Journey of Bikaneri Holi 2025
Friends I am going to share my new journey of Bikaneri holi with you by a hindi text note . actually in this holi festival of my city I was move as a tourist and I observed to Bikaneri holi in a artistic angle . so I found many different views and visuals plus condition of holi festival of Bikaner or I were noted that as a note of YAATRA VIRITANT ( note of Journey ) .
Here that note for your reading or I hope English reader will translate it in their own English by a good translator .
My hindi not is this ..
मित्रों बीकानेर की प्रसिद्ध होली २०२५ की यात्रा मेरे संग करिये मेरे शब्द चित्रों से !
बीकानेर की होली आरम्भ होती है होलिका दहन से सात दिन पूर्व हिन्दू पंचांग के आधार पर ,बीकानेर में इसे होलका लगना कहते है ! होलका लगने के साथ ही बीकानेर में ऑफिसियल होली आरम्भ हो जाती है ! जिसे लोक संस्कृति के रूप में पहचाना जाता है जैसे की ब्रिज की होली की पहचान है !
मैंने इस बार होली की शुरुवात बीकानेर के नगर सेठ लक्ष्मीनाथ मंदिर से आरम्भ की हर बार की तरह भगवान् लक्ष्मीनाथ मंदिर के दर्शन और उसके बाद वहाँ आयोजित होने वाले फ़ाग उत्सव से, जिसमे लोक गीत की सांस्कृतिक धमाल गायी जाती है भगवान् लक्ष्मीनाथ जी के लिए साथ ही गुलाल भी उछाली जाती है भक्त जन पर ! ये मेरी होलिका की यात्रा का प्रथम दिन का प्रथम चरण था , जिसे पूरा करते हुए मैं मेरी बाइक से मेरे घर से लक्ष्मीनाथ मंदिर गया रास्ते में शहर के परकोटे की होली के लिए बनी मानसिक उमंग और उत्साह के साथ रोशनाई भी देखि जो अध्भुत थी ! साथ ही बीकानेर प्रसाशन और बीकानेर के होली रसियों ने बोर्ड की परीक्षा दे रहे विद्यार्थियों के लिए ध्वनि प्रदुषण जो की भोंपू और डी जे से होता है उसे इस बार वर्जित सा कर दिया जो बीकानेर के भविष्य को सफल बनाने के लिए उठाया गया बहुत ही सराहनीय कदम रहा !
मेरी होली यात्रा के दूसरे दिन मैंने बीकानेरी होली कैलेंडर को देखते हुए खुद को फागणिया फूटबाल खेल के लिए स्वांग भरते हुए तैयार किया ! स्वांग भरना एक प्रकार की मेकअप आर्ट , किरदार को स्वयं में रचना , किसी खास व्यक्ति के रूप को धारण करते हुए उसे अभिनीत करना ! सो मैंने श्री लंका के तेज गेंदबाज मलिंगा क्रिकेटर का किरदार / स्वांग भरा हर बार की भांति वैसे मैं ये किरदार पिछले ६ साल से निभा रहा हूँ फागणिया फूटबाल में जो की बीकानेर के धरणीधर खेल मैदान में खेला जाता है सिर्फ बीकानेर के स्वांग भरने वाले कलाकारों के द्वारा ! ये खेल बीकानेर में गत २५ वर्षों से खेला जा रहा है ! और इसे आयोजित करते है बीकानेर के बैंक कर्मी, समाज सेवी श्री सीताराम कच्छावा जी और श्री कन्हैया लाला रंगा ( भूतपूर्व फूटबाल खिलाडी बीकानेर ) और धरणीधर खेल मैदान समिति भी !
