Friday, February 28

Art Vibration - 284

OUR NEWS PAPER IS OUR TELESCOPE



This Image from Google Image ..



We know today our world is busy in work of communication or that’s information collection for future betterment . In Indian  Hindu Mythology when newspaper was not in social system in that time a one person was working for communication or that’s information .  we are calling to that person God NARAD MUNI . I can say our today communication or information system is inspired by him or his working style . who  was followed   to him very first I don’t know but I can observe that same sound in our today news paper or communication system so I said it .


Our news paper is a part of our daily life. We start our day by a cup of  tea or news paper . by news paper  we are collecting all kind of information every day of our city, state, nation ,world or this universe with all kind of subjects of our life of earth . a news paper is working for us like a telescope because through the news paper in our   room we can see or observe  to all our the world in one hour  by 20 pages .

You can think  why I am saying this philosophical talk at here ? so I want to inform  to  you by my telescope , I mean this blog art vibration , I am saying it because in this days I am busy in paper craft  work  and in this paper craft  I am using to news paper for paper sculpture .

Yesterday when I were lived busy in paper craft in that movement I were thought about news paper then I were fined  this telescope art concept in news paper or that’s real role in our contemporary social system .  in same time I were created a paper craft  in form of telescope that is in news paper . here I want to share that image  for  your visit .

We know a news paper is giving to us lots of view and visuals in 20 pages . a news paper give many angles to us  like  social condition, political condition , land condition, farming condition , education condition, critical condition, promotional condition , over all a contemporary life condition of all our the world , we can  see to other countries  or that’s live condition by our news paper in our room , this news paper is braking to distance of land  just like a telescope . by telescope we can see near to  a far spot , telescope can zoom to a  far point, very  close by zooming  telescope show to us very clear to spot of  distance . it is a magic of science research . this same thing is working with news paper I  were observed it when I think in this angle about news paper . so I were created a paper sculpture of telescope  by newspaper  for  your visit or observation I think  you will accept  my  think about newspaper . ha

So here I said our newspaper is telescope ..

Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA

Sunday, February 23

Art Vibration - 283

 STUDY  ON  FIRST 
INDIAN LITERTURE 
RAMAYAN

Friends  last ten days to I were lived  busy in study of Ramayan . it is a first Indian literature in poetic sound. Sant and writer Rishi walmiki was wrote it  in his own language Sanskriti , he was draw to life of God Rama in a book today we are saying to this  writing style biography  of  GOD RAMA .

I have read this historical or religion book by visual art. On  youtube.com library . A contemporary Cine Art Director Ramanand Sagar was created and transferred to that first Indian literature in cine art for study of  our nation people  . in my childhood age I were watched that just for  my fun by our national TV channel DURDARSHAN .

But in this days I were searched  that RAMAYAN on youtube .com library and by luck I were founded for  my study so I were started study on that . in ten days I were completed  it by support of electricity or by BSNL or yourtube .com library team. So thanks to all of them very first because after support of them  I can read to first literature of our INDIA that is RAMAYAN.

Here today after complete to study on Ramayan  I have expressed  my observation  in words that is in Hindi  but I sure bing or google translate will help for  you in translation to it in right meaning about   your reading .

 here I am going  to share a link of first literature of RAMAYAN , it is from  yourtube .com library . and my view after reading on RAMAYAN .


 ( मित्रों कल मैंने रामायण ग्रन्थ का अध्ययन सम्पूर्ण किया दस रोज कि अवधि के बाद ! अध्ययन करते समय ये ज्ञात हुआ कि ये हिन्दू संस्कृति का प्रथम काव्य ग्रन्थ है ! और महाऋषि वाल्मीकि के द्वारा लिखित ये ग्रन्थ भगवान राम के जीवन का रेखा चित्र है ! मैंने ये अध्ययन पुस्तक से नहीं बल्कि यूट्यूब के माधयम से श्री रामानंद सागर द्वारा रचित चलचित्र के द्वारा किया ! रामानंद सागर जी ने गोस्वामी तुलसी दास और फिर उत्तर रामायण महाऋषि वाल्मीकि जी कि रामायण से लिया और फिर फिल्माया ! एक कलाकार कि द्रस्टी कोण से मुझे रामायण और उत्तर रामायण में फर्क नजर आया ! हालांकि निर्माता , अभिनेता और संवाद प्रस्तुति करण वही था पर मुलभुत लेखनी स्वतही अपने भाव अभिव्यक्त कर रही थी अनायास ही फर्क समझ आरहा था वाल्मीकि और तुलसी कि रामायण लेखनी का !

एक बात समझ आयी कि राजा हरिश्चंद्र के परिवार को हमेशा कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा या वे राजा के धर्म को प्रतिबधता से निभाते थे एक राजा कि भांति एक सन्यासी कि भांति ! सो उन्होंने राजा और राजा कि परिभाषा को स्थापित करने के लिए बहुत कुछ त्याग या उन्हें त्यागना पड़ा ! रामायण में स्व का त्याग , राजा के द्वारा , सब का हित समझने और उसे पूरा करने वाला व्यक्ति ईस्वर के सम रूप होता है ऐसा समझाने कि कोशिश कि गयी है रामायण के माध्यम से अनेका अनेक वृतांत , उदाहरण और प्रकरण के साथ ! ताकि हिंदुस्तान के हर युग में अच्छे राजा हिंदुस्तान कि जनता को मिले एक पालक के रूप में एक पिता के रूप में पर आज परिदृश्य जटिल और असम्भव सा है ! सायद इसी कारण रामायण जेसे साहित्य को पुनः अध्ययन कि आवश्यकता है और फिर धारण करने कि भी !

रामायण काव्य ग्रन्थ केवल कलात्मक या रचनात्मक परिकल्पना का लेखा जोखा नहीं प्रतीत हुआ मुझे ! इसमें उस समय काल के ज्ञान और विज्ञानं के साथ उसके तकनिकी पक्ष भी रखे गए है जो मार्गदर्शन और नयी खोज या पुनः खोज के संकेत देती है खोज कर्ताओं को !

अनिष्ट और अनर्गल को सत कर्म में केसे लिया जाए इस कि भी कुंजी रामायण में मिली श्रापित नल नील वानरों के श्राप का सही उपियोग राम सेतु के निर्माण में लिया गया ! पुष्पक विमान समय और दुरी को कम करने के लिए उपियोग में लिया गया ! गति कि परिभाषा रामायण में स्पस्ट कि गयी , वायु गति, ध्वनि गति, प्रकाश गति , मन कि गति , और उस से आगे ईश्वरीय गति।

प्रकृति के करूण दृश्य ( क्रोंच पक्षी के युगल पर शिकारी के बाण से नर कि मृत्यु और फिर प्रेम करुणा में मादा क्रोंच का देह त्यागना ) से खिन होकर महाऋषि वाल्मीकि ने कुछ शब्द उच्चारित किये वे शब्द समूह के रूप में रामायण का प्रथम श्लोक बना या वही करुणा दृश्य रामायण काव्य ग्रन्थ का प्रथम आधार बना सो वाल्मीकि कि रामायण करुणा भाव से ओत प्रोत है ! कुछ प्रकरणो पर भावुकता वश मेरी आँखे भी नम होती रही ये प्रभाव करुणा मई महा ग्रन्थ के भाव और महा ऋषि वाल्मीकि जी कि लेखनी का प्रभाव ही था जिसे रामानंद सागर जी ने ओर जीवनत कर के मेरे समक्ष अध्ययन हेतु रखा !

