Sunday, May 18

Art Vibration - 309



My Critical Point Of View On Discussion Of  Literature


 Title design by me for Teacher Today, Education  Literature
Friends  my city literature  persons are  live busy  in literature publication or in discussion on literature . In culture of Indian literature , my city is very close to West Bengal . we know Bengal is very rich in art and literature  in INDIA  or Bikaner is a center of literature or that’s promotion in  Rajasthan.  it is true and all literature persons of INDIA are accepting it very proudly .so  my thanks to them .

Here  you can ask to me , I am master of Art and I am talking about literature ,  but why ?  so  my dear friends  I want to tell  you all kind of  art and literature or other activity of presentation of concept have inter relation or that’s base is emotion , emotion or emotion . so in  my view art and literature is same,  here difference is,  that’s presentation way . one is come out from creator  by text writing or other are coming out ion form of creation by other activity like painting, craft, dance, singing ,acting or ETC. 

In My city some literature persons are knowing  to my inner sound very well as a seniors . so they are invite to me in event of literature as a listener . if I have interest in collection of knowledge from every side of our environment or culture . so I am joining them time to time and that  literature event is creating more sense  in me about culture of literature or that’s right nature. 

In result of this literature culture , I got from me a book in Rajasthani Language  with 365 text photo image , on this  art vibration blog I have shared with  you that’s creation or writing story in past with title  365 text photography .  Last six years  to  I am continue writing reply by me on Dr. Amitabh bachchan blog  and on facebook I have shared unlimited  short notes and reports of literature activity of  my city in HINDI . I have wrote 105 something poetries in Hindi  .its all literature matter is update on facebook or on Dr. Amitabh Bachchan Sir blog . 

For a strong example here I want to share a critical story by my Hindi note . In  this year a social society  Mukti Sansthan Bikaner was started  discussion on writer book . Every month they are selecting a writer and his/her  book for discussion . last five months to they are busy in this literature activity and in this live activity of literature they are inviting me for listen to that live literature discussion . 

 Nobel Prize Winner  Sir Ravindra Nath Thakur  INDIA
But as a creator  I know after creation,  discussion have no space for any creation  and creation is a live operation of vision of writer by his /herself writing skill or presentation . no one can touch to condition of emotion of writers  or that’s presentation motion . Actually a literature person  and a artist live in same condition of vision . they want to get freedom from his/her  inner presser of unconsciousness .  in literature it is come out in form of poetry. Article . Story. Short story, folk story , song writing , play writing or cinema script  writing . it is tool of writer  for  freedom of  inner sound . it is true or it is definition of literature & art . For a example I can share a name of literature person Nobel Prize winner Sir Ravindra Nath Thakur , his literature was come out by true inner sound in  his own language and his language was tool for him , that was writing and painting too. 

Today in news paper,  I have read to a art news . in that news great art master Satish Gujral have shared  his past life  view with reporter of Rajasthan Patrika News paper and that report has wrote for Artist Satish Gujral  A writer cum painter Sir Satish Gujral . it is second example of  my talk .

Friend today I were joined to fifth number literature discussion of Mukti Sansthan ( NGO ) . I were there in critical mood because many writers were pulling lag of writer by his writing work they are noticing and pointing to mistakes of writer  but in  my view that is a pure literature work by him on a movement , he was registered  his true emotions in a particular  time motion of his life . I have defined  it in my Hindi Note of today s literature discussion . 

The duty of literature reader ,  he read to writers  emotion conditions and know to inner sound of writers that’s all . A reader have no permit for judge to writer because time have judge to writer for writing  on our earth or in our time . may be time can select to  you for this tuff job of inner sound presentation by activity of writing and art  in next . so  you literature reader get ready for this time judgment . time can judge and change anything in life , I have noticed it because I am also example of it ..ha ha..

So my friends I am going to share a Hindi note copy for  your  notice about  my view on literature discussion . I have wrote it today after join to literature discussion at Mukti Sansthan Bikaner. ( I hope  you will translate it by good translation system on online very well  )

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10202718534379151&set=a.1159622585403.2025211.1072945182&type=1&theater
  मित्रों * बिना क़तर ब्योंत * ये शीर्षक दिया था, मेरे लिखे साहित्य गतिविधि के लघु समीक्षा व् आलेख को साहित्यकार मित्र ऑनलाइन मित्र नदीम अहमद नदीम गणित की भाषा में नदिम घात दो , लघुत्तरात्मक लेखन में , ऐसा इस लिए क्योंकि पुरानी कहावत है मिया जी की जुती मिया जी के सर ! दरसल आज मुझे निमंत्रण था मुक्ति संस्थान की तरफ से एक और साहित्य पुस्तक चर्चा का ! पिछली पुस्तक चर्चा के बाद मेरे लिखे लघु समीक्षा का कुछ असर मैंने देखा आज की पुस्तक चर्चा पर ! पर स्थिति वही की वही अतीत के सृजन पर अनायास ही बहस साहित्यिक जामे में ! शिक्षित होना अभी बाकि है बीकानेर के साहित्य समाज को ! ऑनलाइन मित्र साहित्यकार सरल विशारद जी के शब्दों में !

कारण सृजन रचनाकार के विचारों का आकर होता है ! ठीक वैसे ही जैसे कुम्हार की चाक पर गीली मिटी का कुम्हार के हाथ और धैर्य से किये गए प्रयास का मिला जुला रूप मिटी के बर्तन ! उनमे कुछ सही बनते है कुछ नहीं भी पर यहाँ खेल कुम्हार और माटी के साथ निरंतर घूमती चाक का ही है और किसी अन्य उपभोगता का नहीं जो उन मिटी के बर्तनो के रूप सौंदर्य को देख कर खरीदता या उपियोग में लेता है अपने जीवन में ! साहित्य या कला में भी यही तर्क लाघु होता है कोई माने या ना माने !

आज पुस्तक चर्चा थी परिंदे पुस्तक पर जिसे लिखा है भाई नदीम अहमद ने ये पुस्तक लघु कथाओं का संकलन है ! कोशिश घागर में सागर भरने की ! सफल या असफल ये लेखक से बेहतर और कोई नहीं जान सकता न समझ सकता ! कोशिशे बेकार चर्चाओं के चरिये। हा हा।
साहित्यकार श्री लाल जोशी जी ने मच की अध्यक्षता स्वीकारी और बखूबी निभाई धैर्य के साथ ! लघु कथा पर दीर्घ परचा पढ़ा साहित्यकार संजय आचार्य वरुण ! संयोजन था साहित्यकर्मी राजेंद्र जोशी जी व् व्यंगकार बुलाकी शर्मा जी का !

आज की परिचर्चा में शहर के काफी साहित्यकार शामिल हुए और सब ने अपने अपने नजरिये से परिंदे पुस्तक पर अपने समीक्षात्मक पक्ष रखे ! उस समय वो सभागार मुझे मेरे बी के स्कूल की हिंदी की मौखिक परीक्षा का भवन नजर आने लगा ! एक के बाद एक वक्ता मंच से कुछ कथा लघुकथा लेखन हिंदी साहित्य और ना जाने क्या क्या कहता जा रहा था ! शायद स्वयं को साहित्यकार के रूप में प्रमाणित करने की एक कवायद ही थी और कुछ खास नहीं !

क्योंकि सृजन सृजक और अभिव्यक्ति का विषय है , उसका पसंद - नापसंद का विषय पाठक या दर्शक की वैचारिक क्षमता पर ही निर्भर करता है सृजक पर नहीं ! क्यों की सृजक व्यस्त रहता है स्व की अनुभूति और उसके प्रकटीकरण में और यही सृजन का सही सत्य रूप है परिभाषा है सृजन जगत में !

