COLLECTION
OF FREE MOOD POETRY OF MYSELF IN
100 POEM’S
|
Me ......... |
Friends this is a very
different post by me for you . here you will not see any art and drawing form but
you will see my inner art sound or that’s visuals by poetry language .
Year 2011 to till
2014 I have expressed my inner
sound in poetry after art work , today I
have one hundred poetry collection for
your reading or observation on my
free mood of expression in words or in literature form .
I have not any boundary for my free mood poetry . it is a talk to me , to time , to life, or to invisible space of our universe , some time I were
went in critical mood , some time I were wrote to life or that’s relations , I have
try to search to myself by way of poetry writing with my inner sound , it is
not a one time or a one year poetry it
was came out by me on particular time or
condition of life, time to time . I have
used many languages of INDIA in this poetry writing work , like HINDI, RAJASTHANI, URDU, BRAJ BOLI ,or
ENGLISH ..
I think it is enough for your information
about my free mood poetry and I think
you will feel it , after
read to my poetry on this post , so I have
shared that all one hundred poetries collection
in a one blog post at here for
your reading .
१!! Hey life you hard,
i am soft,my heart soft,
hey time you hard,
i am soft ,my heart soft,
hey struggle you hard ,
i am soft , my heart soft,
hey hope you hard,
i am soft , my heart soft,
hey pain you hard,
i am soft , my heart soft,
i feel fear to hardness because,
i am soft ,my heart soft,
i think i will loss to fear,
this is my softness..
because hey life you hard,
i am soft , my heart soft..
२ !! मै बेतलब होता , तलब के लबालब भरे सागर में ,
तो कोई तकलीफ न होती न होती कोई चाहत ,
अब तलब ये है की बेतलब होकर ,
तैरूँ मैं इस तलब के लबालब भरे सागर मै ..!
३!! खबर ये है की मैं बेखबर हूं खबर वालो की कायनात में ,
दरशल ख़बर मे , मै हूं उन बेखबर लोगो की कायनात में ,....!
४ !! एक पल के सुकून के लिए मै दोड़ रहा समय की रफ़्तार पे ,
कौन जाने ये मृग त्रिशणा है या त्रिशणा में मृग ,
अधना सा बिज है या बिज में छिपा कोई विशाल वृक्ष ,
अब स्थिभ सा हो जाना चाहता हूं अपने ही कक्छ में ,
क्यों की जान गया हु संसार की सारी वेदनाओ का दर्द छिपा है अश्क में ..
५ !! 1. जल रही थी रूह मेरी उस दिए की लो की तरह ,
जिस दिए का तेल किसी नासमज ने उंदेल दिया हो जमी पर '
अब ये लो सच्च में जल रही मेरी रूह की तरह ....!
2. जल रही थी रूह मेरी उस दिए की लो की तरह ,
जिसे भरोसा था की तेल भी है मेरे दीप भंडार में
काल की ऐसी बही हवा की बुझी लो और जली मेरी रूह की तरह ...!
3. जल रही थी रूह मेरी उस दिए की लो की तरह ,
जिसे कभी जलाया जाता रहा होगा पाठशाला में रोशनी के लिए ,
अब बुझी लो जल रही है इंतज़ार में मेरी रूह की तरह !!
६ !! हवा बदली ,
पते बदले ,
बदला पानी का मिजाज रे
नहीं बदले तो बस
हम नहीं बदले ,
अंतस में वाही एक
सच्ची प्यास रे
अँधा कहे या अब ,
कोरा इसे विस्वास रे
हवा बदली ,
पते बदले ,
बदला पानी का मिजाज रे ....
७ !! गुन गुना रहा हूं शब्दों को खुद से खुद को भुलाने को ,
मगर अंतर मै तुम खड़े हो एक प्रशन लेकर ,की कहा हो तुम ?
मै निर उत्तर ,शांत स्वर से कह रहा , वहीँ खड़ा हूं जहाँ हम पहली बार मिले थे !
नहीं थे कोई प्रश्न मेरे अंतर मै तुम्हारे लिए ,पर यथार्थ की सतह पर हजारो प्रश्न किये थे मैंने ,
तुम्हारा हमेशा की तरह वही एक मौन उत्तर भारी रहता था मेरे हजारो प्रश्नों पर ,
तुम्हारी पथरायी आँखों मे मैंने जीवन को स्पंदन के लिए तड़पते देखा था , वो सत्य ही था ,
जब खीज किसी और की तुम मुझ पर निकालते थे , वो मुझे तनिक भी पीड नहीं देता था ,
मौन होकर सुनता रहता था मै तुम्हारी सारी खीज जो मुझ पर उत्तार ते थे तुम , जब तुम बोलते थे ,
जानता था मै की पथराई आँखे खीज के बहाने मुझसे संवाद कर रही है , स्पंदन के लिए और मै मौन !
