I
Enjoy to
Bikaner Theater Festival
Friends last week I were
busy in enjoy to theater art in my city Bikaner . Actually Anurag Kala Kendra
Bikaner and Ank Theater Society Mumbai was organized to second Bikaner theater
festival in Bikaner . so I were received official invitation from two organizing
committees of this theater festival 2017.
Sir Ashok Agarwal and
master Naval vyas ( theater artist ) was invited to me so I have designed four days about that theater festival . it
was started onj date 5 th march and it
was running continue till date 8 th march
2017 .
Bikaner theater festival
was national or international level festival . so there I saw many national
theater play at different auditorium of Bikaner . every day three plays and
some sessions about theater subject with experts of theater art .
As a viewer or as a art
master I were joined all kind of activity of that festival . I did not missed
any session or play so I could wrote to that very perfectly with full
information of theater art on my
facebook page . in that writing work I did exposed to right theater with that
right visuals . the visuals I were shoot to my camera .
Four days festival was
gave me much more about theater art , I were met to many big artist of theater
art like nadira babbar , Sanjna Kapoor , Preeta Mathur Thakur , Aman Gupta , sir Ankur ji or gurbag chaini ji .
In four days Bikaner theater festival was presented
near 17 plays , that plays was performed at Town hall , veterinary auditorium
or T.M. Auditorium Bikaner .
Here I want to share
that four days reporting type text matter in Hindi for your reading . I sure you will translate it by translator tool of
online.
Day one report with
visuals ..
मित्रों
समय अनुसार आज हंशा गेस्ट हाउस में सुबह १० बजे द्वितीय बीकानेर थिएटर
फेस्टिवल का आगाज रंग निर्देशक और रंगकर्मियों के साँझा सहयोग से पुरे जोश
और नयी उमंग के साथ हुआ ! पहले पहल शुभारम्भ थिएटर आर्टिस्ट श्रीमती नादिरा
बब्बर ,श्रीमति प्रीता माथुर ठाकुर और श्रीमति संजना कपूर , श्रीमान अंकुर जी
के साथ बीकानेर के रंग लेखक श्री लक्ष्मीनारायण रंगा साहित्यकार श्री
भवानी शंकर व्यास ,श्रीमान लालवानी जी वेनेरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति
ऐ.के गहलोत जी की उपस्थिति में हुआ! इस द्वितीय बीकानेर थिएटर फेस्टिवल को
समर्पित किया है थिएटर निर्देशक स्वर्गीय श्री दिनेश ठाकुर जी को !
उद्घाटन से पूर्व समय पर मैं उपस्थित हुआ हंशा गेस्ट हाउस जहा पर मेरा अनुराग कला केंद्र की टीम से मिलना हुआ साथ ही कला साहित्य अनुरागी श्री अशोक अग्रवाल जी से भी ! उस समय वहां वरिष्ठ रंग अभिनेत्री श्रीमती नादिरा बब्बर जी आयीं उनसे सीधे संवाद हुआ बैनर और भाषा को लेकर वे अचंभित थी मेरे तार्किक और सम्मान पूर्ण प्रतिउत्तर से ! उसी पल वहां संजना कपूर जी भी आयी और मुझसे बात करते हुए कहा की मुझे तुमसे एक बात पूछनी है ! मैंने भी कहा की आप पूछिये, तो वे बोले की तुम डिजिटल आर्ट में कैसे भी फोटो को ठीक कर देते हो ( अतीत में मैंने उनके एक पुराने फॅमिली फोटो जो की लगभग ख़राब सा हो गया था उस इमेज को मैंने डिजिटल एडिटिंग से पुनः उसके वास्तविक स्वरुप में ला दिया था !) सो उन्होंने पूछा की तुम्हे क्या चाहिए एक फोटो को सही करने में उनका पूछने का अर्थ फोटो की रेज्युलेशन से था क्यों की वे बोली की मैं एक और फोटो तुम्हे भेजूंगी क्या तुम उसे एडिट कर दोगे ? , मैंने कहा जी बिलकुल आप तो भेज दीजिये मुझे इमेज ! वे मेरे कलात्मक स्वभाव को परख रहे थे की फोटो के एवेज में मैं उनसे क्या मांग रखता हूँ जो मैंने रखी ही नहीं ! हमारे उस संवाद को सुधेश जी व्यास रंगकर्मी और अशोक अग्रवाल जी ने सुना ! और उस बात में ही हमारी मुलाकात भी हुई ! इस वर्ष की ये दुसरी मुलाकात रही संजना कपूर जी से पहले जे एल ऍफ़ जयपुर में और आज बीकानेर में !
शुभारम्भ सत्र के बाद एक चित्र प्रदर्शनी का लोकार्पण हुआ और उसके तुरंत बाद लोक कला शैली फड़ वाचन की प्रस्तुति हुई ! उसके उपरांत आज तीन नाट्य प्रस्तुतियां प्रस्तुत की गयी पहली टाऊनहाल में जहा पर अम्रता नाटक की प्रस्तुति हुई जो की भोपाल की नाट्य मण्डली की रही ! दूसरी नाट्य प्रस्तुति वेटेरनरी ऑडिटोरियम में रखी गयी दो पत्रों के उस नाट्य प्रस्तुति में नारी मनोविज्ञान और मानसिकता को विभ्भिन प्रयोगात्मक आयामो के साथ अभिनय प्रधान प्रस्तुति को रखा ! नाटक का शीर्षक था अंगिरा !