दरशल सृजक अपने विचार को प्रकट करता है और उस प्रकटीकरण में वो माध्यम तलाशता है वो माधयम जिससे तेज आवेग से आने वाले विचार को सरल और प्रभावी रूप से संप्रेषित कर सके अब वो साहित्य जगत में कथा हो ,कहानी हो , आलेख हो, कविता हो या फिर ग़ज़ल ये कोई माइने रखने वाली बात नहीं ! बात ये है की किस प्रकार सृजक स्वतंत्र अभिव्यक्ति और सरलता अनुभूत करता है अपनी बात कहने में समाज को !
सो भाई नदीम अहमद ने भी लघु कथा से अपने भीतर की छटपटाहट को आसान भाषा में कह दिया है ठीक कबीर की भांति जहां न छंद है न कोई तुक , बस अंतर मन की लय से लय मिलाकर विचार का प्रगटीकरण है और कुछ नहीं !
सो भाई नदीम अहमद को मेरी और से कबीरवाद।

पुस्तक चर्चा के समय पुस्तक की एक प्रति मेरे हाथ में भी आई पास बैठे साहित्यकार के जरिये ! आवरण लघु कथा परिंदे के हिसाब का ही था भीतर पुस्तक में देखा की १०० से ऊपर लघु कथाएँ जिनकी पंक्तिया कोई ४ तो कोई १० से १५ बाकि पूरा पना सफ़ेद कोर कागज मानो दो तीन और लघु पुस्तके प्रकाशित की जासके इतना कोरा ! सो ये आलोचनात्मक पक्ष भी सामने आया पुस्तक के प्रकाशन सम्बंधी कितना सफ़ेद और साहित्य क्षेत्र यूँ ही बिना उपियोग के पुस्तकों में बंद किया जा रहा है प्रकाशन के जरिये ! प्रकाशन के नियम और संयोजन में बदलाव की आवश्यकता है या यूँ कहु और शिक्षित होने की जरूररत है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी !

कुल मिलाक़र आज एक और पुस्तक पर शहर के साहित्य जगत ने परिचर्चा की पुस्तक लघु कथा पर ही थी पर चर्चा बड़ी दीर्ग अवधि तक चली कोई चार घंटे बिना अंतराल सो भूख ने भी किया बुरा हाल !

पर फिर भी सभी साहित्य कर्मियों ने अपने धैर्य का परिचय दिया और परिचर्चा को सफल बनाया ! चर्चा को सफल बना ने वाले व्यक्तित्व थे साहित्यकार मालचंद तिवारी जी ( ऑनलाइन मित्र ) , सरल विशारद ( ऑनलाइन मित्र ) शाइर शमीम बीकानेरी , बुलाकी शर्मा , संजय पुरोहित ( ऑनलाइन मित्र ) , मनीष कुमार जोशी , रंग साहित्यकार मधु आचार्य एवं आनंद वि आचार्य ( ऑनलाइन मित्र ), मनीषा आर्य सोनी , मोनिका गौड़ , इरशाद अजीज ,( ऑनलाइन मित्र ) मुकेश व्यास , ( ऑनलाइन मित्र ) लोकेशदत्त आचार्य , ( ऑनलाइन मित्र ) नमामि शंकर आचार्य ,डॉ मोहमद हुसैन , नरेंद्र व्यास ( ऑनलाइन मित्र ) , सुनील गज्जाणी ( ऑनलाइन मित्र ) ,कमल रंगा , नवनीत पाण्डे ( ऑनलाइन मित्र ) रवि पुरोहित , दीप चाँद साँखला ( ऑनलाइन मित्र ) नीरज दइया ( ऑनलाइन मित्र ) खेल लेखक आत्मा राम भाटी जिन्होंने लघु कथा को २० - २० का खेल कहा साहित्य जगत में उनके अलावा और भी कई गणमान्य साहित्य समाज के लोग उपस्थित थे आज की पुस्तक चर्चा में … जय हो

यहाँ एक फोटो आप के साथ शेयर कर रहा हूँ जिसमे बीकानेर के नवयुवक कला मंडल ( रंग कर्म संस्थान ) के निर्देशक सुरेश हिंदुस्तानी जी ने साहित्यकार नदीम अहमद नदीम का सम्मान भी किया प्रतिक चिन्ह और पोतिया ( सफ़ेद कपडा ) उढ़ाकर !

 
 I sure after read to this critical view of myself on literature  Discussion  you will accept  my logic think  about literature or that’s presentation . Because in my view no way for criticism on any creative work after thats creation . 

 So here I said  My point of view on discussion of  literature …

 Yogendra  kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA  

2 comments:

anamika said...

bahut khub

ओम पुरोहित'कागद' said...

Bahut achhi jankari di---aap achha kam kar rahe hain Purohit ji--Hardik Badhai !