आदर्श जीवन, राजा का , पिता का, माता का , भ्राता का , अर्थांगिनी का , प्रजा का , सेवक का , मित्र का , भक्त का , पुत्र का , गुरु का , शत्रु का , देव का दानंव का , ऋषियों का , मुनियों का , यहाँ तक कि भगवान का भी आदर्श चित्रण रामायण में बहुत स्पष्ट रूप से साफ़ और सटीक शब्दों में व्याख्यायित किया हुआ है जो मानव मस्तिस्क को विचरने को बाध्य करता है ! यही रामायण कि सफलता है साधारण जीवन में, और आध्यात्मिक दृष्टि कोण से तो ये वैचारिक मुक्ति कि और लेजाता है क्यों कि शारीरिक मुक्ति समय और काल के हाथ है काल जो विष्णु के प्रथम पुत्र जो स्वयं विष्णु भगवान् को भूमि त्यागने कि सुचना देने आते है और साथ में दंड कि लीला के रूप में शेषनाग लक्ष्मण को भी सन्देश देजाते है भूमि त्यागने का !

रामायण एक तरफ सरल जीवन कि साक्षी प्रतीत होती है तो दूजी और अलोकिक रहस्यों और सृस्टि के गुड़ रहश्यों को भी सांकेतिक रूप से सब के समक्ष रखती है जहाँ अदृश्य शक्तिया , और उनके प्रभाव और उन प्रभावों से आगे का कथानक कड़ी दर कड़ी जुड़ता और टूटता सा नजर आता है !
उत्तर रामायण में राम विष्णु रूप में सर्वर नदी से वैकुण्ठ धाम कि और प्रस्थान करते है लग भग सभी को अपने में आत्म सात कर लेते है पर परम वीर हनुमान शिव के अंश रूप को कलयुग के अंत तक धरती पर ही वास करने का आदेश और आज्ञा देते है ! यहाँ से रहस्य कि बात का स्पष्टि करण नजर आता है पर ये रहस्य ही है कि हनुमान जी है तो है कहाँ इस धरा पर इस कलयुग में ?

कुल मिलाकर इन दस रोज में मैंने एक और महा ग्रन्थ को करीब से अपने अध्ययन कि बोधिक क्षमता के साथ पठन किया फिर जो समझ पाया वो आप के लिए यहाँ रख रहा हूँ एक आदर्श पाठक के रूप में , एक आदर्श समीक्षक के रूप में और एक आदर्श साहित्य और काव्य अनुरागी के रूप में। .जय श्री राम .... जय हो ....)

I sure after visit  to this link or after read to this hindi note  you will know to  my study view.  You can know why I read that  ? and why I share this view at here for  you ?

Actually I want  know as a visual art master ,  what was the first  Indian literature of our India  and how to writer was created that’s visuals  for readier In his Literature  . so here I said  study on first literature of India RAMAYAN …

Yogendra  kumar purohit

Master of Fine Art

Bikaner, INDIA

Tuesday, February 18

Art Vibration - 282

FEW MORE STEP

Word step is giving a sense of progress  to a progressive or a creative  person. It is working with  my art nature every time when I am thinking  for creative work or that’s express by way of art medium .


In last posts I have shared  with  you some craft work sound,  actually that was  paper sculpture of  myself , this year 2014 ,   I were started this new exercise for sculpture or for 3D art form of  my vision.


 When I were started paper sculpture or paper craft in that movement I were not thought , if I will create many paper sculptures from way of  art and craft . today I have  above 30 paper sculptures by news paper or thread .

I can say it is coming out from myself inner sound   in action of step by step movement of  creativity or vision. It is a natural inner demand of my creativity . this art work is giving  some more exercise to  my mind  with lots of critical condition in practical work.

In past posts I have shared about  paper craft or that’s creation  so here I will not write that same words or matter for  your reading .  this post is just a collection of all paper sculptures of  myself  creation of this month with some visuals .

In this sculptures I have created , Bell, Tea pot,  Bird, Turtle , Badminton or Cock , Snake and Been  , Key, Telephone ,,  Computer  mouse , Grapes ,  Flower Pot, Tool of Coal Main  . This object forms I were created by paper or thread . I were  collected  this sculpture form or that’s idea from  our daily life and it was a live mantel challenge for my creativity . someone came in right form or someone near to complete form .



But this art exercise was pulled vision of other artist or art family members of our world . I did got many good views and comments on updates of  that art works. Here I can’t share all comments and views of our world art family so I want to say sorry but  you can see and notice on my facebook wall that all comments and views of our world art family viewers .






















I am going to share  some more paper sculpture  work images  for  your visit in a one post . but it is not last because this creative sound is demanding to me some more sculpture  in same format that is paper sculpture.

I hope  you will enjoy it because it is  my some more steps in paper sculpture  art.

Here I said to it few more step because it is coming out by me step by step or day by day . It is giving me more sense of 3D visuals by easy and chip medium  of our world. That is useless or old news paper of past .and thread is a basic  tool of INDIAN culture we are saying to it SOOT .. mostly it is handmade thread from village women’s  or INDIA . this both medium is very easy for me about 3 D sculpture so I am working with it for  your visit to paper sculpture . 



Os It is  my few more step in paper sculpture..

Yogendra  kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA 

Tuesday, February 11

Art Vibration - 281

MOVIE ON ART JOURNEY 

                                     https://facebook.com/lookback/#FacebookIs10




Friends  we know some time , time is create some challenge for life and some time , time is gift to us special surprise on our hard work or thats dedication . I am saying it after received a special surprise from global online network Facebook.com .

We all facebook users are knowing this year is a 10th birth year of Facebook Journey and facebook  is giving art gift to all users of facebook by a art movie . this is a special gift to all users of facebook from director of Facebook Mark Zuckerberg   https://www.facebook.com/zuck?fref=ts .

In 2008 I were connected  to facebook.com online network after guide line of our  Director of Bikaner creative Artist Group, Artist Kiran Soni Gupta . before facebook network I were communicating  my art sound with world art family by E mail. Because I were not trusted on online network , actually  I were not much more educated  about use of online communication tool or that’s networks .

But when I were registered  to myself on facebook then I were saw some Email id persons were  on facebook with his or her art work or id. I were felt some more free when I were started art communication on facebook. Here this online network  have lots of way for communication, here  you can share , visuals, text, news, event or you can talk to other artist friend by way of live chat .so I were saw everything is on facebook  for a right art communication to world art family .

2008 to till 2014 , I have completed six year on facebook network , you can say to it  my art journey on facebook . for the world  family its title is facebook but for me its my heartbook or its  my inner soundbook. 2008 to till today I have expressed my  every thing  of art or art sound in  form of painting, drawing, poetry , articles, sculpture, paper craft , photography , discussions, short notes , literature , or much more .

Actually in this six years facebook was lived  for me  like a rail track and  my art sound was moved  on it  like a   rail  on this track in around the world . this network was saved  my time ,art energy and gave me right person for  my true art sound .