सो ठीक ५ बजे मैं धरणीधर खेल मैदान पहुंचा मेरा नाम दर्ज करवाया मलिंगा के नाम से और मेरे ही किरदार से प्रभावित होकर एक और कलाकार मलिंगा बनकर आया तो नाम दर्ज करने वाले ने पूछा क्या नाम लिखूं आप के स्वांग रूप का ? मैंने कहा जूनियर मलिंगा या मलिंगा -२ , वहाँ पुष्पा राज -२ , महाराजा शिवजी , संभा जी , छावा , डॉक्टर, आर्मी , कातिल , मुजरिम, जख्मी , राजस्थानी बणीठणी , इटली की प्रधानमंत्री , महामहिम राष्ट्रपति भारत और महामहिम प्रधान मंत्री भारत ,के अलावा महंत प्रेमानंद जी महाराज , लोक देवता रामदेव जी , महावदेव , और महादेव के बहुत , पालित , गण तो माँ काली एक छोटी बालिका बनकर आयी और वो बालिका खेली भी फागणिया फुटबाल जो इस खेल और बीकानेर की स्वच्छ होली की सूचकांक भी बना ! फागणिया फूटबाल के खेल को असली मीडिया बीकानेर ने लाइव रिपोर्टिंग के जरिये पुरे भारत वर्ष के साथ विश्व पटल पर भी इस अनूठे और लोक संस्कृति में स्पोर्ट्स स्पिरिट के साथ होली को खेलने का सन्देश भी जन जन तक पहुँचाया बीकानेर के इस अनूठे फागणिया फूटबाल खेल के जरिये ! वहाँ बीकानेर पश्चिम के विधायक श्री जेठानन्द व्यास जी ने अपने कर कमलों से सभी फागणिया फूटबाल खेल के प्रतिभागियों को टॉय कार भेंट की और उनमे खेल के लिए खेल भावना के साथ होली में भी खेल भावना बनाये रखने की बात भी मंच से साझा किसभी बीकानेर वासियों के लिए !
मेरी तीसरे दिन की होली यात्रा आरम्भ हुई फ़ाग उत्सव और भजन संध्या से , जिसे आयोजित किया था मेरे स्कूल के मित्र मास्टर शिव कुमार जोशी ने और ये फाग उत्सव उसने आयोजित किया कृष्णेश्वर महादेव मंदिर करमिशर रोड बीकानेर में ! जिसे मैंने गूगल लोकेशन के जरिये खोजते हुए वहाँ पहुंचा ! कृष्णेश्वर महादेव मंदिर में मास्टर शिव कुमार जोशी के छोटे भाई मास्टर अमित कुमार जोशी बिग फैन है डॉ. अमिताभ बच्चन जी के जी हाँ हिंदी जगत के सुपर स्टार , दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के साथ तीन बार पदम् पुरस्कार से सम्मानित डॉ. अमिताभ बच्चन जी के ! जिनसे मेरा भी ऑनलाइन ब्लॉग सरबच्चन से पिछले १८ साल से नियमित प्रतिदिन का संवाद टेक्स्ट कम्युनिकेशन से जारी है इस्वर की अनुकम्पा से और मैं डॉ. अमिताभ बच्च्चन जी का ई स्टूडेंट हूँ और वे मेरे ई गुरु ! तो कृष्णेश्वर महादेव मंदिर में उन दोनों जोशी बंधुओं ने मेरे मित्रों ने मेरा स्वागर गुलाल के रंग के तिलक से किया ! फिर भजन सन्धाय और फ़ाग धमाल के साथ पुष्प होली ( ब्रज की तर्ज पर ) को खेलते हुए देखा ! प्रसाद स्वरुप गरम राबड़िया दूध से निर्मित उसे पिया और कुछ छाया चित्र लिए मास्टर अमित और मेटर शिव कुमार जोशी के फिर घर की और प्रस्थान किया !
मेरी चौथे दिन की होली यात्रा कुछ अनूठी रही ! मैं मेरे बड़े भाई और साहित्य मित्र मनीष कुमार जोशी के साथ बाइक से होली यात्रा को निकले ! साथ में हमने ली एक असली बजने वाली ढोलक जिसे बाइक पर ही मैं पीछे बैठकर बजा रहा था पुरे रास्ते में और सभी होली के रसियों को ढोलक के स्वर से आकर्षित भी कर रहा था ! लोक वाद्य की ध्वनि स्वतः ही श्रोता को लोक के रस से जोड़ देती है ! ये मैंने प्रैक्टिकल कर के देखा इस होली यात्रा में !