मेरा हर प्रशन एक अटकल ही होता था तुम्हारी पथरायी आँखों मे जीवन का स्पंदन भरने का ,
कितना सफल था और कितना असफल ये राज ही रहा तुम्हारे विराट मौन मे i
तुम्हारे उस विराट मौन को , मै तुम्हारे हजारों शब्दों को सुनने के बाद भी तोड़ नहीं पाया था ,
और आज ........गुन गुना रहा हूं शब्दों को खुद से खुद को भुलाने को ........!
८ !! जुस्तजू ऐ जिन्दगी
(1)
फन को तराशने में लगा हूँ,
मंजिल को तलाशने में लगा हूँ,
फासले दोनों के दर्मिया है ,
उन फसलों को कम करने में लगा हूं...!
(2)
जो चल रहा वो बेहाल है ,
जो नहीं चल रहा वो बदहाल है ,
यही तो समय का अंदाजे कमाल है ,
यूँ तो जिन्दा है कहने को हम ,मगर रूह अपनी बेजान है ...!
(3)
अंदाजे गुफ्तगू अपना कुछ एसा है ,
की हर लब्ज से नज्म गुजरती है ,
वे सहादत करते है किस्मत की ,
यहाँ किस्मत इबादत करती है !
९ !! 1.मैंने इबादत में मुहोबत को नहीं माँगा कभी ,
जब भी सोचा मुहोबत को तो उसमे खुदा को ही पाया !
2.यही मेरी खूबी है जो खुदाने मुझे बक्सी है !
मैं तो हूँ इन्सान पर मेरी रूह मनो एक पक्षी है
3.भीतर इन्सान नहीं बसते रूह बस्ती है,
इंसानों की अब मिलती कहा हस्ती है !
१० !! दिल नहीं होते जुनून ऐ जिन्दगी वालो के ,
जिसे पत्थर भी सलाम करे एसा दिल है अपना ...!
११ !! बुनते है लोग शब्दों से तानाबाना ,
जिघर के ये अल्फाज एक नज्म को काफी है ...!
१२ !! बे हाल है इस कदर , की क्या जिक्र करे ,
हालात ऐसे है कुछ की, अब जियें या मरे...?
१३ !! एहसास जिन्दा है मानो इस धरती पर अभी इन्सान जिन्दा है !
वरना पत्थर तो हर जगह हर मोड़ पर खड़े है.....!
१४ !! जय हिंद का है ये यस गान !
जहाँ हिन्दू मस्जिद धोके और मुस्लिम पढ़े पुराण ... !
१५ !! पता नहीं कितने रंग है जिन्दगी में देखने बाकी,
इस बात का इल्म करादो मुझे ऐ साकी ... !
१६ !! कतरा कतरा करके जो पाया हमने तो क्या पाया ,
और कतरा कतरा करके जो दिया किसी ने तो फिर क्या दिया !
१७ !! हम भटक रहे विचारों के जंगल मे ,
वो खड़े है दूर कहीं एक वीराने मे .....!
१८ !! आस्तीनों के सापो से पाला पड़ता रहा उम्रभर ,
अब जहर भी बे असर हो रहा इस जिस्म पर ...!
१९ !! रह नुमाई पर जीना यूँ गवारा नहीं मुझे ,
जिदो जहद ये फ़क्त दिले आजादी की है ......!
२० !! सोये हो तुम कहीं एकांत के सरोवर में ,
लड़ रहे हैं हम यहाँ जीवन की भवर में ..!
२१ !! तनाव बढ़ जाता है ज़माने के दबाव से ,
दर्द बाहर आता है अश्कों की धार से !!
जीवन रुक जाता है समय की मार से ,
इश्वर भी झुक जाता है भक्त की पुकार से ....!!
२२ !! हम में है चमक तो पतंगे खिचे चले आयेंगे,
कब तक छुपायेगा अँधेरा हमें,
एक दिन अँधेरे को भी उजाला दे जायेंगे.....!
२३ !! लिखते है शब्द उम्र भर हम यहाँ ,
एक मौन है जो सारे शब्द ले जाती वहाँ ..!
२४ !! अंतर आत्मा के तार एक ही सुर में कसे हुए है
मज़बूरी ये की अलग अलग साज ममें फसे हुए है ...!