In this six year  I were learned how to improve my vision of art and how to I express to me art sound in front side of world art family. In art , concept is  doing journey by form of art  in this art journey body is just like a tool so body or that’s journey is not important  for art journey but concept journey is very must for a creative artist or artist  vision. This definition is getting completeness  on facebook network , its giving space to creative concept and that concept is doing journey by web track in our world . so this facebook is a number one online network and today  Mr. Mark  Zuckerberg  facebook Designer is a number one designer of online communication  network  .

Yesterday I were received a message with a link of facebook movie  , it was posted by Mark and his facebook team . when I were watched  that link after click on my monitor screen  I was surprised , because facebook was created a movie on my facebook journey . that movie maker team was selected  some updates of myself that was collected from my facebook wall posts or updates of facebook. In short time they have expressed  my six years journey  in front side of myself , I saw where to I were started and where I am today on facebook , when I were watching to that short movie on my art work  my eyes were wet . I were went in deep feeling of  my heart and there I saw a big thanks for Mark and his team of facebook because they have touched  my deep heart by that short movie art work.

Kind  your information this year facebook have completed 10 years of facebook journey so team of facebook is gifting to all users a art movie from facebook .

As a family member of facebook I am wishing for Mark Zuckerberg and his very creative or a strong team , because without facebook I could not completed  my six years of art journey or I could not shared  my art concept with all world art family member in short time or I could not saved to my art energy or I could not expressed to myself easily in front  side of our world art family . it is true.

So I want to say thanks to Facebook or to Mr. Mark Zuckerberg .Here for  your visit I am going to share a link of that art movie  it was a gift to me  from Mark or his facebook team .

Here’s my Facebook movie. Find yours at https://facebook.com/lookback/#FacebookIs10

In this movie  you will feel to art vision of Mark and his team or  my six year art journey by visual art on facebook.

So here I said Movie on art journey..

Yogendra  kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA 

Sunday, February 9

Art Vibration - 280

UNDER LINE  TO MY ART

http://www.ionone.com/world.htm


Friend  someone working in our world for positive work by way of promotion to others . it is a very good thing or today it is very must  for creation of  peace and love in our world . we know some societies and NGO of our world are  working  in this way for promotion of  true work of our world .

We know our contemporary communication way is online  communication by this way we are connecting to our world in very short time . today its have a identity and we are calling to it web world . mostly all world is connect to this medium of communication for express or promotion . it is working in all sector of life , it is promoting  and expressing  to education, art, science ,business , or all subject of our life . people can get his or her interest level  subject on this web world . it is a good way for positive action or that’s success.

Last six years to I am connect to this online communication web world as a art master. I have registered myself on this web world as a visual art master , on this way I have expressed  my inner art sound and I have promoted to others art sound as a art master  time to time. Because it is my art duty for our world art family .

On this way someone are observing  continue to my art work and they are giving me space by promotional sound of them  in this web world . I know  in 2008 I were connected  to a online magazine that’s name is www.ionone.com , when I were connected  to this online magazine  I were shared  my first blog post  ( Art Vibration-1 ) of this art vibration . they were observed  to  my  true art sound in wrong English words .

Today 2014 they are connected to me and in this six years they were many time promoted to my art  by this online magazine  in our web world. I can say they have underline  to my art .

Last week once again I saw a update from www.ionone.com  on facebook.com they have shared a link  with title Art From Around The World , in that update link  I saw  they have selected  my art painting of MYSELF . I were   shared that  art painting  image,  in year 2008 with www.ionone.com . they have not forgot  my true art work or that’s true art sound . after 2008 I have shared many other art work  visuals with www.ionone.com but they have shared that first painting of  myself  like a underline work.

Here  I am going to share that update link of www.ionone.com  or a image of that update . I were collected that image from page of facebook .com. http://www.ionone.com/world.htm

in my heart I am once again thankful for team of online magazine www.ionone.com  . they are noticing  my art expressions or art visuals on online  and time to time they are promoting to my art sound by web magazine of www.ionone.com . it is a big achievement for me because my art  in underline of a world level online art magazine .

I hope this online art magazine will give  me more art energy by right art promotion of myself  art sound in front side of our world art family and I am promising to this online magazine or that’s team  I will live busy in art continue just like past because I want to create love and peace in our world by way of art just like your team of www.ionone.com .

 I am happy someone are  working and thinking  just like me in our world art family so I am with them as a art master of visuals art. I am happy they have underline to me or  my art work .

 so I said here underline to my art …

Yogendra Kumar Purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA

Thursday, February 6

Art Vibration - 279

COLLECTION OF FREE MOOD POETRY OF MYSELF IN
100 POEM’S

Me .........


Friends this is a very different post by me for  you . here  you will not see any art and drawing form but you will see  my inner art sound  or that’s visuals by poetry  language .  
Year 2011 to till 2014  I have expressed my inner sound  in poetry after art work , today I have one hundred poetry collection for  your reading or observation  on my free mood of expression in words or in literature form .

 I have not any boundary for  my free mood poetry . it is a talk to me , to  time , to life, or to  invisible space of our universe , some time I were went in critical mood , some time I were wrote to life or that’s relations , I have try to search to myself by way of poetry writing with my inner sound , it is not a one time or a one year poetry  it was came out by me on particular  time or condition of life, time to time  . I have used many languages of INDIA in this poetry writing work ,  like HINDI, RAJASTHANI, URDU, BRAJ BOLI ,or ENGLISH ..

 I think it is enough for your information about my free mood poetry and I think  you will feel it ,  after read  to my poetry on this post , so I have shared that all one hundred poetries collection  in a one blog post at here for  your reading . 


 १!!  Hey life you hard,
i am soft,my heart soft,
hey time you hard,
i am soft ,my heart soft,
hey struggle you hard ,
i am soft , my heart soft,
hey hope you hard,
i am soft , my heart soft,
hey pain you hard,
i am soft , my heart soft,
i feel fear to hardness because,
i am soft ,my heart soft,
i think i will loss to fear,
this is my softness..
because hey life you hard,
i am soft , my heart soft..


२ !! मै  बेतलब  होता  , तलब  के  लबालब  भरे  सागर  में  ,
तो  कोई  तकलीफ  न  होती  न  होती  कोई  चाहत  ,
अब  तलब  ये  है  की  बेतलब  होकर  ,
तैरूँ   मैं   इस  तलब  के  लबालब  भरे  सागर  मै ..!

३!! खबर  ये  है  की  मैं बेखबर  हूं  खबर  वालो  की  कायनात  में  ,
दरशल  ख़बर  मे ,   मै  हूं  उन  बेखबर  लोगो  की  कायनात  में ,....!

४ !! एक  पल  के  सुकून  के  लिए मै   दोड़   रहा  समय  की  रफ़्तार  पे ,
कौन जाने  ये  मृग   त्रिशणा   है  या  त्रिशणा   में   मृग  ,
अधना  सा  बिज  है  या  बिज  में   छिपा  कोई  विशाल  वृक्ष ,
अब  स्थिभ  सा  हो  जाना  चाहता  हूं  अपने  ही  कक्छ   में  ,
क्यों  की  जान  गया  हु  संसार  की  सारी  वेदनाओ   का  दर्द  छिपा  है  अश्क  में   ..

