DIALOGUE
BY HINDI
LITERATURE TO
HANSH
http://www.hansmonthly.in/index.php Photo by google Image |
Friends yesterday I were
knew a sad news about literature family . we lost to a very senior writer cum follower
of great late writer MUNSHI PREM CHAND . yes we lost to writer Rajendra yadav . in present he was editor of
HINDI Literature magazine HANSH. This literature
magazine was creation of great late writer MUNSHI PREM CHAND , he was published
first edition of HANSH magazine in year 1936 and he was publishing continue till year 1956 .
After Munshi Prem chand writer late Rajendra yadav was started publication of HANSH magazine by
his own efforts . I were knew this important information today evening ( date 30-10-2013) by a common
meeting of Writers or creative peoples . we all were gave respect to work of
Rajendra Yadav and we did prayed for his soul peace. That meeting was
in`Sudarshana Kala Dirgha ( art gallery ) Bikaner,.
There many senior and
junior writers were expressed his/her view and observation on magazine Hansh or that’s
editor late writer Rajendra yadav. I were listened to all and collecting some more right
information about history of Hansh Magazine or that’s editor .i were knew Hansh
magazine was started for Hindi story and
that is promoting to Hindi story writer of my nation.
You can think why I am
sharing this with you by this blog post
. so I want to tell you its region
why I am sharing it with you by this post.
Late Writer Rajendra yadav ji - Photo by Google Image . |
Before few month I were wrote a real story of my life or that’s
observation . I were converted a real live motion in form of Hindi literature
by story format.
Because my two close friends were published from HANSH
magazine as a story writer , writer
Sanjay Purohit and Manish Kumar Joshi , I were read their stories in HANSH
Magazine then I were shared my live story to editor of HANSH writer Rajendra yadav . my story concept was
sound of Mother by a bird live life
condition . I were lived that live story,
I saw how to a mother care to her kid
and what was my role in that live story
as a human by time design . so I were
shared that first live story to editor of HANSH
Magazine by Email ..but that was
not accepting for publication and I were not received any reply so I think that
was in under process of publication or maybe that was a half dialogue of myself
with HANSH magazine or that’s editor .
On online I am connected to page of writer
late Rajendra Yadav but there he was not
informed to me about my story publication . it was critical but
true .
when I were not
received any reply of him then I were get a strong step for my story writing work . today on online I am connected on online with 20,000 to up people of art and literature family . so as a
freelancer creative person I were updated that live story of my life on online networks for reading of
connected peoples.
Here I want to share
with you that story link but that story text in HINDI , I hope you will notice to my live story matter with
a right or true live message or life
relation in nature .
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=4983856268855&set=a.1159622585403.2025211.1072945182&type=1&theater