तीसरी नाट्य प्रस्तुति रखी गयी टी एम ऑडिटोरियम में जहाँ श्री मति नादिरा बब्बर ने अपने निजी जीवन पर आधारित नाट्य प्रस्तुति को बतौर एक अभिनेत्री प्रस्तुत किया ! एकल पात्र अभिनय वाले इस नाट्य प्रस्तुति में नादिरा जी ने अपने माता जी और पिता जी के जीवन संघर्ष और उनके संघर्ष के बिच पलते अपने जीवन को अनुभूति के साथ नाट्य प्रस्तुति में प्रस्तुत किया , मुझे सत्यंशिवंसुन्दरं के भारतीय कला दर्शन को पुनः अनुभूत करने का मौका उपलब्ध करवाया नादिरा जी ने ! उन्होंने प्रमाणित किया की किस प्रकार एक परिपक्व रंग कर्मी अपने निजी जीवन के संघर्ष को भी मंच पर एक प्रस्तुति के रूप में प्रस्तुत कर के लोगो की संवेदनाओ को सत्य के साथ स्पंदित कर सकता है ! बहुत नाट्य प्रस्तुतियां देखि अच्छी कुछ बहुत अच्छी पर आज जब नादिरा बब्बर जी की प्रस्तुति देख रहा था तो अनायास ही मेरे जहन में डब्लू डब्लू ई की फाइट वाला पहलवान अंडर टेकर और उसका लोकप्रिय एक्शन बाएं हाथ के अंगूठे को गर्दन के सामने से खीचना ( मुम्बईया जुबान में कहूँ तो खल्लास ) करने के अंदाज वाला प्रस्तुति करण लगा ! शाहजाद जहीर लखनवी जी की बेटी नादिर ने अपने जीवन के उन क्षणों को नाट्य रूप में बयाने दस्तान अंदाज में बखूबी प्रस्तुत कर दिया ! बिच में वे भावुक भी हुई रोई भी पर खुद के संयम को नहीं खोने दिया और उनका वो स्वयं पर नियंत्रण ही उन्हें एक सफल अनुशाषित और घम्भीर रंगकर्मी बनाता है !
वे अपने अभिनय के जरिये अत्तित के उन सभी क्षणों से बहार आती हुई सी प्रतीत होती रही मुझे जब वे अभिनय करने का अभिनय कर रही थी अपने निजी जीवन की गाथा या दास्तान को मंच पर प्रस्तुति देते हुए ! अलग प्रकार का मनोयोग और एक मानसिक चिकित्सकीय प्रयोग स्वयं का स्वयं के साथ अतीत को परे रखने और आत्मसात करने की सजीव क्रिया में !
एकल अभिनय की उस प्रस्तुति में मुझे भी लगा की कोई दूसरा किरदार करता भी क्या उस प्रस्तुति में और कितना खरा और न्याय संगत होता ? हो ही नहीं सकता था ! कहने को नाटक को निर्देशित किया है श्री मकर देश पांडेय ने और इसका शीर्षक दिया है मेरी माँ के हाथ ! नादिरा जी ने पुरे नाट्य में अपनी माता जी को ही जिया और अभिनीत किया है !
नादिरा जी के हर लफ्ज नाट्य संवाद और उनकी हर आंगिक क्रिया मुझे अभिनय लगता रहा आज पुरे दिन जब जब मैंने उन्हें देखा और समझा सूना भी !
बीकानेर फेस्टिवल की ये दूसरी कड़ी जो की रंग निर्देशक स्वर्गीय श्री दिनेश ठाकुर जी को समर्पित है उस समर्पित नाट्य फेस्टिवल में नादिरा बब्बर जी का आना और मेरी माँ के हाथ जैसी अति संवेदनशील प्रस्तुति मंच से देना वास्तव में नाट्यं श्रधांजलि है स्वर्गीय दिनेश ठाकुर जी की रंगआत्मा को !
कुल मिलाकर आज के पुरे दिन मुझे पुनः एक साथ नाट्य संगीत लोक कला चित्रकला आदि का रसास्वादन करने का अवसर और साथ में रंगकर्मी मित्र परिवार से भी मिलने का अवसर मिला जो की आगामी आठ तारिक तक निरंतर जारी रहेगा और मेरा इस तरह से आप से कलात्मक अनुभूतियों को साझा करने का क्रम भी जारी रहेगा !
यहाँ कुछ फोटो मैं आप से पहले ही साझा कर चूका हूँ सीधे हंशा गेस्ट हाउस से कुछ और फोटो का एक कोलाज के रूप में आप के अवलोकन हेतु मेरे कैमरे की नजर से !
उद्घाटन से पूर्व समय पर मैं उपस्थित हुआ हंशा गेस्ट हाउस जहा पर मेरा अनुराग कला केंद्र की टीम से मिलना हुआ साथ ही कला साहित्य अनुरागी श्री अशोक अग्रवाल जी से भी ! उस समय वहां वरिष्ठ रंग अभिनेत्री श्रीमती नादिरा बब्बर जी आयीं उनसे सीधे संवाद हुआ बैनर और भाषा को लेकर वे अचंभित थी मेरे तार्किक और सम्मान पूर्ण प्रतिउत्तर से ! उसी पल वहां संजना कपूर जी भी आयी और मुझसे बात करते हुए कहा की मुझे तुमसे एक बात पूछनी है ! मैंने भी कहा की आप पूछिये, तो वे बोले की तुम डिजिटल आर्ट में कैसे भी फोटो को ठीक कर देते हो ( अतीत में मैंने उनके एक पुराने फॅमिली फोटो जो की लगभग ख़राब सा हो गया था उस इमेज को मैंने डिजिटल एडिटिंग से पुनः उसके वास्तविक स्वरुप में ला दिया था !) सो उन्होंने पूछा की तुम्हे क्या चाहिए एक फोटो को सही करने में उनका पूछने का अर्थ फोटो की रेज्युलेशन से था क्यों की वे बोली की मैं एक और फोटो तुम्हे भेजूंगी क्या तुम उसे एडिट कर दोगे ? , मैंने कहा जी बिलकुल आप तो भेज दीजिये मुझे इमेज ! वे मेरे कलात्मक स्वभाव को परख रहे थे की फोटो के एवेज में मैं उनसे क्या मांग रखता हूँ जो मैंने रखी ही नहीं ! हमारे उस संवाद को सुधेश जी व्यास रंगकर्मी और अशोक अग्रवाल जी ने सुना ! और उस बात में ही हमारी मुलाकात भी हुई ! इस वर्ष की ये दुसरी मुलाकात रही संजना कपूर जी से पहले जे एल ऍफ़ जयपुर में और आज बीकानेर में !