हमारी बाइक सवारी पहले पहुंची नथूसर गेट , बीकानेर में चार दिशाओं में चार गेट है और पूरा बीकानेर परकोटे में मतलब चार दीवारी में ही बसा था राजाओं के काल में ! सो लोक सांस्कृतिक होली आज भी बीकानेर के परकोटे में ही खेली जाती है ! अब नथूसर गेट के बहार दो कुल्फी की दुकाने है एक जोशी जी की और एक व्यास जी की होलका के आरम्भ होते ही इन दोनों दुकानों पर विशेष कुल्फी बिक्री होती है उसे कहते है भांग की कुल्फी ! जिसे बीकानेर शहर के युवा , वरिष्ठ जो भांग के शौकीन है वे बड़े चाव से खाते है एक कुल्फी वे अपनी रूचि से खाते है बाकी चार से पांच छह सात आठ नो और दस से भी ज्यादा वो एक कुल्फी उनको खाने पर बाध्य भी करदेती है ! सो उन आमने सामने की दोनों दुकानों पर श्याम के समय अथाह भीड़ हो जाती है और लोग कुल्फी खाते खाते वही रुक जाते है या फिर वही पसर जाते है क्यों की भांग उन्हें हिलने ही नहीं देती ! और वहाँ का दृश्य ऐसा हो जाता है मानो वे असंख्य भांग की कुल्फी खाने वालों की भीड़ कोई मधुमखी का छता हो और वे दो कुल्फी की दुकाने उस भीड़ के बिच छते की रानी मखियाँ। हा हा....!
नथूसर गेट से जैसे तैसे हम आगे बढे और पहुंचे बारहगुवाड़ चौक वह हमने बाइक को स्टैंड पर खड़ा किया ! और वहाँ से पैदल आगे बढे हमारी ढोलक को बजाते हुए ! बिच चौक में एक बड़ा मंच था और मेरी पोषक ऐसी थी मानो कोई लोक कलाकार हो कुरता पजामा माथे पर पगड़ी और हाथ में लोक वाद्य ढोलक भी ! और मैं भी सीधे मंच को प्रणाम करते हुए मंच पर चढ़ गया और बिच मंच पर बैठकर ढोलक बजाने लगा ! ढोलक की आवाज सुनकर लोग मेरी और आकर्षित हुए उन्हें लगा कोई जोरदार प्रस्तुति होने जा रही है पर ऐसा कुछ न हुआ बस थोड़ी बहुत ढोलक जो मुझे बजानी आती है वो बजाई और मेरी उपस्थिति उस चौक में दर्च करवाई साहित्यकार मनीष कुमार जोशी जी ने मेरे एक दो छाया चित्र भी लिए और फिर हमने वहाँ महाराज की चाय की दुकान से चाय पि और आगे बढे !
बारहगुवाड़ चौक से हम रतानी व्यासों के चौक की और निकले की रास्ते मे एक तहखाने के दरवाजे के आगे एक व्यक्ति एक पारम्परिक लकड़ी से जलने वाली अंगीठी / बोरसी पर कड़ाई का गर्म दूध सड़क पर से ही बेच रहा था ! उसका ध्यान होली में नहीं बल्कि अपने उस रोजी के काम में अधिक था और उसके चेहरे के भाव पढ़े तो महसूस किया की वो भय भीत है की कोई उसका दूध उदंडता के साथ गिरा ना दे और जल्द से जल्द ये दूध बिक जाए ताकि वो चिंता मुक्त हो आज की रोजी और कल्पित भय से जो होली के कारण उसके मन में बना हुआ था उसके रोज के व्यवसाय में मध्य बाधा !
रतानी व्यासों के चौक में मैंने देखा एक नवसिखिया चंग बजाने में व्यस्त था चंग भी एक लोक वाद्य है ! जिस से मैंने मेरी कला यात्रा का प्रथम कदम बढाया था चंग को बजाकर ! वो नवसिखिया बेताल ही ताल ठोक रहा था सो मैंने उस से चंग माँगा उसने मन बे मन से दिया फिर मैंने चंग पर थाप मारते हुए पुरे चौक में चंग की लोक ध्वनि को गुंजाया ! ताल और लय में बजते चंग की ध्वनि को सुनकर एक दो दूसरे व्यक्ति मेरे पास आये और बोले इतना अच्छा बजाते हो कुछ अच्छा गा कर भी सुनाओ उस्ताद ! मैंने कहा मुझे सिर्फ बजाना आता है सा !
