendra kumar purohit

Master of Fine Art

Bikaner, INDIA

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