शुभारम्भ सत्र के बाद एक चित्र प्रदर्शनी का लोकार्पण हुआ और उसके तुरंत बाद लोक कला शैली फड़ वाचन की प्रस्तुति हुई ! उसके उपरांत आज तीन नाट्य प्रस्तुतियां प्रस्तुत की गयी पहली टाऊनहाल में जहा पर अम्रता नाटक की प्रस्तुति हुई जो की भोपाल की नाट्य मण्डली की रही ! दूसरी नाट्य प्रस्तुति वेटेरनरी ऑडिटोरियम में रखी गयी दो पत्रों के उस नाट्य प्रस्तुति में नारी मनोविज्ञान और मानसिकता को विभ्भिन प्रयोगात्मक आयामो के साथ अभिनय प्रधान प्रस्तुति को रखा ! नाटक का शीर्षक था अंगिरा !
तीसरी नाट्य प्रस्तुति रखी गयी टी एम ऑडिटोरियम में जहाँ श्री मति नादिरा बब्बर ने अपने निजी जीवन पर आधारित नाट्य प्रस्तुति को बतौर एक अभिनेत्री प्रस्तुत किया ! एकल पात्र अभिनय वाले इस नाट्य प्रस्तुति में नादिरा जी ने अपने माता जी और पिता जी के जीवन संघर्ष और उनके संघर्ष के बिच पलते अपने जीवन को अनुभूति के साथ नाट्य प्रस्तुति में प्रस्तुत किया , मुझे सत्यंशिवंसुन्दरं के भारतीय कला दर्शन को पुनः अनुभूत करने का मौका उपलब्ध करवाया नादिरा जी ने ! उन्होंने प्रमाणित किया की किस प्रकार एक परिपक्व रंग कर्मी अपने निजी जीवन के संघर्ष को भी मंच पर एक प्रस्तुति के रूप में प्रस्तुत कर के लोगो की संवेदनाओ को सत्य के साथ स्पंदित कर सकता है ! बहुत नाट्य प्रस्तुतियां देखि अच्छी कुछ बहुत अच्छी पर आज जब नादिरा बब्बर जी की प्रस्तुति देख रहा था तो अनायास ही मेरे जहन में डब्लू डब्लू ई की फाइट वाला पहलवान अंडर टेकर और उसका लोकप्रिय एक्शन बाएं हाथ के अंगूठे को गर्दन के सामने से खीचना ( मुम्बईया जुबान में कहूँ तो खल्लास ) करने के अंदाज वाला प्रस्तुति करण लगा ! शाहजाद जहीर लखनवी जी की बेटी नादिर ने अपने जीवन के उन क्षणों को नाट्य रूप में बयाने दस्तान अंदाज में बखूबी प्रस्तुत कर दिया ! बिच में वे भावुक भी हुई रोई भी पर खुद के संयम को नहीं खोने दिया और उनका वो स्वयं पर नियंत्रण ही उन्हें एक सफल अनुशाषित और घम्भीर रंगकर्मी बनाता है !
वे अपने अभिनय के जरिये अत्तित के उन सभी क्षणों से बहार आती हुई सी प्रतीत होती रही मुझे जब वे अभिनय करने का अभिनय कर रही थी अपने निजी जीवन की गाथा या दास्तान को मंच पर प्रस्तुति देते हुए ! अलग प्रकार का मनोयोग और एक मानसिक चिकित्सकीय प्रयोग स्वयं का स्वयं के साथ अतीत को परे रखने और आत्मसात करने की सजीव क्रिया में !
एकल अभिनय की उस प्रस्तुति में मुझे भी लगा की कोई दूसरा किरदार करता भी क्या उस प्रस्तुति में और कितना खरा और न्याय संगत होता ? हो ही नहीं सकता था ! कहने को नाटक को निर्देशित किया है श्री मकर देश पांडेय ने और इसका शीर्षक दिया है मेरी माँ के हाथ ! नादिरा जी ने पुरे नाट्य में अपनी माता जी को ही जिया और अभिनीत किया है !
नादिरा जी के हर लफ्ज नाट्य संवाद और उनकी हर आंगिक क्रिया मुझे अभिनय लगता रहा आज पुरे दिन जब जब मैंने उन्हें देखा और समझा सूना भी !
बीकानेर फेस्टिवल की ये दूसरी कड़ी जो की रंग निर्देशक स्वर्गीय श्री दिनेश ठाकुर जी को समर्पित है उस समर्पित नाट्य फेस्टिवल में नादिरा बब्बर जी का आना और मेरी माँ के हाथ जैसी अति संवेदनशील प्रस्तुति मंच से देना वास्तव में नाट्यं श्रधांजलि है स्वर्गीय दिनेश ठाकुर जी की रंगआत्मा को !
कुल मिलाकर आज के पुरे दिन मुझे पुनः एक साथ नाट्य संगीत लोक कला चित्रकला आदि का रसास्वादन करने का अवसर और साथ में रंगकर्मी मित्र परिवार से भी मिलने का अवसर मिला जो की आगामी आठ तारिक तक निरंतर जारी रहेगा और मेरा इस तरह से आप से कलात्मक अनुभूतियों को साझा करने का क्रम भी जारी रहेगा !
यहाँ कुछ फोटो मैं आप से पहले ही साझा कर चूका हूँ सीधे हंशा गेस्ट हाउस से कुछ और फोटो का एक कोलाज के रूप में आप के अवलोकन हेतु मेरे कैमरे की नजर से !
Day Second report with
visuals
मित्रों
आज द्वितीय बीकानेर थिएटर फेस्टिवल के दूसरे दिन भी पूरा समय सुबह ११ बजे
से रात्रि ११ बजे तक रंगकर्म की पृष्ठभूमि में बिता मेरे देश के जाने
माने रंगकर्मियों के साथ उनकी नाट्य प्रस्तुतियों के साथ !