५ !! 1. जल  रही  थी  रूह  मेरी   उस  दिए  की  लो  की  तरह ,
जिस  दिए  का  तेल  किसी  नासमज  ने  उंदेल  दिया   हो  जमी  पर '
अब  ये   लो   सच्च में   जल  रही  मेरी  रूह  की  तरह  ....!

2. जल  रही  थी  रूह  मेरी  उस  दिए  की  लो  की  तरह ,
जिसे  भरोसा  था  की  तेल  भी  है  मेरे  दीप   भंडार  में
काल  की  ऐसी   बही   हवा  की  बुझी   लो   और  जली  मेरी  रूह  की  तरह ...!

3. जल  रही  थी  रूह   मेरी  उस  दिए  की  लो  की  तरह  ,
जिसे  कभी  जलाया  जाता  रहा  होगा  पाठशाला  में   रोशनी  के  लिए  ,
अब  बुझी   लो  जल  रही  है  इंतज़ार  में    मेरी  रूह  की  तरह  !!

६ !! हवा  बदली  ,
पते  बदले ,
बदला  पानी  का  मिजाज  रे
नहीं  बदले  तो  बस
 हम  नहीं  बदले  ,
अंतस  में   वाही  एक
सच्ची   प्यास  रे
अँधा  कहे  या  अब  ,
कोरा  इसे  विस्वास  रे
हवा  बदली ,
पते  बदले ,
बदला  पानी  का  मिजाज  रे ....

७ !! गुन गुना  रहा  हूं  शब्दों  को  खुद  से  खुद  को  भुलाने  को ,
मगर  अंतर  मै   तुम  खड़े  हो  एक  प्रशन  लेकर  ,की  कहा  हो  तुम  ?
मै  निर   उत्तर  ,शांत स्वर  से  कह  रहा  , वहीँ  खड़ा  हूं  जहाँ  हम  पहली  बार  मिले  थे  !
नहीं  थे  कोई  प्रश्न  मेरे  अंतर  मै  तुम्हारे  लिए  ,पर  यथार्थ  की   सतह  पर  हजारो  प्रश्न  किये  थे  मैंने  ,
तुम्हारा  हमेशा  की  तरह   वही  एक  मौन  उत्तर  भारी  रहता  था  मेरे  हजारो  प्रश्नों  पर ,
तुम्हारी  पथरायी  आँखों  मे मैंने   जीवन  को  स्पंदन के  लिए  तड़पते   देखा  था  , वो  सत्य  ही  था ,
 जब  खीज  किसी  और  की  तुम  मुझ   पर  निकालते  थे  , वो  मुझे  तनिक  भी  पीड  नहीं  देता  था  ,
मौन   होकर  सुनता   रहता  था  मै  तुम्हारी  सारी  खीज   जो  मुझ   पर  उत्तार  ते  थे  तुम , जब  तुम  बोलते  थे  ,
जानता  था  मै  की  पथराई  आँखे  खीज  के  बहाने  मुझसे  संवाद  कर  रही  है , स्पंदन  के  लिए  और  मै  मौन !
मेरा  हर  प्रशन  एक  अटकल  ही   होता  था  तुम्हारी  पथरायी  आँखों  मे  जीवन  का  स्पंदन  भरने  का  ,
कितना  सफल  था  और  कितना  असफल  ये  राज  ही  रहा  तुम्हारे  विराट  मौन  मे  i
तुम्हारे  उस  विराट मौन  को  , मै  तुम्हारे  हजारों  शब्दों   को सुनने  के  बाद  भी  तोड़  नहीं  पाया  था  ,
और  आज ........गुन  गुना  रहा  हूं  शब्दों  को  खुद   से  खुद  को  भुलाने  को ........!

८ !! जुस्तजू  ऐ  जिन्दगी
(1)
फन  को  तराशने  में   लगा  हूँ,
मंजिल को  तलाशने  में   लगा  हूँ,
फासले  दोनों  के  दर्मिया  है ,
उन  फसलों   को  कम   करने  में  लगा  हूं...!

(2)
जो  चल  रहा  वो  बेहाल  है ,
जो  नहीं  चल  रहा  वो  बदहाल  है ,
यही  तो  समय  का  अंदाजे  कमाल  है ,
यूँ  तो  जिन्दा  है  कहने  को  हम ,मगर  रूह  अपनी  बेजान   है ...!

(3)
अंदाजे  गुफ्तगू  अपना  कुछ  एसा  है ,
की  हर  लब्ज   से  नज्म  गुजरती  है ,
वे  सहादत  करते  है  किस्मत  की ,
यहाँ किस्मत इबादत करती है !

९ !! 1.मैंने इबादत में  मुहोबत को नहीं माँगा कभी ,
जब भी सोचा मुहोबत को तो उसमे खुदा को ही पाया !

2.यही मेरी खूबी है जो खुदाने मुझे बक्सी है !
मैं  तो हूँ इन्सान पर मेरी रूह मनो एक पक्षी है

3.भीतर इन्सान नहीं बसते रूह बस्ती है,
इंसानों की अब मिलती कहा हस्ती है !

१० !! दिल  नहीं  होते  जुनून  ऐ  जिन्दगी  वालो  के ,
जिसे  पत्थर  भी  सलाम  करे  एसा  दिल  है  अपना ...!

११ !! बुनते  है  लोग  शब्दों   से  तानाबाना  ,
जिघर  के  ये  अल्फाज  एक  नज्म  को  काफी  है ...!

१२ !! बे  हाल   है  इस  कदर , की  क्या  जिक्र  करे ,
हालात  ऐसे   है  कुछ  की,  अब  जियें   या  मरे...?

१३ !! एहसास जिन्दा है मानो इस धरती पर अभी इन्सान जिन्दा  है !
वरना पत्थर तो हर जगह हर मोड़ पर खड़े है.....!

१४ !! जय  हिंद  का  है  ये  यस गान !
जहाँ   हिन्दू  मस्जिद  धोके  और  मुस्लिम  पढ़े पुराण ... !

१५ !! पता  नहीं  कितने  रंग  है जिन्दगी  में   देखने बाकी,
इस  बात  का  इल्म  करादो  मुझे  ऐ  साकी ... !

१६ !! कतरा कतरा करके जो पाया हमने तो क्या पाया ,
और कतरा कतरा करके जो दिया किसी ने तो फिर क्या दिया !

१७ !! हम  भटक  रहे  विचारों   के  जंगल   मे ,
वो  खड़े  है  दूर  कहीं   एक  वीराने  मे .....!

१८ !! आस्तीनों  के  सापो  से   पाला  पड़ता  रहा  उम्रभर ,
अब  जहर  भी  बे असर  हो  रहा  इस  जिस्म  पर ...!

१९ !! रह नुमाई पर जीना यूँ गवारा नहीं मुझे ,
जिदो जहद ये फ़क्त दिले आजादी की है ......!

२० !! सोये हो तुम कहीं  एकांत के सरोवर में  ,
लड़ रहे हैं  हम यहाँ जीवन की भवर में  ..!

२१ !! तनाव बढ़ जाता है ज़माने के दबाव से ,
दर्द बाहर आता है अश्कों  की धार से !!
जीवन रुक जाता है समय की मार से  ,
इश्वर भी झुक जाता है भक्त की पुकार से ....!!