रतानी व्यासों के चौक में मेरा पुराण मित्र लक्ष्मण व्यास मिला जो एक चौकी पर बैठे बैठे होली के रस की निस्पति कर रहा था , आनंद ले रहा था उसमें मेरा चंग वादन भी उसके आनंद में शामिल था ! उस चौक से हम सीधे आगे बढे और पहुंचे मोहता चौक जहाँ पर डांडिया रास चल रहा था मरूनायक मंदिर के आगे , सड़क पर बालू रेत बिछायी हुई थी मखमली अनुभिति के लिए नगे पांवो में ! पारम्परिक लोक वाद्य नगाड़ा , झालर और एक बड़े ढ़ोल की ताल पर असंख्य युवा और वरिष्ठ डांडिया रास करते हुए बीकानेर की होली में गुजरात के गरबा /डांडिया रास का रंग भर रहे थे वो भी लोक गीतों के साथ ! मोहता चौक से आगे बढे तो हम पहुंचे आचार्य चौक जहाँ आरम्भ होनी थी शूरवीर अमरसिंघ राठोड की रम्मत ( रम्मत एक लोक नाट्य शैली है जिसके जरिये जातक तथा लोक कथाओं को मंच के माध्यम से अभिनीत करते हुए समाज तक पहुँचाया जाता था शिक्षा की दृष्टि से ) ये परंपरा आज भी जीवित है बीकानेर में जिसे करीब ४०० साल से निभाया जा रहा है ! उस चौक में भीड़ इतनी थी की उस भीड़ को देख कर मैंने जोर से कहा की महा कुम्भ की अनुभूति यही हो रही है ! क्यों की उस भीड़ में महंत प्रेमानंद जी महाराज जी का स्वांग भर कर भी एक व्यक्ति घूम रहा था ! जिसके साथ साहित्यकार मनीष कुमार जोशी जी ने कुछ सेल्फी भी ली उस भीड़ में ! उस भीड़ से बचते हुए रम्मत की माता जी के दर्शन करते हुए हम वापस उसी रास्ते बारहगुवाड़ पहुंचे हमारी बाइक पर ढोलक को बजाते हुए घर लौटे !
मेरी पांचवे दिन की होली की यात्रा आरम्भ हुई फिर से साहित्य मित्र मनीष कुमार जोशी जी के साथ इस बार हमने रास्ता बदला और पहले पहल पहुंचे जसुसर गेट के बाहर , वहाँ समाज सेवी श्री राजकुमार किराडू जी ने लोक संगीत सन्धाय का आयोजन किया हुआ था और बीकानेर के प्रसिद्ध लोक गायक मदन जेरी अपना लोक प्रिय लोक गीत राजस्थानी गिलारी आ गिलारी छोटी सी गिलारी , इये माछरों ने देख देख जीभ फल्लारी सूना रहे थे ! तो जसुसर गेट के भीतर जगदम्बा मित्र मंडल भी हर वर्ष की भांति चंग धमाल का भव्य आयोजन चला रहा था! जिसमे बीकानेर की चंग और धमाल के साथ लोक नृत्य करने वाले लोक कलाकारों ने शानदार प्रस्तुतिया दी जिसे हमने भी देखा और उन्हें कैमरे में कैद भी किया , तो कुछ लोग उस भीड़ में रील बना रहे थे तो कुछ सेल्फी ले रहे थे उस भव्य मंच के आगे तो कुछ लाइव चैट के जरिये अपने प्रियजनों को घर पे ही मोबाइल पर प्रोग्राम दिखा रहे थे सो आभार मोबाइल डिज़ाइनर को भी इस सुलभ सुविधा के लिए ! फिर वहाँ से आगे हम निकले तो पहुंचे दम्माणी चौक वहाँ हमने हमारी बाइक स्टेण्ड पर रखी और सीधे पहुंचे श्री गोपाल जी के मंदिर में दर्शन करने को ! गोपाल जी के मंदिर में फाग उत्सव गुलाब पुष्प की होली के साथ खेला गया ठाकुर जी से ! हमारे दर्शन के बाद हमे अनिवार्य रूप से मेवे की खीर का प्रसाद ग्रहण करने को कहा गया पंडित श्री गोविन्द व्यास ( व्यास पीठ के कथा वाचक ) जी के जरिये ! सो उनके आदेश की पालना करते हुए