So I said dialogue by Hindi literature to HANSH ..
" उपकार या परोपकार "
( सत्य घटना पर आधारित है )
Photo by Yogendra Kumar Purohit |
एक कलाकार जो हमेशा व्यस्त रहने वाला अपने सर्जन कर्म में , अपने सिमित कला संसाधन के साथ एक सरकारी कला भवन में बतौर एक स्वतंत्र कलाकार की हेसियत से जिसका स्रजन चित्र कला से पहचाना जाता था , बात उस दिन की है जब वो अपने कला कर्म को पूर्ण कर के सरकारी कला भवन के स्टूडियो को ताला लगाकर वहां से जा चूका था और जाकर बेठा अपने दोस्तों के साथ वही पुराणी अपने कोलेज के पास वाली चाय की थडी पर ! जहां अक्सर वो कलाकार चाय पिया करता कला परिचर्चा करते हुए अपने जूनियर और सिनियर के साथ ! उस दिन भी वो वेसे ही व्यस्त था चाय और कला परिचर्चा में ! उस पल एक दम से उसका मन विचलित हुआ उसे अजीब सा और आन्तरिक खिंचाव महसूस हुआ ! जो अचेतन मन से उसे सांकेतिक रूप से मिल रहा था ,और वो ये जनता था की जब भी उसके साथ ऐसा कुछ होता है तो वो कोई घटना को परिणाम देने वाली परिस्थिति होती है ! मनोविज्ञानं इसे सिक्स्थ सेन्स कहता है जो कलाकारों से नियमित सर्जन क्रिया से बनता है , पूर्वाभास किसी अद्र्स्य घटनाक्रम का ,वहां उसके सब साथी चाय और कला परिचर्चा में व्यस्त पर उसके मन पर दबाव बढ़ता जा रहा था वो कही खिचा चला जा रहा था ! कला कर्म पूर्ण कर चूका था सो वो समझ भी नहीं पा रहा था की ये दबाव क्यों हो रहा है ? पर वो था उसके मन पर , पर फिर भी वो शांत मन से दोस्तों के साथ व्यस्त होने की कोशिश में लगा ,पर असहज और अशांत भी था ! ,
इतने में उसका एक सिनियर अपनी नयी जीप लेकर उस चाय की थडी पर पहुचता है और उसे जीप में घुमने का न्योता देता है ! जबकि उस कलाकार के दोस्त को पता है की ये आर्ट में घुमने वाला है , कलाकार है मना ही करेगा क्योंकि इस से पहले भी कई बार वो मना कर चूका है ,अपने उसी दोस्त को ! पर उस दिन एक दम से वो कलाकार बोला चलो, पर जाऊंगा मै मेरे स्टूडियो अगर उधर जाते हो तो चल सकता हूँ , रविवार का दिन था सो उस दोस्त ने कहा जहा तू कहे दोस्त वही ले चलू पर तू चल तो सही मेरे साथ ! , वो दबे मन से सब को अलविदा कहकर कल फिर मिलने का अस्वासन देकर उस दोस्त की जीप में जाकर बेठ गया ! कुछ देर बाद वो सरकारी कला भवन भी आ गया उसके दोस्त आगे लेजाना चाहते थे उसे, पर वो बोल मुझे यही उतार दो आगे नहीं जाने का मन हो रहा! दोस्तों ने जाना की ये जायेगा स्टूडियो में और घिसेगा पेंसिल कागज पर , उन दोस्तों ने उसे वही जीप से उतरने दिया और वो जीप से उतर कर सीधा गया कण्ट्रोल रूम उस कला भवन के वहा से स्टूडियो की चाबी ली और मन के भीतर खिंचाव होते हुए भी मन बे मन से वो स्टूडियो की तरफ बढा और ताला खोला स्टूडियो का ! दरवाजे को धकेला और देखा की खूब सारे पीले रंग के छोटे छोटे फुल की पतियों के टुकड़े फर्श पर गिरे पड़े है और एक चिड़िया सांस भरति हुई रोशन दान की टूटी हुई सीमेंट की जाली से अन्दर आरही और अपनी चोंच में एक पीले रंग के फुल की पति दबाये हुए ! वहां एक बोर्ड जो दिवार पर टिका है उस पर जाकर बैठती है ! फिर कभी इधर कभी उधर उड़ उड़ कर अपनी परेशानी उस कलाकार को दर्शाने की कोशिश करती है ! उस कलाकार ने सोचा की ये चिड़िया क्या मेरे चित्र जो की उस बोर्ड पर टंगे थे जिनमे पीले रंग का प्रयोग किया गया था, शायद उस से प्रभावित होकर ये चिड़िया पीले रंग के फुल की पति तोड़ तोड़ कर यहाँ लारही है , पर अगले ही पल जब उस चिड़िया ने वो पीले रंग के फुल की पति बोर्ड के पिछे की और अपनी चोंच से गिराई तो कलाकार का कलात्मक ब्रहम टुटा ! उसने दुसरे तरीके से सोचना सुरु किया की क्या है इस बोर्ड के पीछे ? की ये चिड़िया बार बार उधर देख रही है और अपने चोंच का ये पीले फुल का टुकड़ा उधर गिरा रही है और गिराकर फिर बाहर जाकर एक और टुकड़ा फुल की पति का लेकर आरही है !
उसने इस गुथी को समझने के लिए चिड़िया के बहार जाने का इन्तजार किया जेसे ही इस बार चिड़िया बहार गयी की कलाकर ने फुर्ती से बोर्ड के पीछे जो दीवार से एक दम सट्टा हुआ था और ऊपर की और से दीवार से कुछ दूर और लोहे की तारो पर लटका था , उस कलाकार ने बोर्ड के पीछे देखा और पाया की एक छोटा सा चिड़िया का बच्चा बोर्ड के पीछे तार के गुछे में उल्जा हुआ है ! उस पल उस कलाकार के रोंगटे खड़े हो गए ये द्रश्य देख कर की एक माँ किस तरह अपने बच्चे को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है , या उस के संघर्ष में कितनी मौन पर प्रभाव शाली पुकार है मदद के लिए की मुझे यहाँ आना पड़ा, ना आने का मन होने के उपरांत भी ! वो चिड़िया जानती थी की उसके बच्चे को अभी जीना है आत्म विश्वास का प्रमाण भी उस कलाकार ने उस चिड़िया के आत्मविश्वास और उसके प्रयास से जाना जब वो खाना अपने बच्चे तक पहुँचाने की कोशिश कर रही थी ,उन पीले फूलो की पतियों के टुकडो के सहारे या उन पीले रंग के टुकडो व् अपनी चहक के जरिये वो चिड़िया अपने बच्चे को आभास करवा रही थी की माँ तेरे पास है मेरे बच्चे और ये उम्मीद भी कर रही थी की सायद इन पीले फूलो के टुकडो को देख कर उसका बच्चा जो अभी उड़ना नहीं जनता वो उड़ने का प्रयास भी कर के बहार आजाये ! वो सारा द्रश्य देख कर उस कलाकार की आँखे नम हो गयी थी और वो मन ही मन बोला माँ की इस से बड़ी परिभाषा क्या होगी ? उस दिन उस कलाकार ने जाना की मन पर दबाव अकारण नहीं बनता है वो चिड़िया भी उसी स्टूडियो में अपना घोंसला बना कर रह रही थी और उसे उस कलाकार पर आत्म विश्वास था साथ ही एक प्राकृतिक रिश्ता जिव का जिव से , शायद तभी वो निडर भाव से अपने बच्चे को उसी स्थिति में छोड़ कर फिर से फुल का टुकड़ा लेने को उड़ गयी ! इस बार उस कलाकार ने समय का सदुपियोग किया बिना समय गवाए पहले बोर्ड को दीवार से दूर किया फिर एक टेबल उस जगह बोर्ड के निचे रखी जहां वो चिड़िया का बच्चा उल्जा हुआ था ! बोर्ड के उल्जे हुए तार को चिड़िया के बच्चे से अलग किया बच्चा सुरक्षित था, फिर एक कटोरी में साफ पानी भरा और उस टेबल पर रख दिया और इतने में कब वो चिड़िया स्टूडियो के दरवाजे पर आकर बेठी उस कलाकार को भी पता नहीं चला ! सायद वो माँ जानती थी की कलाकर का मन प्रकृति प्रेम वाला है या उसे भरोसा था की ये कलाकार उसके बच्चे का अहित नहीं करेगा ! कलाकार ने जब ये भांप लिया की अब ये बच्चा किसी भी रूप से असुरक्षित नहीं है तब उसने बिना उसे हाथ लगाये उस बोर्ड और टेबल से अपने आप को दूर कर लिया और वो चिड़िया उड़ कर अपने बच्चे के पास उस टेबल पर जाकर बेठ गयी और कलाकार ने उस चिड़िया से कहा अब संभाल लेना अपने बच्चे को ठीक समय पर मुझे पुकार लिया आज तुमने , ऐ प्रकृति की माँ , तुजे सत सत प्रणाम ! कलाकार ने फिर से स्टूडियो को ताला लगाया चाबी कंट्रोल रूम में सोंपी और केंटिन में जाकर सब दोस्तों को मोबाइल से हलके मन से और भरे स्वर में सन्देश भेजा ,कहा माफ़ करना दोस्तों आप सब को चाय के बिच छोड़ कर निकल आया पर मै आया नहीं था मुझे बुलाया था एक माँ की दर्द भरी पुकार ने ..
योगेन्द्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर , इंडिया
In that live story I could got a real relation with real bird life but after register that live story I could not got live relation with
a human or story publisher . it was painful but there to a new story was
started and here I am sharing with you
for your visit and notice. I were feeling
my writing work was got half dialogue with editor of HANSH magazine writer late Rajendra Yadav and in mid of dialogue he was leaved to our conversation
on story writing in Hindi literature
about publication of Hansh .
When I were sitting in
meeting of literature peoples in Sudarshana kala Dirgha ( art gallery ) that time I were thought today HANSH and my story is feeling alone
condition without that’s editor or publisher
. maybe After writer Munshi Premchand HANSH
( Bird name ) magazine was fling in sky of literature by wing of late writer Rajendra
yadav and in future who will give his or her wing for flying to HANSH magazine ? it is a question to our
literature family by me . but it is not
only a question it is my dialogue by
Hindi Literature to HANSH publication team .
So I said dialogue by Hindi literature to HANSH ..
Yogendra kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA
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