२२ !! हम में  है चमक तो पतंगे खिचे चले आयेंगे,
 कब तक छुपायेगा अँधेरा  हमें,
एक दिन अँधेरे को भी उजाला दे जायेंगे.....!

२३ !! लिखते है शब्द उम्र भर हम यहाँ ,
एक मौन  है जो सारे शब्द ले जाती वहाँ ..!

२४ !! अंतर आत्मा के तार एक ही सुर में  कसे हुए है
मज़बूरी ये की अलग अलग साज ममें  फसे हुए है ...!

२५ !! दिलो को जोडती है ये तकनीकिया ,
दिलो को तोडती है ये समय की पाबंदिया ....!

२६ !! बहुत कुछ पालिया हमने कुछ चंद रोज में  ,
लोग जिन्दगियाँ  खपा देते दुनिया की खोज में  !

२७ !! people are running , I am walking,
people are laughing , i am joking ,
people are writing , i am reading,
people are eating , i am on dieting ,
people are fighting , i am peace liking ,
people are taking , i am giving ,
people are flying , i am braking ,
people are jumping , i am pumping ,
people are talking , i am hearing ,
people are going , i am coming
people are saying ,i am silence..silence silence ,,,,ha

  २८ !! नहीं रंजो गम मेरे पास किसी और को देने  के खातिर  ,
आदत अपनी ही बिगड़ी हुई है की हर पराया दर्द अपना लेते  हैं  !

२९ !! दो घड़ी  सुकून मिलता है तेरी गुफ्तगू से ,
वरना ऐ मोला कौन  जुदा है जिन्दगी की जुस्त जू  से ...!

३० !! कब्र ए मुहोबत पर आज  दो अश्क बहाए हमने ,
एक दिले आह से निकला तो एक खुदाई  रूह से ..!

३१ !! यहाँ बात रूहों की है , दिल तो रोज पैदा होते और मरते हैं ,
रूहानी रिश्ते के दर्मिया कोई फासला नहीं , कोई दिन नहीं , कोई रात नहीं .....!

३२ !! बाहर तूफान आरहा है भयंकर सा भीतर भूचाल चल रहा है भयंकर सा,
दो नो रूप माटी के एक हवा संग चल रहा एक विचारो संग.............!

३३ !! राजस्थानी अनुवाद मधुशाला  का लिंक ये है !  http://yogendra-art.blogspot.in/2013/08/art-vibration-177.html

३४ !! .बंदिश बे वजह की बर्दाश्त नहीं होती ,
कलाकार की किस्मत किसी की गुलाम नहीं होती !!

३५ !!  कुछ बात है आप मे की गजल खुद बा खुद बनती है ,
नज़्म लिखते होंगे वो यहाँ शायरी खुद बा खुद टपकती है !

३६ !!  1 उकेरने मे पढ़ना पीछे छुट गया ,
जो संजोया था सपना वो पल मे टूट गया !

2 .शब्द नहीं उल्जा सके मुझे भाव पकड ने जाता हूँ ,
भाव पकड़ते ही फिर फिर मै शब्दों मे फस जाता हूँ !!

३७ !! क्यों लगता है की अब भी कुछ है पिने को और  बाकी ,
वो  पिलाएगी और अभी , होने के बाद ख़त्म, साकी !

३८ !! जिसके पास आँख है वो कला का पारखी ,
जिसके पास कान है वो संगीत का पारखी ,
जिसके पास दिल है वो प्रेम का पारखी ,
जिसके पास विश्वास है वो धेर्य का पारखी ,
जिसके पास सृजन  है वो मेरा पारखी !!

३९ !! बहुत दिनों बाद आज मैंने मेरी  कर्म स्थली से बुवारी निकाली ,
तो निकली  उसमे कुछ रेत की  रंजी , तो कुछ छुतरे पेन्सिल के ,
कुछ तनाव से  उखड़े सिर के बाल,   कुछ रबड़ से  मिटाई कागज की कालिख ,
दरसल वो मेरे सृजन  का अर्क है , जो मेरी कर्म स्थली पर अक्सर जमा होता है ,
 जब मै निकालता हूँ  बुआरी मेरी कर्म स्थली की, बस यही दीखता है मुझे  मेरा सृजन   'अर्क '!

४० !! गंतव्य के लिए निकला मन मे मंतव्य लिए ,
मंतव्य से चला जा रहा गंतव्य के पथ पर ,
इस मंतव्य से की मिले गा मुझे मेरा गंतव्य  वो ,
जो मैंने   मेरे मंतव्य मे  बनाया है गंतव्य  के लिए ,
हकीकत मे कैसा  होगा गंतव्य मेरे मंतव्य  का नहीं पता ,
पर मंतव्य के गंतव्य की खातिर चला जारहा हूँ अनदेखे गंतव्य पथ पर !

४१ !! सर . रविन्द्र नाथ ठाकुर की काव्य रचना " एकला चलो रे " का राजस्थानी मे अनुवाद का एक  प्रयास !
थारी आवाज माथे जे कोई नई आवे तो थू चाल एक्लो रे
फेर चाल एक्लो , चाल एक्लो ,  चाल एक्लो ,  चाल एक्लो  रे
ओ थू   चाल एक्लो ,  चाल एक्लो ,  चाल एक्लो ,  चाल एक्लो रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू  फेर चाल एक्लो रे
फेर चाल एक्लो , चाल एक्लो ,  चाल एक्लो ,  चाल एक्लो  रे
जे कोई नई बतलावे  और  ओ रे ओ करमफूटोडा  चाल एक्लो  रे
जे सगला मुंडो फेर रिया सगला डर करे
जने डरिय बिना ओ थू खुले गले सु थारी बात  बोल एक्लो रे
ओ थू खुले गले सु थारी बात  बोल एक्लो रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू  फेर चाल एक्लो रे
जे  पाछा सगळा  भूग्या और ओ रे ओ करम फूटोडा पाछा सगळा भूग्या
जे रात गेरी चलती ने कोई ध्यान  नई करे
जड़ मारग रे काँटा  ओ थू लोई सु लिथड़ीजियोड़े पगथ्लिया रा तला एक्ला रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू  फेर चाल एक्लो रे
जे दियो नई जगे और ओ रे करमफुटोडा दियो ना जगे
जे बादलवाई ऑंधी रात मे किवाड़ बंद सगळा करे
जद सेतिर सी चोटी सु थू  कालजे रा पंजर चला और चाल एक्लो रे
और थू कालजे रा पंजर चला और चाल एक्लो रे
थारी बोली सागे जे कोई नि आवे तो थू  फेर चाल एक्लो रे
फेर चाल एक्लो , चाल एक्लो ,  चाल एक्लो ,  चाल एक्लो  रे
ओ थू   चाल एक्लो ,  चाल एक्लो ,  चाल एक्लो ,  चाल एक्लो रे !

४२ !!  मित्रो आज मन बहुत खिन है,
गृह नक्षत्रो की दिशा भिन्न  भिन्न  है ,
मन मे अजीब सी उल्जन है ,
जानू कैसे की समय क्यों कठिन है ,
मित्रो आज मन बहुत खिन है .....!

४३ !! दो जहाँ के बिच से गुजर रही मेरी जिन्दगी , ये  यूँ ,
एक जहाँ खिचता है मुझे , अंधकार से प्रकाश की ओर!
दूजा जहाँ जहा प्रकाश अपार फिर भी, दिखे अन्धकार !!
एक जहाँ ,जो मौन मे भी गूंज का आभास कराती है !
दूजा जहाँ ,जहां  अंधे शोर से मेरी रूह काँप  जाती है !!
एक जहाँ रंग की  ठंडी बरसात मे भिगो रहा, है मुझे !
दूजा जहाँ जहां सूखे की आग मे तपा रहा ,नित मुझे !!
एक जहाँ यह  कह रहा, ये संसार मिले हरबार तुझे !
दूजा जहाँ यह कह रहा, तेरे संसार मे फिर मै मिलु तुझे !!
 इस तरह , दो जहाँ के बिच से गुजर रही मेरी जिन्दगी , ये  यूँ ,.....?

४४ !! क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
झूठ यहाँ बिक रहा ,
ख़रीदे  लोग भर भर थेला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
लालच का यहाँ पहरा ,
लोभी घुमे बनकर भोला  !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
सेंध लगाये चोर यहाँ ,
लुटता रोज इमान वाला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
छल की बहती धार  ,
न्याय  ढुंढे अपना निवाला  !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
बैर का समंदर बना ,
सुखा प्रीत का वो प्याला  !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
ज्ञान हो रहा काला ,
अज्ञानियों का बोला बाला !
 क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
जो भी रहा यहाँ डटा ,
भीतर से  कटा फटा मिला  !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
संजोया जिसने सपना ,
जलाया खून उसने अकेला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
इन्सान मोहरा बना  ,
ये समय शतरंज सा खेला !  
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !
 चेन भी छीना उसका ,
जो रहा हमेशा ही अबोला !
क्या गुरु क्या चेला ,
माया का लगा यहाँ मेला !

४५ !! अभिमन्यु  हो  गया  हूँ  , इस  कालचक्र  की  धारा  मे,
कमजोरो  से  जीत  जीतकर,   फिर  भी आज  हारा  मैं  !

४६ !! हिमालय से ,अब तृप्त हो पाऊंगा मै,
पाकर,सब खुद को न खो पाऊंगा  मै ,
बिज प्रेम का हरपल बोता रहूँगा  मै  ,
खुशियों के रोज सरोवर खोदुँगा मै ,
उत्साह की दरिया नित बहाऊंगा मै ,
गमो का  वो समंदर पि जाऊँगा मै ,
हिमालय से ,अब तृप्त हो पाऊंगा मै !

४७ !! खो दिया उसे जो, था ,
एसा विस्वास मेरा !
पर जिसे खोया वो , था ,
अंध विस्वास मेरा !!

४८ !! आज रोया मै ,निज भगवान् को ,
आज रोया मै ,मेरे जड़ ज्ञान को ,
आज रोया मै ,तेरे अभिमान को ,
आज रोया मै ,इस माया संसार को .,
आज रोया मै , उस झूठी पहचान को ,
आज रोया मै ,तुझ पत्थर धनवान को ,
आज रोया मै , अपने अमिट पाप को ,
आज रोया मै ,.ऐसे अंधे विस्वास को .
आज रोया मै , निज भगवान् को ...!



४९ !! कहीं जीवन अपना काम करता सा नजर आ रहा ,
कहीं समय भी रुका सा नजर आ रहा !
कौन समझता है उस पल को ,
जो सामने होते  हुए भी, सामने नहीं आ रहा !

५० !! रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा,
काहे मोहे इतनो रंगियो ,
अब कोई  रंग चढ़े ना दूजो ,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
लाल , कालो रंगीयो, रंगीयो धोलो रे तू ,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
ईत रंगीयो रंग मोहे , कित जाऊं  छिटकावन को,
जित जाऊं उत तू ही तू है ओ रे रंग  रेजवा,
 रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
तोरे रंग  मे तुलसी रंगीयो .और रंगीयो कबीरा रे ,
काहे ओ रंग मोपे डालो ओ रे रंग रेजवा ,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!
जीवन को सारो रंग छूटे ,न छूटे रंग तोरो ,
तोरे रंग मे कारो भी दिखे सब को गोरो रे,
रंग रेजवा ....ओ रंग रेजवा....!

५१ !! बरसात - १

तुम्हारी बहुत आती है याद, इस बरसात मे ,
हर बूंद मेरी अश्क , इस बरसात मे ,
कड़कती बिजलियाँ आहें , इस बरसात मे ,
रोके राह बदली घटा घोर ,  इस बरसात मे ,
ढूँढू मै तुजे केसे  यहाँ ,  इस बरसात मे ,
तरसु साथ को तेरे मै ,  इस बरसात मे ,
अकेला चलू कितनी दूर ,  इस बरसात मे ,
नहीं तेरा हाथ मेरे साथ ,  इस बरसात मे ,
बहुत तनहा हूँ मै आज ,  इस बरसात मे ,
होगा कब मिलन  तुमसे ,  इस बरसात मे ,
गुजर जाएगा ये वक़्त भी ,  इस बरसात मे ,
तुम्हारी बहुत आती है याद, इस बरसात मे !

बरसात - २
वो बरसे बड़ी मुदत के बाद  आज कुछ एसे ,
क्या गुजरी हम पे  ये कोई समंदर से पूछे  !!

बरसात - ३

बूंद टपकी आसमान से जमीन पर ऐसे ,
नुरे हुर की झलक पायी हो हमने जैसे  ,
ये खुदा की क़यामत है जमीन वालो पे  ,
जो बरसती बूंद से खोया नूर पा जाते है !

५२ !! अजीब दास्ताँ  है ये इस जहां की ,
जिसको  हम समझ पाते नहीं क्यूँ ?
जो कभी मिलते नहीं हकीकत मे ,
वो ख्वाब मे अक्सर आते है क्यूँ ? !

५३ !! " सच्च  "
सच्च ये  की मुझे सच्च चाहिए ,
सच्च ये की सच्च को सच्च चाहिए ,
सच्च  ये की सच्च की पनाह चाहिए ,
सच्च  ये भी की सच्च को भी पनाह चाहिए ,
सच्च  ये भी की झूठ को भी सच्च चाहिए ,
सच्च  ये भी की झूठ को भी सच्च की पनाह चाहिए ,
सच्च  ये है की झूठ भी तो एक सच्च है ,
सच्च ये भी है की झूठ मे भी एक सच्च  है ,
सच्च  ये भी है की सच्च भी एक झूठा सच्च  है ,
सच्च  ये भी है की झूठा सच्च  भी सच्चा सच्च है !!

५४ !! बरसात का बरसना रुकना फिर बरसना ,
यह खेल ही तो है प्रकृति का जीवन से ,
इस जीवन मे कितने प्राकृत और अप्राकृत खेल,
खेल रही है जिन्दगी बस खेल ....!

५५ !! मेरा कविता लिखने जाना कागज पर ,
और आसमान से गिरना बरसात की बूंद ,
बिखरना पानी का कागज पर जैसे  ही ,
कलम की स्याही भी साथ बिखरी ,
मेरी कविता की अभिव्यक्ति अब -
चित्र के रूप मे बदली प्राकृत ढंग से ...!

५६ !! आज मन फिर उदास है ,
जाने क्यूँ लगी प्यास है ,
मौन भी आज आवाज है ,
समय क्यूँ यूँ नाराज है ,
आज मन फिर उदास है !


५७ !! थक  मत ,
आगे  चल,
 चलता  चल,
 पथिक  तेरे,
 साये  मे, है  !

५८ !! सफ़र मे, मै, बस के, देख रहा दो , द्रश्य ,
एक  भीतर का और एक बाहर का  ,
भीतर शोर अथाक, बाहर गहरा मौन ,
दोनों द्रश्य प्रक्रति के ठोस सतरूप ,
मै, मेरा निज ,तराजू  के कांटे की तरह,
जिसे स्व से स्थिर करता सा उन दो द्रश्यो के बिच ...!

५९ !! रंगों  के इस माहौल  मे मन की तापातोडी है  ,
समय भरा भवसागर सा,ये जिन्दगी थोड़ी है ..!

६० !! वो अक्सर बतियाते थे,  हम से ,
आज एकदम से, मौन क्यूँ ?
वो बिना कहे सब, समझते थे ,
आज ये, ना समझी क्यूँ ?
वो अँधेरे मे, चिराग की रौशनी थे ,
आज बुजा सा,काला अँधेरा क्यूँ ?
 वो मतवाले, मन मौजी  ही थे ,
आज मायूसी की , चादर मे क्यूँ ?
वो खुशियों का , अथाक सागर थे ,
आज सुखा सा,  बने  ताल क्यूँ ?
वो रहते सदा , संग - संग मेरे ,
आज हुए जुदा -जुदा, यूँ क्यूँ ?
वो अक्सर बतियाते, थे हम से ,
आज एकदम से, मौन क्यूँ ....?

 ६१ !! किस से बतियाऊं ,कैसे  बतियाऊं ,
 कौन  सुने मेरे अंतर की ,
भवसागर सा भूचाल मचा है,
क्या सहस संभालेगा कोई ,
वेदनाओं के बाण चुभे है ,
चलाये  इन्हें खुद अपनों ने ही ,
रिस रहा रक्त जीन  अश्क मे,
क्या देख पायेगा इसको कोई ,
नहीं ठोड कोई मेरी पीड़ा का ,
न धरती न आकाश कोई ,
कैसा ये अति  भार है मन पर ,
जान  न पाया अब तक कोई ,
किस से बतियाऊं , कैसे  बतियाऊं ,
 कौन  सुने मेरे अंतर की ........!

६२ !! कौन मिलता है इस ज़मी और आसमान में ,
बस रूह से रूह मिलती है,इस कायनात में ,
तालुकात जिस्मो के नहीं है इस संसार में ,
जंजीरे जकड़ी है तहजीब की इस गुलजार में ...!

६३ !! क्या  सुनाऊं  मै  आज  आपको  ,
देख  रहा  हूँ  आइने  मे  जैसे  अपने  आप को  !

६४ !! बिना ध्वनि के अंतर ध्वनि को झकझोर देते हैं ,
कवि वो होते हैं  जो बिना बोले मन मे गुंजन भरते  हैं..!

६५ !! अर्ज किया है की वो आये तबसुम मे कुछ अर्ज करने को ,
बोले कम्बखत मर्ज ये है की आज कल कुछ याद नहीं रहता ...!

६६ !! हम  बे  खबर   हो  रखे  है  खुद  से ,
एक  वो  है  जो शहर  की  खबर  पूछे  है !

६७ !! जमी मुहौबत की  दिल  ही होती है ,
न जाने ये दुनिया जमीं के लिए , क्यों मुहौबत खोती  है .!

६८ !! आप के लब्ज जिगर का आइना होते है,
जिसमे हम अपनी शक्ल  को खोजा करते है !!

६९ !! मुक्त - बंधन
जो बंधा है अंतरंग तारो से , वो बंधन है ,
उन तारो की  स्वछंद स्वर गूंज, वो मुक्त है ,
जो प्रतिबधता में जकड़ी है , वो बंधन है ,
उस प्रतिबधता की खुली कड़ी , वो मुक्त है ,
रूहानी रिश्ते बने है जो यहाँ , वो बंधन है ,
इन रिश्तो में जिस्मो का मेल कहा ,वो मुक्त है ,
जीवन में  चलता सम नित  ये मुक्त -  बंधन है ...!

७० !! ना दावत दो यूँ दागे,दामन  को इस कदर ,
ये ना छोड़ेंगे साथ, कफ़न तक हमारा ..!

७१ !! पद चिन्ह  जो देखे हमने  उस राह के , सोचा ,
चलने वाले को  बे मंजिल, इस राह  की खबर ना थी !

७२ !! किया बे आबरू उस मासूम को हरकते हवस ने  तेरी ,
 डाली लोहे की रोड वहा ,जहा से ये जनत तुजे मिली ,
जहनुम भी खुदा तुजे न  बक्षेगा ओ बे रहम दरिन्दे ,
ये हरकत तेरी किसी ना  मर्द सी बनाती  है तुजे ,
हवस के अंधे तूने देश को हवस की भूख से लजा दिया  ,
तेरी तहजीब में दरिंदगी की काली छाया ने हमें  रुला दिया ,
शर्म से मर गए होंगे तुजे पैदा करने वाले वो माँ बाप ,
जिनको तूने अपने कर्मो से ये ताउम्र का कालिख दिला दिया ,
किया बे आबरू उस मासूम को हरकते हवस ने  तेरी ........!

७३ !! सोच की तर्ज  एक है , दिल की मर्ज एक है ,
रुहें  दो अलग अलग , मगर मंजिल एक है  !

७४ !! माँ
माँ कोई शब्द नहीं जिसे  मै पढ्लू   ,
माँ कोई राग नहीं जिसे   मै गा लू ,
माँ कोई संगीत नहीं जिसे  वाद्य पे गुन्झा लू ,
माँ कोई न्रत्य नहीं जिसे  अंग भंगिमा से अभिव्यक्त कर लू ,
माँ कोई चित्र नहीं जिसे  रेखाओं से उकेर लू ,
माँ मेरे अहसासों में है , मेरी इन जिन्दा सांसों में है ,
और तब तक है जब तक है मेरी ये जिन्दा सांसे ...!

७५ !! हालात ने जकड लिया आज यूँ इस कदर हमें ,
बहुत  चीखे तड़प में हम, क्या सुनाई दिया तुम्हे ?
कहते है रूहानी रिश्ते कई जन्मो में  मिलते है हमें  ,
फिर इस जनम में वो रिश्ता ,मिला क्यूँ नहीं तुम्हे ?
कहने को जिन्दगी में  यूँ तो बहुत से  है दर्द  हमें ,
गमे  दिलखाख होने की ,अब क्या खबर देवे तुम्हे ?
जनाजे जिस्मानी गुजरते राह पे दिखे है अक्सर हमें ,
जनाजाये अरमा हर सांस पे गुजरे है ,तो क्या कहे तुम्हे ?
हालात ने जकड लिया आज यूँ इस कदर हमें ,
बहुत  चीखे तड़प में हम, क्या सुनाई दिया तुम्हे ?