हमने वो मेवे की खीर का प्रसाद ग्रहण किया और वहाँ से पैदल आगे बढे और पहुंचे फिर से रतानी व्यासों के चौक में जहाँ मेरे लिए पहले से ही एक बड़ा चंग मित्र लक्ष्मण व्यास की मण्डली द्वारा मुझे बजाने को दिया गया ! मैंने बजाय और उस मण्डली ने होली धमाल गायी और मेरे चंग वादन और धमाल मण्डली ने मिलकर चौक में धमाल मचादि ! लोगों का हुजूम इकठा हुआ कुछ देर धमाल मय माहौल रचा और आगे बढे बारहगुवाड़ चौक की ओर जहां हडाउमेरी की रम्मत के लिए गणेश पूजन आरम्भ हो चूका था ! हमने फिर उसी चौक में महाराज की चाय की दूकान से चाय ली और पि फिर आगे बढे तो भरभोलिए बेचने वाले की आवाज कानो में पड़ी भरभोलिए लीजिये भुगतान बार कोड से भी कर सकते हो और ऑनलाइन आर्डर भी दे सकते हो ! भरभोलिए गाय के गोबर से बनते है लोक में इसे भरभोलिए कहते है बीकानेर में ! इसे होली की माला भी कहते है ! बहने होली के दिन भाई की नजर उतारने के लिए इस भरभोलिए की माला का उपयोग करती है ! भरभोलिए सांभर बड़े के आकर और स्वरुप के होते है गोल बिच में छेद सूखे हुए पांच भरभोलिए को एक रस्सी से बांधकर एक माला बनायीं जाती है , पहले ये काम घर की बालिकाएं या महिलायें खुद से ही करती रही है पर अब भरभोलियों को भी बाजार ने घर से बहार बाजार में खिंच लिया है और ऑनलाइन पेमेंट पर मिलने लगा है ! लोक संस्कृति में ये आधुनिक कड़ी जुड़ना सुखद अनुभूति है उन बालिकाओं के लिए या महिलाओं के लिए जिन्हे गाय के गोबर से घिन्न आती है ! जय हो डिजिटल इंडिया की !
बारहगुवाड़ से होते हुए वापिस दम्माणी चौक आये और हमारी बिले लेकर घर को लौटे देर रात्रि में होली यात्रा कर के !
छठे दिन की होली यात्रा होलिका दहन की रही सो मुझे अकेले ही जाना पड़ा क्यों की जोशी जाती के परिवार के लोग होलिका दहन नहीं देख सकते लोक संस्कृति की नियमावली के तहत सो साहित्य मित्र मनीष कुमार जोशी जी मेरे साथ चाहकर भी नहीं आ सके लोक संस्कृति का निर्वाहन करते हुए ! इस वर्ष होलिका दहन का मुहर्त देर रात्रि का रहा सो मैं रात्रि में घर से ११ के बाद ही निकला और सीधा गया साले की होली चौक में ! उस चौक में मैंने मेरी पहली होली देखि थी क्यों की मेरा बचपन उसी चौक में बिता था ! हर वर्ष होलिका दहन मैं उसी साले की होली के चौक में ही देखता हूँ ! करीब ११ :३० बजे मैं साले की होली चौक में पहुंचा मेरी बाइक से ! फिर वहाँ पीपल के गट्टे वाली चौकी पर जाकर बैठा ! कुछ देर में मुझे बहुत सारे परिचित चेहरे दिखने लगे और वे परिचित चेहरे मुझे भी पहचान ने लगे थे किसी ने सांकेतिक सम्बोधन किया दूर से ही तो कई बचपन के मित्र करीब भी आये जिसमे डॉ. अरुणकुमार पुरोहित , मास्टर अप्पू व्यास जिसे कभी गोदी में खिलता रहा था मैं बचपन में , पंडित सिद्धार्थ पुरोहित सागर वाला , इन सब से पुरानी यादों को ताजा करते हुए बाते हुए तो इसी बिच नयी पत्रकारिता के संवाहक मास्टर सुमित शर्मा और ९२. ७ एफ एम के आर जे रोहित शर्मा भी मिले अर्चना कलर लेब के प्रबंधक / मित्र