२५ !! दिलो को जोडती है ये तकनीकिया ,
दिलो को तोडती है ये समय की पाबंदिया ....!
२६ !! बहुत कुछ पालिया हमने कुछ चंद रोज में ,
लोग जिन्दगियाँ खपा देते दुनिया की खोज में !
२७ !! people are running , I am walking,
people are laughing , i am joking ,
people are writing , i am reading,
people are eating , i am on dieting ,
people are fighting , i am peace liking ,
people are taking , i am giving ,
people are flying , i am braking ,
people are jumping , i am pumping ,
people are talking , i am hearing ,
people are going , i am coming
people are saying ,i am silence..silence silence ,,,,ha
२८ !! नहीं रंजो गम मेरे पास किसी और को देने के खातिर ,
आदत अपनी ही बिगड़ी हुई है की हर पराया दर्द अपना लेते हैं !
२९ !! दो घड़ी सुकून मिलता है तेरी गुफ्तगू से ,
वरना ऐ मोला कौन जुदा है जिन्दगी की जुस्त जू से ...!
३० !! कब्र ए मुहोबत पर आज दो अश्क बहाए हमने ,
एक दिले आह से निकला तो एक खुदाई रूह से ..!
३१ !! यहाँ बात रूहों की है , दिल तो रोज पैदा होते और मरते हैं ,
रूहानी रिश्ते के दर्मिया कोई फासला नहीं , कोई दिन नहीं , कोई रात नहीं .....!
३२ !! बाहर तूफान आरहा है भयंकर सा भीतर भूचाल चल रहा है भयंकर सा,
दो नो रूप माटी के एक हवा संग चल रहा एक विचारो संग.............!
३३ !! राजस्थानी अनुवाद मधुशाला का लिंक ये है ! http://yogendra-art.blogspot.in/2013/08/art-vibration-177.html
३४ !! .बंदिश बे वजह की बर्दाश्त नहीं होती ,
कलाकार की किस्मत किसी की गुलाम नहीं होती !!
३५ !! कुछ बात है आप मे की गजल खुद बा खुद बनती है ,
नज़्म लिखते होंगे वो यहाँ शायरी खुद बा खुद टपकती है !
३६ !! 1 उकेरने मे पढ़ना पीछे छुट गया ,
जो संजोया था सपना वो पल मे टूट गया !
2 .शब्द नहीं उल्जा सके मुझे भाव पकड ने जाता हूँ ,
भाव पकड़ते ही फिर फिर मै शब्दों मे फस जाता हूँ !!
३७ !! क्यों लगता है की अब भी कुछ है पिने को और बाकी ,
वो पिलाएगी और अभी , होने के बाद ख़त्म, साकी !
३८ !! जिसके पास आँख है वो कला का पारखी ,
जिसके पास कान है वो संगीत का पारखी ,
जिसके पास दिल है वो प्रेम का पारखी ,
जिसके पास विश्वास है वो धेर्य का पारखी ,
जिसके पास सृजन है वो मेरा पारखी !!
३९ !! बहुत दिनों बाद आज मैंने मेरी कर्म स्थली से बुवारी निकाली ,
तो निकली उसमे कुछ रेत की रंजी , तो कुछ छुतरे पेन्सिल के ,
कुछ तनाव से उखड़े सिर के बाल, कुछ रबड़ से मिटाई कागज की कालिख ,
दरसल वो मेरे सृजन का अर्क है , जो मेरी कर्म स्थली पर अक्सर जमा होता है ,
जब मै निकालता हूँ बुआरी मेरी कर्म स्थली की, बस यही दीखता है मुझे मेरा सृजन 'अर्क '!
४० !! गंतव्य के लिए निकला मन मे मंतव्य लिए ,
मंतव्य से चला जा रहा गंतव्य के पथ पर ,
इस मंतव्य से की मिले गा मुझे मेरा गंतव्य वो ,
जो मैंने मेरे मंतव्य मे बनाया है गंतव्य के लिए ,
हकीकत मे कैसा होगा गंतव्य मेरे मंतव्य का नहीं पता ,
पर मंतव्य के गंतव्य की खातिर चला जारहा हूँ अनदेखे गंतव्य पथ पर !
४१ !! सर . रविन्द्र नाथ ठाकुर की काव्य रचना " एकला चलो रे " का राजस्थानी मे अनुवाद का एक प्रयास !