७६ !! मैंने समय को खोया है , या समय को पाया है ?
ये खेल समय का अब तक समझ नहीं आया है ?
किसी ने थोड़े में बहुत तो,किसी ने बहुत में थोडा ही पाया है ?
कहते है  ये सारा जगत संसार इस समय में  समाया है ?
फिर भी ऐ दुनिया वालो ,मुझे क्यों एसा भ्रम  लगता है ?
मैंने समय को खोया है , या समय को पाया है ?

७७ !! बहुत कर लिया सफ़र मैंने शब्द रेखाओं से ,
मगर वो मुकाम मुझ से ,अब भी दूर ही रहा ,
मीर ग़ालिब भी इस सफ़र में जिसे पा न सके,
जफ़र मिलकर भी सब से ,उस से न  मिल सके ,
कौन समझे  ये दिले हाल,  मेरे इस सफ़र का ,
जिस सफ़र में मिरे - जफ़र भी कब्रे खाक हुए !

७८ !! सब्र बेसब्र हो रहा है क्यूँ कौन  समझाएगा  मुझे ,
वो है जो दूर, उसे से , कौन अब  मिलायेगा  मुझे ,
जिसके खातिर हु जिन्दा,  वो क्या जानेगा मुझे ,
जो जान के भी अनजान है, वो क्या मानेगा मुझे ,
सब्र बेसब्र हो रहा है क्यूँ ,कौन  समझाएगा  मुझे ,

७९ !! इस इन्तजार में हूँ की जिन्दगी करवट तो बदले ,
क्या पता उस तरफ  इस  दर्द का अहसास कम हो !

८० !! अगर है तू ,ऐ खुदा तो ,अपनी मौजूदगी दर्ज करा ,
भरोसे के इस सफ़र के , रास्ते भी ,भरोसो पर है ,
गुजर गया जो वक़्त , बे तरतीब से, वेसा क्यों रहा ,
अगर है तू ,ऐ खुदा तो, अपनी मौजूदगी दर्ज करा ,
गिले शिकवे करू, किससे,  कोई ऐसा  पैमाना बता ,
अंजानो को , जानू कैसे , कोई  तरकीब  मुझे सुझा ,
अगर है तू ,ऐ खुदा तो ,अपनी मौजूदगी दर्ज करा ,
रिश्ते जो कहते है , वो की , तेरी रहमत की देन है ,
फिर रहमत में तेरी,  क्या कसर , की दरारे लहू है ,
अगर है तू ,ऐ खुदा तो ,अपनी मौजूदगी दर्ज करा !

८१ !! मेरा मुकदर बिखरा है इस कदर ,की इसे समेटू कैसे ,
 तू ने थमाई भी है, जो चादर ऐसी, की वो जालीदार है !

८२ !! कब तक भरोगे शब्दों की गजल से , इन तनहा कागजों को, ऐ ग़ालिब ,
यहाँ हालात ये है कि, दिले हाल इन पत्थरों ने  ,सुनना बंद कर दिया !

८३ !! हमने अभी तक लिखा ही कहाँ है ,कि  कोई पढ़ सके,
 जो हमें पढ़ लेते है उनके लिए ये अहसास काफी है !

८४ !! हर दिन नया , हर सांस नयी है ,
जीवन की हर आस नयी है ,
हर पल की वो प्यास नयी है ,
धुप छाँव की रास नयी है ,
मत पूछो क्या खास नहीं है ,
हम पर क्या विश्वास  नहीं है ,
हर दिन नया , हर सांस नयी है !

८५ !! वो बेचते है हमारे नाम से जलालत के बाजार में ,
हम तो बिकते रहे खाम खां , वो मुनाफ़ा खाते रहे !

८६ !! भागे तो भगवान भी ,जब काल हुआ विद्रूप ,
ये धुप छाँव आती रहे , यही जीवन का रूप !

८७ !! हम तो खोये इस कदर . की भूले दिन और रात ,
आज तक  बस जी रहे , वो गुफ्तगू के लम्हात !

८८ !!  सफ़र जारी है मुकाम ऐ अंजाम तक, मुसाफिर का ,
थकना, रुकना और झुकना ये नसीब कहा सफ़र का  !

८९ !!  दिखत में जो दूर लगे , नहीं किनारे वो दूर ,
   डुब के दरिया में दिखे , प्रेम को साचो रूप !

९० !! दुनिया दारी ऐसी है,  कि मन को देवे घाव ,
 सृजन ऐसी धार है, जो मन को देवे तार !

९१ !!  युग  युगों तक फिरते फिरे, फिर भी रहे ये अहसान ,
अहसान उतारना है नहीं , इतना यूँ आसान !

९२ !! ज्ञानी जिन्जोड़ दे , पकड़ समय के कान ,
सब छुटे ते रब मिले , योहि साचो ज्ञान !

९३ !! नाराजगी हल नहीं जिन्दगी का ,
पीना  भी रस्ता नहीं इस जिन्दगी का ,
सोये वे अक्सर जो थके इस जिन्दगी के सफ़र में ,
राही वही  मंजिल पाता  है जो बस चलता जाता है, चलता जाता है , चलता जाता है !

९४ !! वो मशरूफ  है गमे  बाजार में , फ़िक्र खरीदने कि  करे है ,
बेचे है कफ़न ओरो के खातिर, खुद के दफ़न होने से डरे है !

९५ !! कोई बाज़ार   होता , तो  हमसफ़र खरीद लेता वहाँ से ,
खुदा ने जनत तो  बनायी,  पर हुस्ने नूर का बाज़ार न बनाया !

९६ !! अजब खेल है तेरी कायनात का ऐ मेरे परवर दिगार ,
 जो उम्रभर रहे तकरार  में, वही ख्वाब में कदम चूमे है !

९७ !! रिस्तों का टूटना ,या जुड़ना एक संयोग ही तो है ,
रिस्तों का होकर भी न होना एक वियोग ही तो है ,
रिस्तों का अकाट्य जाल जीवन पर एक बोझ ही तो है ,
रिस्तों का निरंतर निभाव बस एक प्रेम कि खोज ही तो है !

९८ !! YOU FRIENDS ARE
you friends are my power,
you friends are my trust,
you friends are  my vision,
you friends are  my region ,
you friends are  my dedication ,
you friends are my passion ,
you friends are  my teacher ,
you friends are  my feature ,
you friends are  my voice ,
you friends are  my choice ,
you friends are  my aim ,
you friends are  my game ,
you friends are  my promoter ,
you friends are  my observer ,
you friends are  my way ,
you friends are  my day ,
you friends are  my light ,
you friends are  my right ,
 you friends  are  my love ,
you friends are  my  wow ,
 you friends are  my relax ,
you friends are my thanks ,
without  you my friends i am nothing ,
when  you with me then i am feeling  everything. ha ha ha :)
you friends are ...

९९ !! हम इबादत करते करते थक  ही गए ऐ मौला ,
वो हर  इबादत के बाद एक और इबादत कि मांग करे है  !

१०० !! वे अपने हाथों से मीठा जहर ( तमाकू) खिला रहे दोस्तों को ,
और फ़िक्रे यारी में, हो उनकी लम्बी उम्र  ,ये  दुआ करे है !




I sure this 100 poetries  of myself  free mood poetry have expressed some more inner sound  in front side of  yours by way of Literature performance of myself  writing and  you have  know  me more better as a world art family member by this free mood poetry of Myself .


So I said here about this post , collection of free mood poetry of Myself  in  100 poem’s

Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA