Sunday, March 9

Art Vibration - 714

I learn to Simplicity from Child Art

Friends you know child art is pure art in our world . Only child art is complete to definition of aesthetic value of art .So I am thinking child art is very strong and pure art. It is move on logic of SATAY SHIVAM SUNDARAM . ( The logic of  Indian Art Aesthetic ) . 




 

Child art is teaching to us about freedom of  expressions and  freedom of own  style , child art is giving sense to us about simplicity by simple lines and pure colors . child art is not showing any magical effects . it is just communicate to others and share inner imagination plus inner sound by simple lines and colors . 


So I am learning to child art always. Or I am trying to visit to child art everyday  in my daily art visit , so I am connected to PATRIKA BRAIN POWER facebook page , I also connected to 94.3 MY FM Bikaner unite to last four years  . They are committed for child art or by their art commitment I am visiting to lots of child art and I am learning to  simplicity from their collections of child art .

 







You can notice to my daily visit on Patrika Brain Power page of FB , and by this post you can know more about  my nature of child art visit.


Last week I was invited once again for join to child art activity of 94.3 MYFM Bikaner . R. J . Mayur Tak was called to  me and he was informed to me about child art exhibition  at Maharani Sudarshan Art Gallery Bikaner . Actually R.J. Mayur tak was invited to me for visit to child art exhibition , or that exhibition was done by 300 art works selection of Child Art from me  . ( In past post  of art vibration -I have shared about it or here I am sharing that’s post link for  know to full story of that art selection exercise of myself )   .

http://yogendra-art.blogspot.com/2025/02/art-vibration-711.html

In day time I went to Maharani Sudarshan Art Gallery , there I visited many kids ( child art masters ) were presented with his / her parents . it was surprising for me from team of 94.3 MYFM  Bikaner.   




 

94.3 MYFM team was exhibited all 300 selected paintings with  very academic display in art gallery . there many parents were talked to me about art education of child art masters or their own kids . that time I suggested to them for child art growth – freedom is very must and motivation is very first for create to child art master in our society . At present this kids are child artists but in future they all can care to our INDIAN culture. they all can promote to our INDIAN culture as a care taker of our INDIAN culture  . so it is very must we create cultural art space for kids today  for our cultural or artistic future . 


I also discussed to kids ( child artists ) in art gallery or I said to kids ( child art masters)  I am very much inspire to your very creative and simple art form. It is teaching to  me and I am learning to simplicity for visual art or to express to my art vision by this very simple art form , just like  your freedom full true art  .

So here I write about it . I learn to simplicity from child art …

Yogendra  kumar purohit

Master of Fine Art

Bikaner, INDIA


 

Saturday, March 8

Art Vibration - 713

Journey of Jain Temple   Mohankheda Tirth ( MP.)2025

Friends after a long time I have done a long journey for my art journey . Date 1 /3/2025 to till 4/3/2025 by road I went to Jain thirth / temple Mohankheda ( M.P. ) , India . 

Mohankheda Jain Tirth / Temple ( M.P. ) India 2025

 

In this long journey I observed to many visuals and  I remembered many past stories of my art journey and I captured some visuals as a documentation of my journey of Mohankheda Jain Tirth Dham. 


Arawali Parwat Mala & Ajamer NH /SH 2025



 


I have wrote to that all live experiences  in a hindi note or here I am sharing that hindi note for your reading , I sure  you will enjoy to my journey of Mohankheda by this hindi note after read or after translate  in your own language for your reading .  


 

 

 एक और यात्रा वृतांत 2025 ...

भारतीय डाक सेवा से राजगढ़ मध्य प्रदेश से स्पीड पोस्ट के जरिये  एक डाक ( विवाह पत्रिका )  मेरे घर के पते पर पहुंचनी थी ! भेजने वाले मेरे पिता जी के मौसी का परिवार रहा ! भारतीय डाक सेवा ने ऑनलाइन ट्रैकिंग में डाक को पांच दिन में बीकानेर के बंगला नगर  डाक घर तक की पहुँच को बताया !  पर डाकिया मेरे घर तक डाक नहीं पहुँचा  पाया और ऑनलाइन ट्रैकिंग में नोटिफिकेशन ये रहा की एड्रेस नॉट फाउंड ! तो मैंने तुरंत संज्ञान लेते हुए मुख्य डाक घर के डाकिये श्री बाबूलाल छंगाणी जी से संपर्क किया आप मेरे संपर्क में साहित्य की वजह से है ! आप हास्य कवि और मंच संचालक भी है ! सो आप को पूरी जानकारी विवरण सहित दी !  तो उन्होंने मुख्य डाक घर में डाक को वापसी से पहले रोकते हुए मुझे सूचित किया की आप की डाक मैंने ले ली है अब आप तक पहुँच हो जायेगी ! आप ने वो डाक मुझे सुपुर्द करि जिमेवारी के साथ बड़े भाई की तरह ! आप द्वारा ये डाक न पहुंचाई जाती तो मेरी यात्रा का विचार आरम्भ से पहले ही समाप्त हो जाता !
एड्रेस नॉट फाउंड के विषय में आप से जानकारी ली तो आप ने बताया की बंगला   नगर डाक घर  का डाकिया अवकाश पर था ! तो एड्रेस नॉट फाउंड रिपोर्टिंग डाल  दी गयी ऐसा होना सम्मान्य क्रिया है डाक घर की !  क्योंकि स्पीड पोस्ट की जवाब देहि  होती है डाक घर की  ! मैंने उन्हें बतलाया की अगर ये डाक मुझ तक न पहुँचती तो होता ये की भेजने वाले सोचते की मैंने एड्रेस  गलत दे दिया और मै  ये सोचता की भेजने वालों ने एड्रेस  ठीक से नहीं लिखा ! पर दरसल लिखा ये था विधाता ने की मेरी यात्रा होनी थी राजगढ़ मध्य प्रदेश की ! सो हुई श्री मान बाबूलाल छंगाणी जी के सफल सहयोग से !




दिनांक  1 /3 /2025  को सुबह 8  बजे  मैंने  मेरे माता पिता के साथ शिफ्ट  डिजायर कार से सुशिल सारण नाम के सारथि / ड्राइवर /कार चालक के जरिये यात्रा आरम्भ की बीकानेर टू राजगढ़ मध्य प्रदेश की !  यात्रा आरम्भ होते ही पहला पड़ाव हमारे सारथि /कार चालक ने लिया वो भी एक विशाल रक्त दान शिविर पर , जो जाट समाज की और से लगाया गया था ! मास्टर सुशिल सारण ने रक्त दान किया समाज सेवा भाव के साथ जो एक सकारात्मक संकेत रहा मेरे अनुभव के लिए इस 15 घंटे की लम्बी सड़क मार्ग की यात्रा के लिए !
देशनोक धाम की रोड पर पहुँचते ही मैंने मोबाइल पर गंतव्य स्थान पर पहुँचने हेतु लोकेशन मंगवाई राजगढ़ फ़ोन करते हुए ! लोकेशन के आने के बाद मोबाइल पर रास्ता और हमारी करंट लोकेशन  का दिखना  मुझे और शांत करता हुआ और विश्वास से भर गया  ! हाई वे से ही माँ करणी के मंदिर को प्रणाम करते हुए हम आगे बढे ! और करीब ढ़ाई  घंटे के बाद  हम नागौर पहुंचे ! वहाँ एक चाय की स्टॉल पर कुछ पल रुके चाय के साथ हल्का नास्ता लिया और आगे  के सफर को रवाना हुए !  नागौर के बाद अगला स्टॉपेज हमने अजमेर को फाइनल किया और अजमेर हाई वे पर कार को  ले आये ,  रास्ते में मीरा बाई का मेड़ता आया पर हम बाई पास से ही गुजरे उस मीरा बाई की तपो भूमि को प्रणाम करते हुए ! अजमेर हाई वे के आते ही मुझे अरावली पर्वत माला की दृश्यावली नजर आयी साथ ही मुझे अजमेर के आकार कला ग्रुप के कलाकारों की कला कृतियां भी !  जिसमे बहुतुल्य अरावली पहाड़ी के ही चित्रण हुआ है ! एक अजमेर के कलाकार से तो मैंने कला मेला जयपुर में पूछा भी था की आप सभी के चित्रों में पहाड़ ही पहाड़ क्यों ? तो उन मेसे एक कलाकार ने कहा हम पहाड़ियों में रहते है इस लिए !
मैंने अजमेर घाटी  के मध्य से जाती हुई हाई वे की उस सड़क के एक दो छाया चित्र भी लिए मेरे मोबाइल से जो की एक अच्छे लैंडस्केप चित्र में परिवर्तित हो सकता है ! अजमेरी और अरावली पहाड़ी के साथ ! हा हा ! 



अजमेर हाई वे के एक रेस्टोरा पे खाना लेकर हम आगे बढे भीलवाड़ा बाईपास होते हुए चितोड़गढ़ बाई पास के मध्य अरावली पर्वत माला के मनोरम दृश्य अध्भुत थे ! उन दृश्यों को देखते देखते कब हम  नीमच राजस्थान / मध्य प्रदेश बॉर्डर पर पहुँच गए पता ही नहीं  चला ! नीमच में हम  रुके चाय पानी लेते हुए समय को  जाया ना करते हुए हम इस मनसा से आगे बढे की अँधेरा हो उस से पहले पहले हम हमारे गंतव्य के करीब पहुँच जाए !  रफ़्तार , सड़क और साहस का बेजोड़ उदहारण मैंने अनुभूत किया ! ऐसा ही कुछ वर्ष  पूर्व में मैंने स्वयं से अनुभूत किया और वो सब मुझे उस पलो में याद आ रहा था ! एक बार मेरे कला गुरु /एच ओ  डी पेंटिंग डिपार्टमेनेंट राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट  कॉलेज जयपुर डॉ. वि एस  उपाध्याय जी की कला प्रदर्शनी जयपुर स्थित जवाहर कला केंद्र में लगी थी , जिसका शुभारम्भ शायं 6 बजे होना था और मैं  बीकानेर से सुबह 11 बजे मेरी आयरन चेतक ( बजाज पल्सर 150 ) पर अकेला ही जयपुर के लिए रवाना हो गया था ! गुरु जी के सम्मान में उपस्थिति देने को  उन्हें सरप्राइज करने को ! उसी  समय रफ़्तार , सड़क और साहस के उस कारनामे को मैंने पुनरावर्ती होते देखा हमारी राजगढ़ मध्य प्रदेश की यात्रा में इस बार साधन कार रही और चालक मास्टर सुशिल सारण !


 

नीमच से अगला स्टॉप हमने तय किया रतलाम , वहाँ पहुंचे तब तक  9 से 10 बज चुके थे ! हमने परिस्थित के अनुरूप वही किसी अच्छे रेस्टोरा में खाना खाने का सोचा , एक रेस्तोरां पर कार को रोका पर हाई वे के उस रेस्टोरा में सुन सान ही थी ! रेस्टोरा के स्टाफ के अलावा कोई और ग्राहक वहाँ  भोजन करते हुए हमे नजर नहीं आया ! सो संकोच हुआ की कैसा खाना मिलेगा ? तो मैंने उस रेस्टोरा के प्रबंधक से बात की और कहा की हम राजस्थान से आये है रास्ते में कोई अच्छा होटल या रेस्टोरा नहीं मिला आप का ये रेस्टोरा दिखा तो कार रोकी इस उम्मीद से की यहाँ अच्छा खाना मिल जाएगा ! मैंने इतना कहा ही था की पीछे से स्टाफ मेंबर बोलै आप चिंता मत करो मैं भी राजस्थान से ही हूँ  झालावाड़ मेरा शहर है ! उस व्यक्ति के इतना कहते ही तसली हुई और उसे बिना  प्याज लहसुन के खाने का आर्डर दिया  ! उसने भी घर के व्यक्ति की तरह हमें खाना खिलाया वो भी एकदम शुद्ध और तजा ! मन और आत्मा तृप्त हुई !  खाना लेते हुए उन पलों में मुझे मेरा जूनियर कलाकार साथी अजय बन्ना ( अजय सिंह राजपूत  झालावाड़ ) याद आया क्यों की रेस्टोरा के बावर्ची ने खुद को झालावाड़ का बताया था ! मुझे याद आयी वो घटना जब मैं रविवार के दिन मेरी आर्ट कॉलेज राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट के बहार बैठा था सुबह के कोई आठ बजे थे सर्दी के दिन थे हलकी धुंध थी , मेरे जूनियर  मास्टर अजय बन्ना और मेरे एक सीनियर  बाक़र भाई  आमेर किल्ले  में किसी फिल्म की शूटिंग के लिए सेट डिज़ाइन  का कार्य कर ने को जा रहे थे ! सुबह तक़रीबन रोज हम आर्ट कॉलेज के आगे मिलते ही थे चाय भी साथ ही लेते थे  सुबह की ! उस दिन भी चाय पि रहे थे और मेरी नजर अजय बन्ना के जूतों पर पड़ी , अजय का एक जूता फटा हुआ था ! जो मुझे अच्छा नहीं लगा तो मैंने अजय से कहा तुम रुको मैं  रूम पर होकर आता हूँ ! मेरा रूम आर्ट कॉलेज के पास ही था मुश्किल से कोई 5  मिनट का रास्ता वो भी पैदल चाल से ! मैं रूम पर गया मेरे आर्मी वाले कैनवास के जुते  लॉन्ग डिज़ाइन वाले लिए और वापस आकर अजय को थमाते हुए कहा की ये पहनो सर्दी नहीं लगेगी तुम्हारे पांव को ! अजय ने मेरा गिफ्ट जरूरत के वक्त का था सो स्वीकारा ! वे जूते पहने और बाक़र भाई के साथ उनकी बुलेट पर बेठ कर आमेर के किले की और निकल गए  और मैं मेरी आर्ट कॉलेज में  अध्ययन करने को चला गया !
उस जरूरत के वक्त में दिए गए गिफ्ट का प्रति फल मुझे रतलाम के उस रेस्टोरा के बावर्ची जो की झालावाड़ से था के द्वारा अच्छे खाने के रूप में जरूरत के समय  मुझे वापिस  मिला ! इस्वर किसी का भी उधार नहीं रखता बस लेन देन का वक़्त आगे पीछे कर देता है ! वो भी जरूरत के हिसाब से ! इस्वर तुम कमाल हो !
अब रतलाम से खाना खाने के बाद हम फिर रवाना हुए अगले स्टॉप धार के लिए  जो ऍन एच 156 से हमें तय करना था ! लगभग 11 बज चुके थे रात गहरा रही थी सड़क पर सन्नाटा बिखर रहा था ! हमारे लिए खास कर मेरे लिए ये सफर एक दम नया अनुभव था सड़क मार्ग से राजगढ़ पहुँचने का ! ऍन एच 156  सड़क पर असंख्य कट है  डिवाइडर में ( हर 100 मीटर के बाद एक ) और जितने कट उतने ही स्पीड ब्रेकर वो भी 1 से लेकर 10 तक की संख्या के बिना सफ़ेद रंग के सूचक के !  सो रफ़्तार वो भी घोर अंधकार में बार बार टूटती रही कार भी झटके खाती  रही , हम सभी ने अपनी सीट बेल्ट कस कर बाँधी और सतर्क होकर बैठे ! उस पल मैंने इतने सारे ब्रेकर देखकर,  जो एकदम से कार की लाइट से ही दीखते नजदीक जाने पर , कार  के एकदम से ब्रेक लगने पर  तो ये सोचा की जितने ब्रेकर इस ऍन एच 156  पर डाम्बर से बनाये है उतने डाम्बर में तो दो भारत माला जैसी शानदार सड़क मार्ग का निर्माण हो सकता था !




खेर स्पीड और ब्रेकर की जुगलबंदी को महसूस करते हुए और देखते देखते हम धार जिले में प्रवेश कर गए  ,अब धार से हमें मोहन खेड़ा का सफर करना था और ये हमारा फाइनल डेस्टिनेशन था जहाँ पहुंचकर मेरी ये यात्रा पूर्ण होनी थी ! रात्रि 12 : 20 पर हम मोहनखेड़ा जैन गुरु के तीर्थ धाम / धर्म स्थली पहुंचे और रात्रि विश्राम वेन्यू वाली जगह किया परिवार के सदस्यों से मिले और विवाह समारोह में शामिल हुए !
अगली सुबह नित्यकर्म करने के उपरांत मैंने जैन तीर्थंकरों के उपासरे का दर्शन लाभ लिया ! मोहनखेड़ा  जैन समाज का सबसे प्रमुख तीर्थ सथल है और गुरु महाराज की अनुकम्पा से मैं उस स्थान पर नतमस्तक था ! मैंने उस पुरे केम्पस का अवलोकन किया दर्शन लाभ भी लिया तो  संगमरमर से निर्मित अध्भुत कलाकृतियों का अवलोकन और मूल्याङ्कन भी किया ! कुछ मूर्तिकारों से साक्षात्कार भी किया , जिनमे कुछ कलाकार उड़ीसा से वहाँ मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए आये हुए थे और सुन्दर कलाकारी से मंदिरों को और सुन्दर बना रहे थे !
मोहन खेड़ा जैन तीर्थ स्थल  की पेड़ी ( कार्यालय  मोहन खेड़ा तीर्थ धाम )  पर मैंने मेरी यथा शक्ति भेंट अर्पित की जिसकी मुझे रसीद भी प्राप्त हुई और मेरा नाम पंजीकृत हुआ मोहनखेड़ा तीर्थ धाम पर श्री गुरु चरणों में वंदन करने बाबत ! वहाँ की भोर की शांति से परिपूर्ण माहौल अध्भुत था , चित रमणीय था ! आत्मशांति की अनुभिति करवाने वाला था ! मुझ अपरिचित को भी वहाँ  इस प्रकार आदर और सत्कार मिला गार्ड से लेकर मोहनखेड़ा तीर्थ धाम के प्रबंधक और पुजारियों के साथ कलाकारों से भी !  ये सब भी इस्वर और गुरु की अनुकम्पा के बगैर संभव नहीं !
दिनाक 2 और 3 पारिवारिक विवाह आयोजन में सामान्य वैवाहिक गतिविधि में बीते परिवार जन  के साथ जो मोहन खेड़ा से अलग जगह मांडवा /माण्डू तहसील के एक रिसोर्ट में आयोजित हुआ था  और फिर 4 /3 /2025  की सुबह 8  बजे वापसी के लिए निकासी करि और उसी मार्ग से होते हुए   माण्डू से बीकानेर पहुंचे  ! इस बिच वापसी के समय रास्ते में मध्य प्रदेश की गेहूं की खेती के हरे भरे खेत खलिहान और उनके मध्य खड़ी विशाल भीम काय पवन चक्कियों के दृश्य  सुबह के समय अति रमणीय प्रतीत हो रहे थे ! 


इस प्रकार मेरी ये प्रथम यात्रा बीकानेर से राजगढ़ मोहनखेड़ा जैन तीर्थ धाम की सफलता पूर्वक गुरु देव के आशीर्वाद से   पूर्ण हुई  !

योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर, इंडिया





 

I sure my journey  note is create many visuals in your vision or  you will done this same journey in your imagination with me . Because I have wrote it  as a realistic visual / note for readers .

So here I write about it ..Journey of Jain temple Mohankheda Tirth ( M. P. ) 2025 .

 

Yogendra  kumar purohit

Master of Fine Art

Bikaner, INDIA