आज सुबह साहित्यकार /रंगकर्मी श्री आनंद वि आचार्य जी की नाट्य कृति काया में काया का रंगकर्मी अशोक जोशी के निर्देशन में कोलाज ( नाटक के कुछ अंश ) रूप में हंशा गेस्ट हाउस में प्रस्तुत किया गया जिसमे महात्मा ग़ांधी और उनके समकक्ष कुछ खास सख्शियतों की आत्मओं का संवाद अतीत और वर्तमान समय के परिद्रश्य के साथ ! वो भी लेखक की उपस्थिति में !
काया में काया नाट्य प्रस्तुति के तुरंत बाद एक बॉक्स थिएटर की अति आधुनिक विधा को देखने का अवसर मिला जिसे प्रस्तुत किया था गोवा से आये रंगनिर्देशक और रंगकर्मी श्री विजय कुमार नाईक जी ने , विजय कुमार जी ने दो पात्री उस बॉक्स थिएटर को बहुत ही सरल रूप में प्रस्तुत किया ! पर उनके प्रस्तुति करण में जो प्रयोग धर्मिता और नए आयामो के साथ सरल पर तार्किक संवादों से एक बॉक्स थिएटर को दर्शकों के लिए बड़ा ही भव्य रंग प्रस्तुति के रूप में तब्दील कर दिया ! आधुनिक रंगमंच का वो जिवंत रचनात्मक और सरल प्रमाण मैंने देखा और वो मुझे बहुत प्रभावी प्रतीत हुआ ! क्यों की चित्रकला विषय में मास्टर होने के नाते मैं भी आधुनिक चित्रकला में इस प्रकार के सरल पर वैचारिक प्रयोग को निरंतर मेरी कला यात्रा में कर रहा हूँ ! रंगनिर्देशक श्री विजय कुमार नाइक जी भी कला में उसी जगह है जहाँ कला सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त होकर भी दर्शक को बाधने की नई विधि को आत्मसात करने के सरल और सहज संकेत देती है !
नाटक नीली परछाई से खेले गए उस बॉक्स थिएटर में स्वयं विजय कुमार नाइक ने सह अभिनेत्री के साथ जीवन की तृषणा , लोभ , रिश्तों में छल कपट और आत्मीय प्रेम को भारतीय हिंदी फिल्म के गीतों से सांकेतिक रूप में भी समझाने या प्रस्तुत करने का प्रयास वास्तव में समकालीन प्रयोगधर्मी नाट्य रहा ! पुरे नाटक में सिमित साधन और सिमित स्पेस में पूरा नाटक खेला गया सिर्फ भाव और मुद्राओं के जरिये पात्र के रूप रंग को पहचान को भी बदला गया जिसमे समय की बचत, प्रोप की बचत साथ में रंगकर्म की ऊर्जा की बचत , कम में अधिक सम्प्रेषित कर देना ही सफल नाट्य की पहचान है जिसे विजय कुमार नाइक जी ने पूर्ण करके दिखलाया इस द्वितीय बीकानेर थिएटर फेस्टिवल में नाटक नीली परछाईया से !
नीली परछाईया नाट्य की प्रस्तुति के ठीक बाद एक खुला संवाद समकालीन रंगमंच पर रंग अभिनेत्री श्री मति नादिरा बब्बर जी और बीकानेर के रंग कर्मियों के मध्य रखा गया ! चूँकि रंगकर्म से जुड़े लोग ही उस परिचर्चा में मौजूद थे सो ज्यादा सवाल जवाब नहीं हुए और जो हुए वो सामान्य सवाल जवाब थे जिसे हर रंग कर्मी जनता ही नहीं बल्कि स्वयं अनुभूत करके समझता भी है ! उसी परिचर्चा में साहित्यकार श्री लक्ष्मी नारायण रंगा जी ने अपनी एक लघु पुस्तक का लोकार्पण भी किया जो रंगमंच पर आधारित पुस्तक है ! उस रंग साहित्य पुस्तक की एक कृति मुझे भी प्राप्त हुई श्री लक्ष्मी नारायण रंगा जी के हस्ताक्षर के साथ ! उसी पुस्तक पर फिर मैंने श्रीमती नादिरा बब्बर जी के भी हस्ताक्षर लिए , स्मृति संग्रहण के लिए !
आज ३ बजे टाऊन हॉल में नाटक आखरी इनाम ( सिलीगुड़ी ) के नाट्य का मंचन हुआ दलित समाज की व्यथा को नाटक में प्रस्तुत किया गया था जो बहुत ही यथार्थ रूप में था रियलस्टिक प्ले के रूप में !
५ बजे वेटेरनरी सभागार में नाट्य प्रस्तुति हुई **मे बी दिस सम्मर** की जो इन रिलेशन कल्चर के साइड इफेक्ट्स और उसे रोकने की मंशा से लिखे गए स्क्रिप्ट को मंच से खेला गया दो पत्रों के साथ ! एक संतुलित सामाजिक सरोकार से ओतप्रोत प्रस्तुति रही निर्देशक त्रिपुरारी शर्मा जी की ! फोटो नहीं लिया क्यों की मंच से आदेश था की कोई फोटो नहीं लेगा नाटक का सो अनुसाशन को भंग करने का मन ही नहीं हुआ पर नाट्य प्रस्तुति का पूर्ण सम्प्रेषण प्राप्त हुआ !
आज की अंतिम प्रस्तुति रही बीवियों का मदरसा जिसे प्रस्तुत किया गया टी एम ऑडिटोरियम में निर्देशक अतुल माथुर ने उस हास्य रंग प्रस्तुति को काफी रंगीन मंच सझा के साथ प्रस्तुत किया उस नाट्य प्रस्तुति में उम्र के पड़ाव और उसके तजुर्बे के कड़वे पर हास्य के साथ प्रस्तुत किये गए ! दो घंटे की प्रस्तुति में निर्देशक ने हास्य संवाद और अभिनय से दर्शकों को बाधे रखा और वही उस नाट्य प्रस्तुति की उपलब्धि कह सकता हूँ !
इन दो रोज में ६ नाट्य और दो कोलाज प्रस्तुति बीकानेर के तीन अगल अलग थिएटर हाल में देखे है जो आगे के दो रोज और जारी रहेंगे ये नाट्य यात्रा और इस यात्रा में हमारा यात्रा का माध्यम रही है बस आज उस बस में गोआ से आये रंग निर्देशक श्री विजय कुमार नाइक जी की टीम के एक पुरुष अभिनेता ने अपनी मधुर वाणी में गोवा के लोक गायन की प्रस्तुति दी ! उस पल मुझे फिल्म बॉमबे टू गोवा की याद ताजा करवागाई !
यहाँ एक फोटो कोलाज आप के लिए आज के दिन भर के नाट्य कला से जुड़े महत्वपूर्ण पलों के जिसे मैंने संजोया अपने कैमरा से आप के अवलोकन हेतु !
आज सुबह साहित्यकार /रंगकर्मी श्री आनंद वि आचार्य जी की नाट्य कृति काया में काया का रंगकर्मी अशोक जोशी के निर्देशन में कोलाज ( नाटक के कुछ अंश ) रूप में हंशा गेस्ट हाउस में प्रस्तुत किया गया जिसमे महात्मा ग़ांधी और उनके समकक्ष कुछ खास सख्शियतों की आत्मओं का संवाद अतीत और वर्तमान समय के परिद्रश्य के साथ ! वो भी लेखक की उपस्थिति में !
काया में काया नाट्य प्रस्तुति के तुरंत बाद एक बॉक्स थिएटर की अति आधुनिक विधा को देखने का अवसर मिला जिसे प्रस्तुत किया था गोवा से आये रंगनिर्देशक और रंगकर्मी श्री विजय कुमार नाईक जी ने , विजय कुमार जी ने दो पात्री उस बॉक्स थिएटर को बहुत ही सरल रूप में प्रस्तुत किया ! पर उनके प्रस्तुति करण में जो प्रयोग धर्मिता और नए आयामो के साथ सरल पर तार्किक संवादों से एक बॉक्स थिएटर को दर्शकों के लिए बड़ा ही भव्य रंग प्रस्तुति के रूप में तब्दील कर दिया ! आधुनिक रंगमंच का वो जिवंत रचनात्मक और सरल प्रमाण मैंने देखा और वो मुझे बहुत प्रभावी प्रतीत हुआ ! क्यों की चित्रकला विषय में मास्टर होने के नाते मैं भी आधुनिक चित्रकला में इस प्रकार के सरल पर वैचारिक प्रयोग को निरंतर मेरी कला यात्रा में कर रहा हूँ ! रंगनिर्देशक श्री विजय कुमार नाइक जी भी कला में उसी जगह है जहाँ कला सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त होकर भी दर्शक को बाधने की नई विधि को आत्मसात करने के सरल और सहज संकेत देती है !
नाटक नीली परछाई से खेले गए उस बॉक्स थिएटर में स्वयं विजय कुमार नाइक ने सह अभिनेत्री के साथ जीवन की तृषणा , लोभ , रिश्तों में छल कपट और आत्मीय प्रेम को भारतीय हिंदी फिल्म के गीतों से सांकेतिक रूप में भी समझाने या प्रस्तुत करने का प्रयास वास्तव में समकालीन प्रयोगधर्मी नाट्य रहा ! पुरे नाटक में सिमित साधन और सिमित स्पेस में पूरा नाटक खेला गया सिर्फ भाव और मुद्राओं के जरिये पात्र के रूप रंग को पहचान को भी बदला गया जिसमे समय की बचत, प्रोप की बचत साथ में रंगकर्म की ऊर्जा की बचत , कम में अधिक सम्प्रेषित कर देना ही सफल नाट्य की पहचान है जिसे विजय कुमार नाइक जी ने पूर्ण करके दिखलाया इस द्वितीय बीकानेर थिएटर फेस्टिवल में नाटक नीली परछाईया से !
नीली परछाईया नाट्य की प्रस्तुति के ठीक बाद एक खुला संवाद समकालीन रंगमंच पर रंग अभिनेत्री श्री मति नादिरा बब्बर जी और बीकानेर के रंग कर्मियों के मध्य रखा गया ! चूँकि रंगकर्म से जुड़े लोग ही उस परिचर्चा में मौजूद थे सो ज्यादा सवाल जवाब नहीं हुए और जो हुए वो सामान्य सवाल जवाब थे जिसे हर रंग कर्मी जनता ही नहीं बल्कि स्वयं अनुभूत करके समझता भी है ! उसी परिचर्चा में साहित्यकार श्री लक्ष्मी नारायण रंगा जी ने अपनी एक लघु पुस्तक का लोकार्पण भी किया जो रंगमंच पर आधारित पुस्तक है ! उस रंग साहित्य पुस्तक की एक कृति मुझे भी प्राप्त हुई श्री लक्ष्मी नारायण रंगा जी के हस्ताक्षर के साथ ! उसी पुस्तक पर फिर मैंने श्रीमती नादिरा बब्बर जी के भी हस्ताक्षर लिए , स्मृति संग्रहण के लिए !
आज ३ बजे टाऊन हॉल में नाटक आखरी इनाम ( सिलीगुड़ी ) के नाट्य का मंचन हुआ दलित समाज की व्यथा को नाटक में प्रस्तुत किया गया था जो बहुत ही यथार्थ रूप में था रियलस्टिक प्ले के रूप में !
५ बजे वेटेरनरी सभागार में नाट्य प्रस्तुति हुई **मे बी दिस सम्मर** की जो इन रिलेशन कल्चर के साइड इफेक्ट्स और उसे रोकने की मंशा से लिखे गए स्क्रिप्ट को मंच से खेला गया दो पत्रों के साथ ! एक संतुलित सामाजिक सरोकार से ओतप्रोत प्रस्तुति रही निर्देशक त्रिपुरारी शर्मा जी की ! फोटो नहीं लिया क्यों की मंच से आदेश था की कोई फोटो नहीं लेगा नाटक का सो अनुसाशन को भंग करने का मन ही नहीं हुआ पर नाट्य प्रस्तुति का पूर्ण सम्प्रेषण प्राप्त हुआ !
आज की अंतिम प्रस्तुति रही बीवियों का मदरसा जिसे प्रस्तुत किया गया टी एम ऑडिटोरियम में निर्देशक अतुल माथुर ने उस हास्य रंग प्रस्तुति को काफी रंगीन मंच सझा के साथ प्रस्तुत किया उस नाट्य प्रस्तुति में उम्र के पड़ाव और उसके तजुर्बे के कड़वे पर हास्य के साथ प्रस्तुत किये गए ! दो घंटे की प्रस्तुति में निर्देशक ने हास्य संवाद और अभिनय से दर्शकों को बाधे रखा और वही उस नाट्य प्रस्तुति की उपलब्धि कह सकता हूँ !
इन दो रोज में ६ नाट्य और दो कोलाज प्रस्तुति बीकानेर के तीन अगल अलग थिएटर हाल में देखे है जो आगे के दो रोज और जारी रहेंगे ये नाट्य यात्रा और इस यात्रा में हमारा यात्रा का माध्यम रही है बस आज उस बस में गोआ से आये रंग निर्देशक श्री विजय कुमार नाइक जी की टीम के एक पुरुष अभिनेता ने अपनी मधुर वाणी में गोवा के लोक गायन की प्रस्तुति दी ! उस पल मुझे फिल्म बॉमबे टू गोवा की याद ताजा करवागाई !
यहाँ एक फोटो कोलाज आप के लिए आज के दिन भर के नाट्य कला से जुड़े महत्वपूर्ण पलों के जिसे मैंने संजोया अपने कैमरा से आप के अवलोकन हेतु !
Day third report with
visuals
मित्रों
आज बीकानेर थिएटर फेस्टिवल का तीसरा दिन था आज भी पूरा दिन नाट्य रंग में
बिता ! सुबह १० बजे हंशा गेस्ट हाउस में डॉ. दयानंद शर्मा द्वारा लिखित
नाट्य का पठन लेखक प्रमोद शर्मा और डॉ. दयानंद शर्मा जी ने किया ! फिर
सुरेश आचार्य के द्वारा निर्देशित नाटक ताजमहल का टेंडर का एक कोलाज
प्रस्तुति को प्रस्तुत की गया ! उसके तुरंत बाद रंगकर्मी , चित्रकार श्री
गोपाल आचार्य जी भीलवाड़ा का रंग सम्मान अनुराग कला केंद्र और बीकानेर थिएटर
फेस्टिवल की कमिटी ने रंग निर्देशक श्रीमती त्रिपुरारी
शर्मा और रंग साहित्य के साहित्यकार रंगकर्मी श्री मधु आचार्य जी, श्रीमान
हंशराज डागा जी और श्री कमल अनुरागी जी महा सचिव अनुराग कला केंद्र ,ने
किया !
रंग सम्मान के तुरंत बाद टाउन हॉल में मंचित नाटक हेड्स या टेल को देखा ! समय अवधि से ज्यादा या अतिरिक्त समय निर्देशक ने ले लिया ! कारण क्या रहा होगा निर्देशक ही जाने पर विषय भी समकालीन और फ़िल्मी विषय सा प्रतीत हुआ मुझे प्रस्तुति में ! मंच सझा भी इतनी भारी करदी गयी की अभिनेता जो की दो ही थे उन्हें भी प्रयाप्त स्थान नहीं मिला इधर उधर घूमने फिरने को मंच पर ! खेर उस नाट्य प्रस्तुति के बाद वेटेरनरी सभागार में बिदेशिया का मंचन हुआ लोक संस्कृति और समकालीन विषय जो इतना भी समकालीन नहीं था पर पटना या बिहार के जीवन शैली और लोक नाट्य परम्परा से तो रूबरू कारवा ही गया ! सम्प्रेषण में कमी रही कारण जो था वो थी भाषा ! पर फिर भी प्रस्तुति दम दार रही ! बिदेशिया नाटक देखने के बाद टी एम ऑडिटोरियम में आज की प्रस्तुति रही अंजी जिस्मे विषय और अभिनय में अभिनेताओं ने पूरी ऊर्जा और हास्य से नाटक को रोचक बनाया पर नारी केंद्रित नाटक में उसी नारी को आत्म हत्या करवाकर नारी शक्ति या नारी विषय को पुनः कमजोर और लाचार ही दिखाया ! जो आलोचना का विषय है !
कुल मिलाकर आज भी पुरे १४ घंटे नाट्य कला और उसके सम्पूर्ण माहौल में गुजरे कई छोटे छोटे संवाद या चर्चा के साथ जो मुझे करने को मिली बीकानेर थिएटर फेस्टिवल में उपस्थिति युवा और वरिष्ठ रंगकर्मियों के साथ !
यहाँ आज के दिन की प्रस्तुतियों और कुछ पल नाट्य चर्चा के फोटो आप के अवलोकन हेतु एक कोलाज रूप में यहाँ प्रेषित कर रहा हूँ देखे !
रंग सम्मान के तुरंत बाद टाउन हॉल में मंचित नाटक हेड्स या टेल को देखा ! समय अवधि से ज्यादा या अतिरिक्त समय निर्देशक ने ले लिया ! कारण क्या रहा होगा निर्देशक ही जाने पर विषय भी समकालीन और फ़िल्मी विषय सा प्रतीत हुआ मुझे प्रस्तुति में ! मंच सझा भी इतनी भारी करदी गयी की अभिनेता जो की दो ही थे उन्हें भी प्रयाप्त स्थान नहीं मिला इधर उधर घूमने फिरने को मंच पर ! खेर उस नाट्य प्रस्तुति के बाद वेटेरनरी सभागार में बिदेशिया का मंचन हुआ लोक संस्कृति और समकालीन विषय जो इतना भी समकालीन नहीं था पर पटना या बिहार के जीवन शैली और लोक नाट्य परम्परा से तो रूबरू कारवा ही गया ! सम्प्रेषण में कमी रही कारण जो था वो थी भाषा ! पर फिर भी प्रस्तुति दम दार रही ! बिदेशिया नाटक देखने के बाद टी एम ऑडिटोरियम में आज की प्रस्तुति रही अंजी जिस्मे विषय और अभिनय में अभिनेताओं ने पूरी ऊर्जा और हास्य से नाटक को रोचक बनाया पर नारी केंद्रित नाटक में उसी नारी को आत्म हत्या करवाकर नारी शक्ति या नारी विषय को पुनः कमजोर और लाचार ही दिखाया ! जो आलोचना का विषय है !
कुल मिलाकर आज भी पुरे १४ घंटे नाट्य कला और उसके सम्पूर्ण माहौल में गुजरे कई छोटे छोटे संवाद या चर्चा के साथ जो मुझे करने को मिली बीकानेर थिएटर फेस्टिवल में उपस्थिति युवा और वरिष्ठ रंगकर्मियों के साथ !
यहाँ आज के दिन की प्रस्तुतियों और कुछ पल नाट्य चर्चा के फोटो आप के अवलोकन हेतु एक कोलाज रूप में यहाँ प्रेषित कर रहा हूँ देखे !
Day Four Report with
Visuals
मित्रों
बीकानेर थिएटर फेस्टिवल का समापन कई नाट्य प्रस्तुतियों के साथ हुआ
असंख्य रंग में रंग गया बीकानेर के रंग मंच के दर्शक को !
सुबह १० बजे दिनांक ८ मार्च २०१७ को हंशा गेस्ट हाउस में ऊर्जा थिएटर सोसाइटी ने एक कोलाज नाट्य प्रस्तुति रखी नाटक का नाम था सवा सेर गेहूं ! बीकानेर के युवा रंग निर्देशक सुरेश पुनिया ने नाट्य निर्देशन करके बीकानेर के नाट्य परम्परा को संजोये रखने का विस्वास दिखाया ! उस नाट्य प्रस्तुति के तुरंत बाद रंग चर्चा समसामयिक नाट्य विधा और उसकी समस्या पर ! चर्चा में मुख्य प्रवक्ता थे श्री अंकुर जी और श्री चैनी जी ! रंग चर्चा के तुरंत बाद खबसूरत बहु का मंचन विपिन पुरोहित के निर्देशन में हुआ ! विपिन पुरोहित ने एक्टर्स के अंग प्रत्यंग से कई रचनात्मक द्रश्य उत्पन किये जिसमे बारात के बाजे बजाने वाले , तो एक द्रश्य में हलवाई को यहाँ अभिनेता ने स्वयं के अंगों से बिना किसी प्रोपर्टी के वे द्रश्य दर्शक की कल्पना में लाये जो मंच पर थे नहीं पर दर्शक ने उसे अपनी कल्पना में अनुभूत किया ! यही प्रयोग विपिन पेड़ के लिए भी, कर सकते थे असली पेड़ की डाल के प्रयोग के बगैर - खेर !
निर्देशक विपिन पुरोहित के म्यूजिकल प्ले के तुरंत बाद टाउन हाल में नाटक और मैं नाट्य की प्रस्तुति निर्देशक सुधेश व्यास द्वारा प्रस्तुत की गयी एकल अभिनय के उस नाट्य में अभिनय किया अभिनेत्री मन्दाकिनी जोशी ने ! नाटक का विषय अभिनेता और उसके रंग मंच के जीवन के बिच की कशमकश को प्रस्तुत कर रहा था पर निर्देशक की नाटक पर पूर्ण पकड़ में कही कमी लगी नाटक कई स्थानों पर छूटता सा प्रतीत हुआ जो नहीं होना चाहिए था पर नाटक में हो रहा था ! सांकेतिक द्रश्य भी रोचक और प्रभाव शैली थे जिन्हें मैंने अपने कैमरे से कैद भी किया !
निर्देशक सुधेश व्यास के नाट्य प्रस्तुति के बाद टी एम ऑडिटोरियम में पहला नाटक ट्रेवलर देखा जो मूक अभिनय तीन किरदारों के साथ प्रस्तुत हुआ ! मूक अभिनय से भी मिश्र के अभिनेताओं ने दर्शकों को खूब हास्य भाव में डुबाया ! मिश्र की नाट्य प्रस्तुति के बाद एकल मूक अभिनय की प्रस्तुति नाटक मछली की कहानी के रूप में प्रस्तुत हुआ जिसमे अभिनेता ने दर्शकों को एकदम मौन करके बांध दिया ! एकदम सन्नाटे में प्ले का होना या मूक अभिनय होना अपने आप में उस नाट्य प्रस्तुति की उपलब्धि ही थी ! समारोह की अंतिम प्रस्तुति रही हास्य नाटक अटकल पिचु सर्कस की तर्ज पर सेमि मौनो एक्टिंग के उस नाट्य ने ( बाल नाट्य ) बच्चों को खूब गुद गुदाया और यही उस नाट्य प्रस्तुति का उद्देश्य था जिसमे नाटक और रंग निर्देशक सफल रहे !
समारोह के अंत में सभी आये हुए अतिथि रंगमंच के निर्देशक और अभिनेताओं को सम्मानित किया गया ! सम्मान प्रेषित करने को मंच पर थे श्री कमल अनुरागी सचिव अनुराग कला केंद्र , अध्यक्ष आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान नैतिकता का शक्ति पीठ श्री लूणकरण छाजेड़ जी तो बीकानेर के पुलिस अधीक्षक एस पि डॉ अमनदीप कपूर जी और रंग निर्देशक सर चेनी जी और श्री अशोक अग्रवाल जी !
यहाँ एक फोटो कोलाज समापन समारोह के पालो के साथ बीकानेर थिएटर फेस्टिवल से आप के अवलोकन हेतु !
( नोट - कल नेटवर्क स्पीड स्लो थी सो पोस्ट अपडेट करने में असक्षम था सो आज प्रेषित हूँ आप के लिए )
सुबह १० बजे दिनांक ८ मार्च २०१७ को हंशा गेस्ट हाउस में ऊर्जा थिएटर सोसाइटी ने एक कोलाज नाट्य प्रस्तुति रखी नाटक का नाम था सवा सेर गेहूं ! बीकानेर के युवा रंग निर्देशक सुरेश पुनिया ने नाट्य निर्देशन करके बीकानेर के नाट्य परम्परा को संजोये रखने का विस्वास दिखाया ! उस नाट्य प्रस्तुति के तुरंत बाद रंग चर्चा समसामयिक नाट्य विधा और उसकी समस्या पर ! चर्चा में मुख्य प्रवक्ता थे श्री अंकुर जी और श्री चैनी जी ! रंग चर्चा के तुरंत बाद खबसूरत बहु का मंचन विपिन पुरोहित के निर्देशन में हुआ ! विपिन पुरोहित ने एक्टर्स के अंग प्रत्यंग से कई रचनात्मक द्रश्य उत्पन किये जिसमे बारात के बाजे बजाने वाले , तो एक द्रश्य में हलवाई को यहाँ अभिनेता ने स्वयं के अंगों से बिना किसी प्रोपर्टी के वे द्रश्य दर्शक की कल्पना में लाये जो मंच पर थे नहीं पर दर्शक ने उसे अपनी कल्पना में अनुभूत किया ! यही प्रयोग विपिन पेड़ के लिए भी, कर सकते थे असली पेड़ की डाल के प्रयोग के बगैर - खेर !
निर्देशक विपिन पुरोहित के म्यूजिकल प्ले के तुरंत बाद टाउन हाल में नाटक और मैं नाट्य की प्रस्तुति निर्देशक सुधेश व्यास द्वारा प्रस्तुत की गयी एकल अभिनय के उस नाट्य में अभिनय किया अभिनेत्री मन्दाकिनी जोशी ने ! नाटक का विषय अभिनेता और उसके रंग मंच के जीवन के बिच की कशमकश को प्रस्तुत कर रहा था पर निर्देशक की नाटक पर पूर्ण पकड़ में कही कमी लगी नाटक कई स्थानों पर छूटता सा प्रतीत हुआ जो नहीं होना चाहिए था पर नाटक में हो रहा था ! सांकेतिक द्रश्य भी रोचक और प्रभाव शैली थे जिन्हें मैंने अपने कैमरे से कैद भी किया !
निर्देशक सुधेश व्यास के नाट्य प्रस्तुति के बाद टी एम ऑडिटोरियम में पहला नाटक ट्रेवलर देखा जो मूक अभिनय तीन किरदारों के साथ प्रस्तुत हुआ ! मूक अभिनय से भी मिश्र के अभिनेताओं ने दर्शकों को खूब हास्य भाव में डुबाया ! मिश्र की नाट्य प्रस्तुति के बाद एकल मूक अभिनय की प्रस्तुति नाटक मछली की कहानी के रूप में प्रस्तुत हुआ जिसमे अभिनेता ने दर्शकों को एकदम मौन करके बांध दिया ! एकदम सन्नाटे में प्ले का होना या मूक अभिनय होना अपने आप में उस नाट्य प्रस्तुति की उपलब्धि ही थी ! समारोह की अंतिम प्रस्तुति रही हास्य नाटक अटकल पिचु सर्कस की तर्ज पर सेमि मौनो एक्टिंग के उस नाट्य ने ( बाल नाट्य ) बच्चों को खूब गुद गुदाया और यही उस नाट्य प्रस्तुति का उद्देश्य था जिसमे नाटक और रंग निर्देशक सफल रहे !
समारोह के अंत में सभी आये हुए अतिथि रंगमंच के निर्देशक और अभिनेताओं को सम्मानित किया गया ! सम्मान प्रेषित करने को मंच पर थे श्री कमल अनुरागी सचिव अनुराग कला केंद्र , अध्यक्ष आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान नैतिकता का शक्ति पीठ श्री लूणकरण छाजेड़ जी तो बीकानेर के पुलिस अधीक्षक एस पि डॉ अमनदीप कपूर जी और रंग निर्देशक सर चेनी जी और श्री अशोक अग्रवाल जी !
यहाँ एक फोटो कोलाज समापन समारोह के पालो के साथ बीकानेर थिएटर फेस्टिवल से आप के अवलोकन हेतु !
( नोट - कल नेटवर्क स्पीड स्लो थी सो पोस्ट अपडेट करने में असक्षम था सो आज प्रेषित हूँ आप के लिए )
Over all I were lived
with Bikaner theater festival as a helping verb . because I am noticing to them
and supporting to them from my presence or from my criticism or by art talk in
mid of time gap .
By that festival I saw
many kind of play or styles or I did read to minds of theater directors or play
writers in that four days of Bikaner theater festival .
So here I said , I enjoy to Bikaner theater
festival …
Myself With Theater Artist Master Gagan Mishra and Wariter Sunil Gajani at Bikaner Theater festival, Exhibition hall |
Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA
5 comments:
योगेन्द्र भाई, बहुत-बहुत बधाई। होली की शुभकामनाओं के साथ यही दुआ है कि आप इसी प्रकार कला में आगे बढ़ते रहें।
वेद प्रकाश भारद्वाज
manifestazione magnifica. Io mi complimento con la città di Bikaner e tutti i suoi abitanti. Io ho apprezzato tutti gli artisti coinvolti in questa manifestazione. Il mio cuore è a Bikaner.
Bikaner theater festivsl.ko
daakshat kar.diya
badhai
Joerdar
Hello Yogendraji please make correction in the names in your writeup about bikaner theatre festival .....its PREETA MATHUR THAKUR not Preetam Mathur and my name is AMAN GUPTA not Aman Mathur.....please correct these names....thanks
Post a Comment