थारी आवाज माथे जे कोई नई आवे तो थू चाल एक्लो रे
फेर चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो रे
ओ थू चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू फेर चाल एक्लो रे
फेर चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो रे
जे कोई नई बतलावे और ओ रे ओ करमफूटोडा चाल एक्लो रे
जे सगला मुंडो फेर रिया सगला डर करे
जने डरिय बिना ओ थू खुले गले सु थारी बात बोल एक्लो रे
ओ थू खुले गले सु थारी बात बोल एक्लो रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू फेर चाल एक्लो रे
जे पाछा सगळा भूग्या और ओ रे ओ करम फूटोडा पाछा सगळा भूग्या
जे रात गेरी चलती ने कोई ध्यान नई करे
जड़ मारग रे काँटा ओ थू लोई सु लिथड़ीजियोड़े पगथ्लिया रा तला एक्ला रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू फेर चाल एक्लो रे
जे दियो नई जगे और ओ रे करमफुटोडा दियो ना जगे
जे बादलवाई ऑंधी रात मे किवाड़ बंद सगळा करे
जद सेतिर सी चोटी सु थू कालजे रा पंजर चला और चाल एक्लो रे
और थू कालजे रा पंजर चला और चाल एक्लो रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू फेर चाल एक्लो रे
फेर चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो रे
ओ थू चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो , चाल एक्लो रे !
४२ !! मित्रो आज मन बहुत खिन है,
गृह नक्षत्रो की दिशा भिन्न भिन्न है ,
मन मे अजीब सी उल्जन है ,
जानू कैसे की समय क्यों कठिन है ,
मित्रो आज मन बहुत खिन है .....!
४३ !! दो जहाँ के बिच से गुजर रही मेरी जिन्दगी , ये यूँ ,
एक जहाँ खिचता है मुझे , अंधकार से प्रकाश की ओर!
दूजा जहाँ जहा प्रकाश अपार फिर भी, दिखे अन्धकार !!
एक जहाँ ,जो मौन मे भी गूंज का आभास कराती है !
दूजा जहाँ ,जहां अंधे शोर से मेरी रूह काँप जाती है !!
एक जहाँ रंग की ठंडी बरसात मे भिगो रहा, है मुझे !
दूजा जहाँ जहां सूखे की आग मे तपा रहा ,नित मुझे !!
एक जहाँ यह कह रहा, ये संसार मिले हरबार तुझे !
दूजा जहाँ यह कह रहा, तेरे संसार मे फिर मै मिलु तुझे !!
इस तरह , दो जहाँ के बिच से गुजर रही मेरी जिन्दगी , ये यूँ ,.....?
४४ !! क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
झूठ यहाँ बिक रहा ,
ख़रीदे लोग भर भर थेला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
लालच का यहाँ पहरा ,
लोभी घुमे बनकर भोला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
सेंध लगाये चोर यहाँ ,
लुटता रोज इमान वाला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
छल की बहती धार ,
न्याय ढुंढे अपना निवाला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
बैर का समंदर बना ,
सुखा प्रीत का वो प्याला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
ज्ञान हो रहा काला ,
अज्ञानियों का बोला बाला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
जो भी रहा यहाँ डटा ,
भीतर से कटा फटा मिला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
संजोया जिसने सपना ,
जलाया खून उसने अकेला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
इन्सान मोहरा बना ,
ये समय शतरंज सा खेला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
चेन भी छीना उसका ,
जो रहा हमेशा ही अबोला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
४५ !! अभिमन्यु हो गया हूँ , इस कालचक्र की धारा मे,
कमजोरो से जीत जीतकर, फिर भी आज हारा मैं !
४६ !! हिमालय से ,अब तृप्त हो पाऊंगा मै,
पाकर,सब खुद को न खो पाऊंगा मै ,
बिज प्रेम का हरपल बोता रहूँगा मै ,
खुशियों के रोज सरोवर खोदुँगा मै ,
उत्साह की दरिया नित बहाऊंगा मै ,
गमो का वो समंदर पि जाऊँगा मै ,
हिमालय से ,अब तृप्त हो पाऊंगा मै !
४७ !! खो दिया उसे जो, था ,
एसा विस्वास मेरा !
पर जिसे खोया वो , था ,
अंध विस्वास मेरा !!
४८ !! आज रोया मै ,निज भगवान् को ,
आज रोया मै ,मेरे जड़ ज्ञान को ,
आज रोया मै ,तेरे अभिमान को ,
आज रोया मै ,इस माया संसार को .,
आज रोया मै , उस झूठी पहचान को ,
आज रोया मै ,तुझ पत्थर धनवान को ,
आज रोया मै , अपने अमिट पाप को ,
आज रोया मै ,.ऐसे अंधे विस्वास को .