मास्टर अमित अग्रवाल भी काफी समय बाद उस चौक में एकदम से मिले ! मैंने दोस्तों से कहा की मेरी बीकानेरी होली का संस्कार मुझे इसी चौक ने दिया है इस लिए मैं होली का दहन के दिन इसी चौक की होली को देखने आता हूँ ! चंग भी मुझे इसी चौक ने ही बजाना सिखाया है मेरी कला यात्रा में , इस चौक का सब से बड़ा चंग चाँद भा का चंग , उसे बाजाने का श्रेय भी मुझे ही मिलता रहा है इस चौक में ! मैंने जैसे ये बात कही उसी पल चाँद भा मेरे सामने खड़े थे मैंने उन्हें प्रणाम किया उनके पाँव छुवे तो उन्होंने सर् पर हाथ फेराया ठीक वैसे ही जैसे वे मेरे बचपन में मेरे सिर पर हाथ फहराते थे उसी लाड की अनुभूति मुझे हुई ! वे मेरे पास बैठे पीपल की चौकी पर फिर पिताजी का पूछा क्यों की आप पिताजी के घनिष्ठ मित्रों में से एक थे उस चौक में ! बातों के सिलसिले के मध्य व्यासों की गेवर / टोली पंचों और पंडितों के साथ राजस्थानी में फिजिक्स के पाठ का उच्चारण करते हुए भागते हुए हाथ में बेस बोल के डंडे , लकड़ियां आदि लिए हुए आये और कुछ देर होम की चौकी पर उनके स्वागत में खड़े जोशी जात के युवा और वरिष्ठ जनो ने उनसे राजस्थानी में फिजिक्स के पाठ पर शास्त्रार्थ किया ! फिर जोशी पीछे हटे और होलिका दहन किया गया ! होलीका की अग्नि की रोशनी में मुझे मेरी राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट जयपुर कॉलेज का जूनियर स्टूडेंट मास्टर दधीचि पटेल बीकानेरी शैली में लुंगी और बनियान में नजर आया ! मैंने जोर से आवाज दी पटेल उसने मुड़कर देखा और मेरे करीब आया , मैंने पूछ यहाँ कैसे ? पटेल ने कहा बी टी एफ में आया था अब बीकानेर की फि टी एफ देखकर जाऊँगा जयपुर वापिस !
उसे दरसल विडिओ बनानी थी अपने प्रोजेक्ट के लिए होली विशेष पर सो मैंने उसकी मदद करने को कहा की गेवर अब दम्माणी चौक में जायेगी ! तो वो जिज्ञासा से पूछने लगा की क्या वे राजस्थानी में फिजिक्स का शास्त्रार्थ करेंगे वहाँ भी ? मैंने कहा बिलकुल करेंगे तो पटेल बोला मुझे वहाँ ले चलो कितनी दूर है यहाँ से ! मैंने कहा कोई ५ मिनिट पैदल का रास्ता है ! हम दोनों बाते करते करते दम्माणी चौक आगये मैंने पटेल को दम्माणी चौक के पौराणिक ऐतिहासिक पाटे पर जिसे छतरी वाला पाटा कहते है उसपर स्थान दिलवा दिया वो पाटे पर खड़े होकर आराम से वीडियो बनाने लगा ! इस बिच हम ने चाय भी पि गेवर के इन्तजार में तो पाटे पर ही मुझे ज्योतिषाचार्य डॉ. पंडित नन्द किशोर पुरोहित जी भी मिले ! आप ने होलिका दहन और राजस्थानी फिजिक्स के शास्त्रार्थ के विषय पर अपने शास्त्र ज्ञान से मास्टर पटेल को बीकानेर की लोक सांस्कृतिक होली के ज्ञान से रूबरू करवाया !
कुछ देर में गेवर आयी फिर से राजस्थानी में फिजिक्स का शास्त्रार्थ हुआ और फिर बीकानेर की होली की अंतिम होलिका दहन इस वर्ष का दम्माणी चौक की होली के दहन के साथ सम्पन हुआ ! मास्टर पटेल अपने जयपुर के साथियों के साथ अपने गंतव्य को निकल गया और मैं होलिका के दर्शन करते हुए घर की और लौटा !
होलका का अंतिम दिन और होली का समाहार का दिन होता है छालोड़ी जिसे धुलंडी भी कहते है ! इस दिन रंगों से गुलाल से होली खेली जाती है बीकानेर में भी ! और हमारी छालोड़ी आरम्भ होती है परिवार और आस पड़ोस से ! मैं सूखे गुलाल से होली खेलता हूँ सुखी होली गीली होली मुझे रास नहीं आती ! सो घर से मैं और मेरे साथ साहित्य मित्र मनीष कुमार जोशी और हमारे दो भानजे मास्टर मानस और मास्टर माधव भी इस बार हमारे साथ हुए , हम पहले पहले गए बीकानेर की चाय पटी , जहां हम हर वर्ष जाते है और हमारी छालोड़ी की शुरुवात गरमागरम नमकीन नास्ते से करते है जिसमे समोसा , कचोरी, ब्रेड बड़ा , पकोड़ी, पालक पकोड़े, दही बड़े , कांजी बड़े भर पेट खाते है फिर मुख्य छालोड़ी के लिए शहर में आते है ! इस बार भी चाय पटी से भर पेट नाश्ता करके हम मोहता चौक आये कुछ सुस्ताये इतने में ही कुछ पुराने मित्रों को हम नजर आये ! वे रबड़ी खा रहे थे हमे देखा तो हमारे लिए भी दो प्याले रबड़ी के बनवाये ! हम तक पहुंचाए और हम ने तबियत से उन दोनों प्यालों की रबड़ी को मुँह के जरिये पेट में जमाये , बची हुई प्याले की रबड़ी को एक मासूम सी सूरत बनाने वाले काले कुत्ते को भी चटाये ! फिर वहाँ से दम्माणी चौक आये छत्री वाले पाटे पर खुद को आसीन किया और एक खीचिया होली विशेषांक ( जिसे पापड़ भी कहते है ) को खाया और उसके बाद फुल साइज बर्फ का गुलकंद वाला छता भी खाया ! दम्माणी चौक के बाद छालोड़ी के अंतिम पड़ाव तणी के आयोजन को देखने को नथूसर गेट पहुंचे ! वहाँ दो थंभों के मध्य एक मोटी रस्सी बाँधी जाती है और जोशी परिवार का युवा उस रस्सी को गुप्ति या तेज धार वाली ऐतिहासिक तलवार से काटता है ! रस्सी कट जाती है तो जोशी परिवार का वो युवा पास अन्यथा फ़ैल ! जब तक रस्सी को काटने का उपक्रम चलता है तब तक गेवरिये राजस्थानी में फिजिक्स का पाठ पठन जोर जोर से करते है साथ ही रस्सी काटने वाले शक्श पर भीगे हुए पुराने कपडे, मालाएं , चपल, पानी की बोतल , के साथ वाटर बेलून जो अबकी बार वाटर थैली में तब्दील हो गयी है ! जो की क्रिटिकल भी है और नुक्सान दायक भी !
कुल मिलाकर होली की अंतिम कड़ी तणी काटना होता है और उसके कटते ही होली का समाहार भी ! इस बार भी दो युवा के जरिये जोशी परिवार के ने तणी को काटा तणी के कटते ही सभी लोगो ने अपनी अपनी गुलाल रंगबिरंगी गुलाल को आकाश की और उछाला और पुरे माहौल को लोक सांस्कृतिक होली के रंग से भर दिया और फिर सब अपने अपने घर की और लौटे ! मैं भी घर आया और फिर नहाया ! इस तरह से मैंने बीकानेर की होली यात्रा २०२५ को पूर्ण किया कई चरणों में जिसे यहाँ आपके साथ साझा कर रहा हूँ कुछ छाया चित्रों के साथ मेरी होली यात्रा २०२५ को करीब से देखने और समझने के लिए !
हैप्पी होली के साथ होली के राम राम सा ! आप सभी को !
योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर , इंडिया
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So here I write about it , Journey of Bikaneri Holi 2025 ..
Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA
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