आज रोया मै , निज भगवान् को ...!
४९ !! कहीं जीवन अपना काम करता सा नजर आ रहा ,
कहीं समय भी रुका सा नजर आ रहा !
कौन समझता है उस पल को ,
जो सामने होते हुए भी, सामने नहीं आ रहा !
५० !! रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा,
काहे मोहे इतनो रंगियो ,
अब कोई रंग चढ़े ना दूजो ,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
लाल , कालो रंगीयो, रंगीयो धोलो रे तू ,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
ईत रंगीयो रंग मोहे , कित जाऊं छिटकावन को,
जित जाऊं उत तू ही तू है ओ रे रंग रेजवा,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
तोरे रंग मे तुलसी रंगीयो .और रंगीयो कबीरा रे ,
काहे ओ रंग मोपे डालो ओ रे रंग रेजवा ,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
जीवन को सारो रंग छूटे ,न छूटे रंग तोरो ,
तोरे रंग मे कारो भी दिखे सब को गोरो रे,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
५१ !! बरसात - १
तुम्हारी बहुत आती है याद, इस बरसात मे ,
हर बूंद मेरी अश्क , इस बरसात मे ,
कड़कती बिजलियाँ आहें , इस बरसात मे ,
रोके राह बदली घटा घोर , इस बरसात मे ,
ढूँढू मै तुजे केसे यहाँ , इस बरसात मे ,
तरसु साथ को तेरे मै , इस बरसात मे ,
अकेला चलू कितनी दूर , इस बरसात मे ,
नहीं तेरा हाथ मेरे साथ , इस बरसात मे ,
बहुत तनहा हूँ मै आज , इस बरसात मे ,
होगा कब मिलन तुमसे , इस बरसात मे ,
गुजर जाएगा ये वक़्त भी , इस बरसात मे ,
तुम्हारी बहुत आती है याद, इस बरसात मे !
बरसात - २
वो बरसे बड़ी मुदत के बाद आज कुछ एसे ,
क्या गुजरी हम पे ये कोई समंदर से पूछे !!
बरसात - ३
बूंद टपकी आसमान से जमीन पर ऐसे ,
नुरे हुर की झलक पायी हो हमने जैसे ,
ये खुदा की क़यामत है जमीन वालो पे ,
जो बरसती बूंद से खोया नूर पा जाते है !
५२ !! अजीब दास्ताँ है ये इस जहां की ,
जिसको हम समझ पाते नहीं क्यूँ ?
जो कभी मिलते नहीं हकीकत मे ,
वो ख्वाब मे अक्सर आते है क्यूँ ? !
५३ !! " सच्च "
सच्च ये की मुझे सच्च चाहिए ,
सच्च ये की सच्च को सच्च चाहिए ,
सच्च ये की सच्च की पनाह चाहिए ,
सच्च ये भी की सच्च को भी पनाह चाहिए ,
सच्च ये भी की झूठ को भी सच्च चाहिए ,
सच्च ये भी की झूठ को भी सच्च की पनाह चाहिए ,
सच्च ये है की झूठ भी तो एक सच्च है ,
सच्च ये भी है की झूठ मे भी एक सच्च है ,
सच्च ये भी है की सच्च भी एक झूठा सच्च है ,
सच्च ये भी है की झूठा सच्च भी सच्चा सच्च है !!
५४ !! बरसात का बरसना रुकना फिर बरसना ,
यह खेल ही तो है प्रकृति का जीवन से ,
इस जीवन मे कितने प्राकृत और अप्राकृत खेल,
खेल रही है जिन्दगी बस खेल ....!
५५ !! मेरा कविता लिखने जाना कागज पर ,
और आसमान से गिरना बरसात की बूंद ,
बिखरना पानी का कागज पर जैसे ही ,
कलम की स्याही भी साथ बिखरी ,
मेरी कविता की अभिव्यक्ति अब -
चित्र के रूप मे बदली प्राकृत ढंग से ...!
५६ !! आज मन फिर उदास है ,
जाने क्यूँ लगी प्यास है ,
मौन भी आज आवाज है ,
समय क्यूँ यूँ नाराज है ,
आज मन फिर उदास है !
५७ !! थक मत ,
आगे चल,
चलता चल,
पथिक तेरे,
साये मे, है !
५८ !! सफ़र मे, मै, बस के, देख रहा दो , द्रश्य ,
एक भीतर का और एक बाहर का ,
भीतर शोर अथाक, बाहर गहरा मौन ,
दोनों द्रश्य प्रक्रति के ठोस सतरूप ,
मै, मेरा निज ,तराजू के कांटे की तरह,
जिसे स्व से स्थिर करता सा उन दो द्रश्यो के बिच ...!
५९ !! रंगों के इस माहौल मे मन की तापातोडी है ,
समय भरा भवसागर सा,ये जिन्दगी थोड़ी है ..!
६० !! वो अक्सर बतियाते थे, हम से ,
आज एकदम से, मौन क्यूँ ?
वो बिना कहे सब, समझते थे ,
आज ये, ना समझी क्यूँ ?
वो अँधेरे मे, चिराग की रौशनी थे ,
आज बुजा सा,काला अँधेरा क्यूँ ?
वो मतवाले, मन मौजी ही थे ,
आज मायूसी की , चादर मे क्यूँ ?
वो खुशियों का , अथाक सागर थे ,
आज सुखा सा, बने ताल क्यूँ ?
वो रहते सदा , संग - संग मेरे ,
आज हुए जुदा -जुदा, यूँ क्यूँ ?
वो अक्सर बतियाते, थे हम से ,
आज एकदम से, मौन क्यूँ ....?
६१ !! किस से बतियाऊं ,कैसे बतियाऊं ,
कौन सुने मेरे अंतर की ,
भवसागर सा भूचाल मचा है,
क्या सहस संभालेगा कोई ,
वेदनाओं के बाण चुभे है ,
चलाये इन्हें खुद अपनों ने ही ,
रिस रहा रक्त जीन अश्क मे,
क्या देख पायेगा इसको कोई ,
नहीं ठोड कोई मेरी पीड़ा का ,
न धरती न आकाश कोई ,
कैसा ये अति भार है मन पर ,
जान न पाया अब तक कोई ,
किस से बतियाऊं , कैसे बतियाऊं ,
कौन सुने मेरे अंतर की ........!
६२ !! कौन मिलता है इस ज़मी और आसमान में ,
बस रूह से रूह मिलती है,इस कायनात में ,
तालुकात जिस्मो के नहीं है इस संसार में ,
जंजीरे जकड़ी है तहजीब की इस गुलजार में ...!
६३ !! क्या सुनाऊं मै आज आपको ,
देख रहा हूँ आइने मे जैसे अपने आप को !
६४ !! बिना ध्वनि के अंतर ध्वनि को झकझोर देते हैं ,
कवि वो होते हैं जो बिना बोले मन मे गुंजन भरते हैं..!
६५ !! अर्ज किया है की वो आये तबसुम मे कुछ अर्ज करने को ,
बोले कम्बखत मर्ज ये है की आज कल कुछ याद नहीं रहता ...!
६६ !! हम बे खबर हो रखे है खुद से ,
एक वो है जो शहर की खबर पूछे है !
६७ !! जमी मुहौबत की दिल ही होती है ,
न जाने ये दुनिया जमीं के लिए , क्यों मुहौबत खोती है .!
६८ !! आप के लब्ज जिगर का आइना होते है,
जिसमे हम अपनी शक्ल को खोजा करते है !!
६९ !! मुक्त - बंधन
जो बंधा है अंतरंग तारो से , वो बंधन है ,
उन तारो की स्वछंद स्वर गूंज, वो मुक्त है ,
जो प्रतिबधता में जकड़ी है , वो बंधन है ,
उस प्रतिबधता की खुली कड़ी , वो मुक्त है ,
रूहानी रिश्ते बने है जो यहाँ , वो बंधन है ,
इन रिश्तो में जिस्मो का मेल कहा ,वो मुक्त है ,
जीवन में चलता सम नित ये मुक्त - बंधन है ...!
७० !! ना दावत दो यूँ दागे,दामन को इस कदर ,
ये ना छोड़ेंगे साथ, कफ़न तक हमारा ..!
७१ !! पद चिन्ह जो देखे हमने उस राह के , सोचा ,
चलने वाले को बे मंजिल, इस राह की खबर ना थी !
७२ !! किया बे आबरू उस मासूम को हरकते हवस ने तेरी ,
डाली लोहे की रोड वहा ,जहा से ये जनत तुजे मिली ,
जहनुम भी खुदा तुजे न बक्षेगा ओ बे रहम दरिन्दे ,
ये हरकत तेरी किसी ना मर्द सी बनाती है तुजे ,
हवस के अंधे तूने देश को हवस की भूख से लजा दिया ,
तेरी तहजीब में दरिंदगी की काली छाया ने हमें रुला दिया ,
शर्म से मर गए होंगे तुजे पैदा करने वाले वो माँ बाप ,
जिनको तूने अपने कर्मो से ये ताउम्र का कालिख दिला दिया ,
किया बे आबरू उस मासूम को हरकते हवस ने तेरी ........!
७३ !! सोच की तर्ज एक है , दिल की मर्ज एक है ,
रुहें दो अलग अलग , मगर मंजिल एक है !
७४ !! माँ
माँ कोई शब्द नहीं जिसे मै पढ्लू ,
माँ कोई राग नहीं जिसे मै गा लू ,
माँ कोई संगीत नहीं जिसे वाद्य पे गुन्झा लू ,
माँ कोई न्रत्य नहीं जिसे अंग भंगिमा से अभिव्यक्त कर लू ,
माँ कोई चित्र नहीं जिसे रेखाओं से उकेर लू ,
माँ मेरे अहसासों में है , मेरी इन जिन्दा सांसों में है ,
और तब तक है जब तक है मेरी ये जिन्दा सांसे ...!
७५ !! हालात ने जकड लिया आज यूँ इस कदर हमें ,
बहुत चीखे तड़प में हम, क्या सुनाई दिया तुम्हे ?
कहते है रूहानी रिश्ते कई जन्मो में मिलते है हमें ,
फिर इस जनम में वो रिश्ता ,मिला क्यूँ नहीं तुम्हे ?
कहने को जिन्दगी में यूँ तो बहुत से है दर्द हमें ,
गमे दिलखाख होने की ,अब क्या खबर देवे तुम्हे ?
जनाजे जिस्मानी गुजरते राह पे दिखे है अक्सर हमें ,
जनाजाये अरमा हर सांस पे गुजरे है ,तो क्या कहे तुम्हे ?
हालात ने जकड लिया आज यूँ इस कदर हमें ,
बहुत चीखे तड़प में हम, क्या सुनाई दिया तुम्हे ?
७६ !! मैंने समय को खोया है , या समय को पाया है ?
ये खेल समय का अब तक समझ नहीं आया है ?
किसी ने थोड़े में बहुत तो,किसी ने बहुत में थोडा ही पाया है ?
कहते है ये सारा जगत संसार इस समय में समाया है ?
फिर भी ऐ दुनिया वालो ,मुझे क्यों एसा भ्रम लगता है ?
मैंने समय को खोया है , या समय को पाया है ?
७७ !! बहुत कर लिया सफ़र मैंने शब्द रेखाओं से ,
मगर वो मुकाम मुझ से ,अब भी दूर ही रहा ,
मीर ग़ालिब भी इस सफ़र में जिसे पा न सके,
जफ़र मिलकर भी सब से ,उस से न मिल सके ,
कौन समझे ये दिले हाल, मेरे इस सफ़र का ,
जिस सफ़र में मिरे - जफ़र भी कब्रे खाक हुए !
७८ !! सब्र बेसब्र हो रहा है क्यूँ कौन समझाएगा मुझे ,
वो है जो दूर, उसे से , कौन अब मिलायेगा मुझे ,
जिसके खातिर हु जिन्दा, वो क्या जानेगा मुझे ,
जो जान के भी अनजान है, वो क्या मानेगा मुझे ,
सब्र बेसब्र हो रहा है क्यूँ ,कौन समझाएगा मुझे ,
७९ !! इस इन्तजार में हूँ की जिन्दगी करवट तो बदले ,
क्या पता उस तरफ इस दर्द का अहसास कम हो !
८० !! अगर है तू ,ऐ खुदा तो ,अपनी मौजूदगी दर्ज करा ,
भरोसे के इस सफ़र के , रास्ते भी ,भरोसो पर है ,
गुजर गया जो वक़्त , बे तरतीब से, वेसा क्यों रहा ,
अगर है तू ,ऐ खुदा तो, अपनी मौजूदगी दर्ज करा ,
गिले शिकवे करू, किससे, कोई ऐसा पैमाना बता ,
अंजानो को , जानू कैसे , कोई तरकीब मुझे सुझा ,
अगर है तू ,ऐ खुदा तो ,अपनी मौजूदगी दर्ज करा ,
रिश्ते जो कहते है , वो की , तेरी रहमत की देन है ,
फिर रहमत में तेरी, क्या कसर , की दरारे लहू है ,
अगर है तू ,ऐ खुदा तो ,अपनी मौजूदगी दर्ज करा !
८१ !! मेरा मुकदर बिखरा है इस कदर ,की इसे समेटू कैसे ,
तू ने थमाई भी है, जो चादर ऐसी, की वो जालीदार है !
८२ !! कब तक भरोगे शब्दों की गजल से , इन तनहा कागजों को, ऐ ग़ालिब ,
यहाँ हालात ये है कि, दिले हाल इन पत्थरों ने ,सुनना बंद कर दिया !
८३ !! हमने अभी तक लिखा ही कहाँ है ,कि कोई पढ़ सके,
जो हमें पढ़ लेते है उनके लिए ये अहसास काफी है !
८४ !! हर दिन नया , हर सांस नयी है ,
जीवन की हर आस नयी है ,
हर पल की वो प्यास नयी है ,
धुप छाँव की रास नयी है ,
मत पूछो क्या खास नहीं है ,
हम पर क्या विश्वास नहीं है ,
हर दिन नया , हर सांस नयी है !
८५ !! वो बेचते है हमारे नाम से जलालत के बाजार में ,
हम तो बिकते रहे खाम खां , वो मुनाफ़ा खाते रहे !
८६ !! भागे तो भगवान भी ,जब काल हुआ विद्रूप ,
ये धुप छाँव आती रहे , यही जीवन का रूप !
८७ !! हम तो खोये इस कदर . की भूले दिन और रात ,
आज तक बस जी रहे , वो गुफ्तगू के लम्हात !
८८ !! सफ़र जारी है मुकाम ऐ अंजाम तक, मुसाफिर का ,
थकना, रुकना और झुकना ये नसीब कहा सफ़र का !
८९ !! दिखत में जो दूर लगे , नहीं किनारे वो दूर ,
डुब के दरिया में दिखे , प्रेम को साचो रूप !
९० !! दुनिया दारी ऐसी है, कि मन को देवे घाव ,
सृजन ऐसी धार है, जो मन को देवे तार !
९१ !! युग युगों तक फिरते फिरे, फिर भी रहे ये अहसान ,
अहसान उतारना है नहीं , इतना यूँ आसान !
९२ !! ज्ञानी जिन्जोड़ दे , पकड़ समय के कान ,
सब छुटे ते रब मिले , योहि साचो ज्ञान !
९३ !! नाराजगी हल नहीं जिन्दगी का ,
पीना भी रस्ता नहीं इस जिन्दगी का ,
सोये वे अक्सर जो थके इस जिन्दगी के सफ़र में ,
राही वही मंजिल पाता है जो बस चलता जाता है, चलता जाता है , चलता जाता है !
९४ !! वो मशरूफ है गमे बाजार में , फ़िक्र खरीदने कि करे है ,
बेचे है कफ़न ओरो के खातिर, खुद के दफ़न होने से डरे है !
९५ !! कोई बाज़ार होता , तो हमसफ़र खरीद लेता वहाँ से ,
खुदा ने जनत तो बनायी, पर हुस्ने नूर का बाज़ार न बनाया !
९६ !! अजब खेल है तेरी कायनात का ऐ मेरे परवर दिगार ,
जो उम्रभर रहे तकरार में, वही ख्वाब में कदम चूमे है !
९७ !! रिस्तों का टूटना ,या जुड़ना एक संयोग ही तो है ,
रिस्तों का होकर भी न होना एक वियोग ही तो है ,
रिस्तों का अकाट्य जाल जीवन पर एक बोझ ही तो है ,
रिस्तों का निरंतर निभाव बस एक प्रेम कि खोज ही तो है !
९८ !! YOU FRIENDS ARE
you friends are my power,
you friends are my trust,
you friends are my vision,
you friends are my region ,
you friends are my dedication ,
you friends are my passion ,
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you friends are my voice ,
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you friends are my promoter ,
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you friends are my day ,
you friends are my light ,
you friends are my right ,
you friends are my love ,
you friends are my wow ,
you friends are my relax ,
you friends are my thanks ,
without you my friends i am nothing ,
when you with me then i am feeling everything. ha ha ha :)
you friends are ...
९९ !! हम इबादत करते करते थक ही गए ऐ मौला ,
वो हर इबादत के बाद एक और इबादत कि मांग करे है !
१०० !! वे अपने हाथों से मीठा जहर ( तमाकू) खिला रहे दोस्तों को ,
और फ़िक्रे यारी में, हो उनकी लम्बी उम्र ,ये दुआ करे है !
I sure this 100
poetries of myself free mood poetry have expressed some more
inner sound in front side of yours by way of Literature performance of
myself writing and you have
know me more better as a world
art family member by this free mood poetry of Myself .
So I said here about
this post , collection of free mood poetry of Myself in 100
poem’s
Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA